आई.आई.टी. मंडी : टाइप-2 डायबिटीज के दुष्प्रभावों को कम करेगी अफीम नशामुक्ति में उपयोगी दवा

Monday, Nov 02, 2020 - 01:38 PM (IST)

मंडी (रजनीश) : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई.आई.टी.) मंडी के शोधकर्ताओं ने उस प्रक्रिया का खुलासा किया है जिससे शरीर में इंसुलिन की अधिकता से इंसुलिन प्रतिरोध पैदा होता है, जिसका डायबिटीज से संबंध है। उन्होंने यह देखा कि अफीम के नशे के इलाज में उपयोगी दवा से इस प्रक्रिया में सुधार करना मुमकिन है। विज्ञान एवं इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) के अनुदान से वित्त पोषित इस अनुसंधान के परिणाम हाल में जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित हुए हैं। शोध पत्र के प्रमुख वैज्ञानिक डा. प्रोसनजीत मोंडल, एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज, आई.आई.टी. मंडी हैं और अध्ययन के सह-परीक्षण शोध विद्वान हैं आई.आई.टी. मंडी के अभिनव चौबे और ख्याति गिरधर, सीएसआईआर-आईआईटीआर लखनऊ के डा. देवव्रतघोष, आदित्य के. कर और शैव्य कुशवाहा और एसआरएम विश्वविद्यालय दिल्ली-एनसीआर सोनीपत हरियाणा के डा. मनोज कुमार यादव।
इंसुलिन पैनक्रियाज में बनने वाला हार्मोन है
इंसुलिन पैनक्रियाज में बनने वाला हार्मोन है जो जिसका इस्तेमाल कोशिकाएं खून से ग्लूकोज ग्रहण करने में करती हैं, लेकिन कई कारणों से कोशिकाएं इंसुलिन इस्तेमाल करने की क्षमता खो देती हैं तो टाइप-2 डायबिटीज होता है। इंसुलिन प्रतिरोध का संबंध हाइपरइनसुलिनेमिया नामक समस्या से है, जिसमें रक्तप्रवाह में जरूरत से ज्यादा इंसुलिन बना रहता है। इंसुलिन प्रतिरोध और हाइपरइनसुलिनेमिया के बीच चक्रीय संबंध है। दोनों एक दूसरे को बढ़ाता है। हालांकि इंसुलिन प्रतिरोध से हाइपरइनसुलिनेमिया का होना तो स्पष्ट है अर्थात जब कोशिकाएं इंसुलिन का उपयोग नहीं कर पाती हैं तो यह खून में मौजूद रह जाता है पर अब तक यह स्पष्ट नहीं था कि हाइपरइनसुलिनेमिया से इंसुलिन प्रतिरोध कैसे बढ़ता है। इंसुलिन प्रतिरोध का एक कारण सूजन है हमें यह तो पता है।
डॉ. मोंडल ने बताया कि इसलिए हम यह पता लगाना चाहते थे कि क्या हाइपरइनसुलिनेमिया से शरीर में सूजन पैदा होती है जिससे इन दो स्थितियों के बीच संबंध स्पष्ट हो।
शोधकर्ताओं ने हाइपरइनसुलिनेमिया में दबे एक महत्वपूर्ण प्रोटीन अणु एसआईआरटी 1 की पहचान की है। उन्होंने देखा कि एसआईआरटी 1 में कमी से एनएफकेबी नामक एक अन्य प्रोटीन सक्रिय होता है जो सूजन को बढ़ाता है। इस तरह हाइपरइनसुलिनेमिया और सिस्टेमिक सूजन के बीच संबंध है यह सामने आया।
टीम ने इस समस्या का समाधान भी खोज लिया है। शोधकर्ताओं ने देखा कि कम खुराक में नाल्ट्रेक्सोन (एलडीएन) दे कर एसआईआरटी 1 सक्रिय किया जा सकता है जिससे सूजन कम होगी और कोशिकाओं की इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ेगी। नाल्ट्रेक्सोन (एलडीएन) का उपयोग आमतौर पर अफीम की लत छुड़ाने में किया जाता है।
इस खोज से अधिकलाभ होगा
कम खुराक में नाल्ट्रेक्सोन देने से प्रायः कोशिकाओं और पशुओं के मॉडल में डायबिटीज़ से जुड़ी घटनाओं को वापस सही किया जा सकता है। डॉ. मोंडल ने बताया कि जिन्हें भरोसा है कि यह टाइप-2 डायबिटीज़ के उपाचार का व्यावहारिक रास्ता हो सकता है। नाल्ट्रेक्सोन पहले से एफडीए से मंजूर दवा है जिसका उपयोग अफीम की लत के उपचार में किया जाता है और अब इसका उपयोग एक अन्य उद्देश्य शरीर में सूजन और डायबिटीज़ की रोकथाम के लिए किया जा सकता है। शोध टीम इस सूत्र के साथ आगे अध्ययन करना चाहती है, ताकि हाइपरइनसुलिनेमिया से उत्पन्न सूजन और इसके परिणामस्वरूप इंसुलिन प्रतिरोध पर एलडीएन के प्रभावों के यांत्रिक (मैकेनिस्टिक) पहलुओं को समझा जा सके।
आई.आई.टी. मंडी के शोधकर्ताओं और सहयोगियों का यह अध्ययन आज बहुत प्रासंगिक है क्योंकि भारत में डायबिटीज़ की गंभीरता को समझना और सुलझाना अत्यंत आवश्यक है। आई.आई.टी. मंडी के डॉ. मोंडल कहते हैं कि भारत दुनिया का डायबिटीज कैपिटल है और दुनिया में इसका हर छठा मरीज एक भारतीय है। डायबिटीज़ का सटीक इलाज और उपचार प्रक्रिया ढूंढ़ने के लिए इसके विभिन्न कारणों को समझना महत्वपूर्ण होगा, प्रमुख शोधकर्ता ने बताया जिनके शोध का लक्ष्य इंसुलिन प्रतिरोध को समझना और उसका इलाज करना है।

Rajneesh Himalian