जमलू देवता देते हैं रघुनाथ के रथ को लकड़ी
punjabkesari.in Sunday, Sep 27, 2015 - 08:59 PM (IST)

कुल्लू: अंतर्राष्ट्रीय दशहरा उत्सव कुल्लू में विभिन्न देवी-देवताओं की अलग-अलग एवं अद्भुत परंपराएं प्रचलित हैं। हर वर्ष सैंकड़ों देवी-देवता दशहरे में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। दशहरे में भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा मुख्य आकर्षण होती है। देवताओं के राजा इंद्र देव को घाटी में जमदग्नि ऋषि व जमलू देवता के नाम से जाना जाता है। इसी देवता द्वारा भेंट की गई लकड़ी से रघुनाथ का रथ तैयार किया जाता है।
इसका एक कारण त्रेतायुग में जब भगवान राम नंगे पांव रणभूमि में जा रहे थे तो उन्हें देवराज इंद्र ने अपना रथ भेंट किया था। ठीक इसी प्रकार देवभूमि कुल्लू में मौजूद भगवान रघुनाथ का रथ देवराज इंद्र के रूप में पूजे जाने वाले महाराजा कोठी पीज के आराध्य देवता जमदग्रि ऋषि द्वारा भेंट की गई लकड़ी से तैयार किया जाता है। जब रथ का निर्माण करना हो तो महाराजा कोठी से जमदग्रि ऋषि के जंगलों से लकड़ी देवता के कारकून यहां लाकर देते हैं। भगवान रघुनाथ के रथ निर्माण का अधिकार भी कुछेक लोगों को ही है। कुल्लू की विभिन्न घाटियों के लोग रथ निर्माण करते हैं।
ये तैयार करते हैं रथ खींचने के लिए रस्सा
खराहल घाटी के देहणीधार, हलैणी, बंदल तथा सेऊगी गांव के लोग रथ खींचने के लिए प्राचीन समय से रस्सा तैयार करते हैं। इसके अलावा रथ मुरम्मत व रघुनाथ शिविर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस कार्य के लिए उन्हें राजा की ओर से मुआफिया दी गई थीं। रथ खींचने के लिए बनाए गए रस्से की लंबाई भी प्राचीन समय से एक जैसी रखी जाती है। पुराने समय में रस्सा बगड़े घास का बनाया जाता था लेकिन आधुनिकता के दौर में साधारण रस्से का ही प्रयोग किए जाने लगा है।
ये देते हैं रावण के पुतले को किल्टे
लगघाटी के खणीपांदे के लोग लंका दहन के लिए कांटे व रावण आदि के पुतले के लिए किल्टे व मिट्टी के मुखौटे लाने की परंपरा निभाते हैं। रथ निर्माण के कार्य को पूर्ण करने के लिए भुलंग कोठी के सुआ गांव के कारीगर अपनी सेवाएं देते हैं।
3 प्रकार की लकड़ी से होता है रथ निर्माण
भगवान रघुनाथ के विशाल रथ के निर्माण के लिए 3 प्रकार की लकड़ी का प्रयोग होता है। रथ के ऊपरी हिस्से के लिए देवदार की लकड़ी, रथ के 16 पहियों के लिए माहून की लकड़ी तथा रथ की मूसलियों के लिए वान की लकड़ी प्रयोग में लाई जाती है। रथ क्षतिग्रस्त होने पर काफी समय बाद तैयार किया जाता है। रथ के पहिए में लोहे की पत्तियां बनाने का काम लोहार वर्ग के लोग करते हैं। कुल्लू दशहरे में शोभायात्रा शुरू करने के बाद ही भगवान रघुनाथ जी के ऊपरी हिस्से के चारों ओर पवन पुत्र हनुमान की मूॢतयां स्थापित की जाती हैं।
1955 में प्रतीक चिन्ह के रूप में विराजमान थे जमदग्रि ऋषि
जानकारों की मानें तो दशहरे में एक ऐसा समय भी आ गया था जब 1955 के बाद दशहरे की परंपरा समाप्त होने की कगार पर थी। उस समय इंद्र देवता अर्थात जमदग्रि ऋषि प्रतीक चिन्ह के रूप में विराजमान थे लेकिन बाद में रथ का निर्माण किया गया। 1972 के बाद करीब 15 साल तक भगवान रघुनाथ के दाहिने ओर चलने की परंपरा भी जमदग्रि ऋषि ने निभाई।