नवरात्र: यहां मां ज्वाला ने तोड़ा था मुगल सम्राट अकबर का अहंकार

punjabkesari.in Tuesday, Oct 13, 2015 - 02:20 PM (IST)

कांगड़ा: मां ज्वाला देवी तीर्थ स्थल को देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है। इस शक्तिपीठ का अपना एक विशेष महत्व है। इस ज्वालामुखी मंदिर को कई नामों से पुकारा जाता है जैसे जोता वाली का मंदिर, ज्वाला मां, ज्वालामुखी। 


आपको बता दें कि मां ज्वाला मंदिर का मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा है। शिव महापुराण में भी इस शक्तिपीठ का वर्णन आता है। जब भगवान शिव माता सती को लेकर पूरे ब्रह्मंड में घूमने लगे तब सती की जीव्हा इस स्थान पर गिरी थी। तभी से इसे ज्वालामुखी कहा जाने लगा।  ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। उन्हीं के द्वारा इस पवित्र धार्मिक स्थल की खोज हुई थी। 


मान्यता है कि ज्वालाजी ही एक ऐसा शक्तिपीठ है जहां मां के दर्शन साक्षात ज्योतियों के रूप में होते हैं। मंदिर के अंदर माता की 9 ज्योतियां है जिन्हें, महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। कहते हैं कि 1556 से 1605 तक अकबर दिल्‍ली का राजा था। राजा अकबर भी मां ज्वाला की परीक्षा लेने के लिए उनके दरबार में पहुंच गया। उसने मां की ज्योतियों को बुझाने के लिए अकबर नहर का उत्पादन करवाया लेकिन मां के चमत्कार से ज्योतियां नहीं बुझ पाईं। इसके बाद अकबर मां के चरणों में पहुंचा लेकिन उसको अहंकार हुआ था कि उसने सोने का छत्र हिंदू मंदिर में चढ़ाया लेकिन मां ज्वाला ने इस छत्र को अस्वीकार कर इसे लोहे का बना (खंडित) दिया था।


लोगों का कहना है कि आज भी मंदिर में अकबर का यह छत्र मौजूद है। मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद ने करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया। पौराणिक कथा के अनुसार जब माता ज्वाला प्रकट हुई थीं तब एक ग्वाले को सबसे पहले पहाड़ी पर ज्योति के दिव्य दर्शन हुए। फिर उस वक्त के राजा भूमिचंद ने मंदिर के भवन को बनवाया। कांगड़ा का एक प्रचलित भजन भी इस का गवाह बनता है। पंजा पंजा पांडवां मैया तेरा भवन बनाया, अर्जुन चंवर झुलाया मेरी माता। शक्तिपीठ ज्वालामुखी में मंगलवार को झंडा रस्म से साथ शारदीय नवरात्र का श्रीगणेश होगा। उसके बाद ही श्रद्धालु मां ज्वाला की अखंड ज्योतियों के दर्शन कर पाएंगे। मंदिर के कपाट सुबह 5 बजे खुल जाएंगे। मां के दरबार को 1000 किलो फूलों से सजाया गया है।


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