सिर्फ मुर्दों को जलाने के काम आती है शिवबाड़ी जंगल की लकड़ी, नहीं होता दूसरा प्रयोग
punjabkesari.in Friday, Jul 02, 2021 - 12:06 AM (IST)

गगरेट (बृज): खबरदार! शिवबाड़ी जंगल की लकड़ी ले जाने की कोशिश न करें। अरे हजूर लकड़ी ले जाना तो दूर बल्कि एक दातुन तक तोडऩे की भूल मत कर बैठें अन्यथा बैठे-बिठाए आप किसी बड़ी मुसीबत को दावत दे सकते हैं। कई वर्षों से इस जंगल की लकड़ी बेशक गिरकर गल गई लेकिन किसी की इतनी हिम्मत नहीं हुई कि इसे उठाकर घर ले जाए। यहां की लकड़ी का प्रयोग सिर्फमुर्दे जलाने के लिए ही किया जा सकता है। अब इसे अंधविश्वास समझ लें या कुछ और लेकिन इस जंगल की लकड़ी का व्यावसायिक या घरेलू उपयोग करने की किसी ने हिम्मत तक नहीं की। जिसने भी इस जंगल की लकड़ी का कोई दूसरा प्रयोग करना चाहा वह ऐसे अनिष्ट से घिरा कि दूसरी बार हिम्मत नहीं जुटा पाया है।
यह है मान्यता
किंवदंती के अनुसार त्रेता युग में शिवबाड़ी का संपूर्ण जंगल क्षेत्र पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य की नगरी हुआ करता था। यहीं पर पांडवों ने उनसे धनुष विद्या के गुर सीखे थे। उनकी बेटी यज्याति की जिद्द पर स्वयं भगवान शिव ने यहां पवित्र शिवलिंग की स्थापना की थी। चारों ओर से घने जंगल से घिरा द्रोण महादेव शिव मंदिर शिव भक्तों की अगाध आस्था का केंद्र है तो इसके आसपास का रहस्यमयी जंगल अपने अंदर कई रहस्यों को छिपाए हुए है। सदियों से यही परंपरा चल रही है कि इस जंगल की लकड़ी सिर्फ मुर्दा जलाने के काम ही आती है। कभी इस जंगल के चारों ओर चार श्मशानघाट हुआ करते थे। अभी भी तीन श्मशानघाट इसके आसपास हैं। जहां शव जलाने के लिए इसी जंगल की लकड़ी का प्रयोग होता है। इस जंगल की लकड़ी का प्रयोग यहां रह रहे साधु महात्माओं के धूने या फिर यहां लगने वाले लंगर में भी किया जा सकता है। लाखों रुपए की लकड़ी इस जंगल में गिरकर मिट्टी हो गई लेकिन वन विभाग ने कभी इस लकड़ी को उठाने की कोशिश नहीं की। यहां तक मुर्दा जलाने के लिए लकड़ी काटने के लिए कभी वन विभाग से अनुमति लेने की भी किसी को जरूरत नहीं पड़ी।
अन्य कार्यों के लिए लकड़ी का प्रयोग करने पर होते हैं हादसे
अंबोटा गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि कई साल पहले एक सैन्य टुकड़ी यहां युद्धाभ्यास के लिए आती थी और उस दौरान सैनिकों ने इस जंगल की लकड़ी को खाना बनाने के लिए प्रयोग करना शुरू कर दिया। हालांकि कुछ लोगों ने उन्हें ऐसा करने से मना किया लेकिन वे नहीं माने और जब सैन्य टुकड़ी वापस जाने लगी तो उनका एक वाहन गहरी खाई में समा गया। इसके बाद अंबोटा गांव के बुजुर्गों ने उच्च सैन्य अधिकारियों को पत्र लिखा और उसके बाद यहां युद्धाभ्यास के लिए सैन्य टुकडिय़ों का आना बंद हुआ। कुछ साल पहले शिवबाड़ी के समीप एक ईंट-भट्ठे की चिमनी के निर्माण में लगे मजदूर भी यहां की लकड़ी का खाना बनाने के लिए प्रयोग करने लगे लेकिन जैसे ही चिमनी बनकर तैयार हुई वैसे ही धराशायी हो गई। कई मजदूर मरने से बाल-बाल बचे। मंदिर के पुजारी अजय शर्मा बताते हैं कि कुछ समय पूर्व एक टूरिस्ट बस के साथ आए श्रद्धालु जंगल की लताएं अपने साथ ले गए और कुछ ही दिन बाद वापस यहां पहुंचे। उन्होंने बताया कि रात में सपने में उन्हें जहरीले सांप नजर आते हैं।
यहां शिव मंदिर में जमीन के अंदर है शिवलिंग
अजय शर्मा कहते हैं कि भगवान शिव का ही ऐसा वरदान है कि मुर्दे पर डाली गई इस जंगल की हरी लकड़ी भी आग पकड़ लेती है। उन्होंने बताया कि शिव मंदिर में शिवलिंग जमीन के अंदर है जबकि आम तौर पर शिवलिंग जमीन के ऊपर ही होते हैं। ग्राम पंचायत अंबोटा के प्रधान सरदार जगजीत सिंह कहते हैं कि सदियों से यह परंपरा है कि इस जंगल की लकड़ी सिर्फ मुर्दा जलाने के ही काम आती है और गांव के लोग भी इसका घरेलू उपयोग नहीं कर सकते। वन विभाग के डिप्टी रेंज आफिसर सुभाष चंद कहते हैं कि इस जंगल से लोगों की धार्मिक आस्थाएं जुड़ी हैं इसलिए मुर्दा जलाने के लिए कभी यहां से लकड़ी उठाने पर रोक नहीं लगाई गई है।
लोगों की आस्था का केंद्र है द्रोण महादेव शिव मंदिर
चारों ओर से घने जंगल से घिरा द्रोण महादेव शिव मंदिर ऐसा रमणीक स्थल है जो बर्बस ही श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचता है। मौजूदा समय में द्रोण महादेव शिव मंदिर ट्रस्ट इसका संचालन कर रहा है। शिवबाड़ी के चारों ओर चार कुएं हैं जो सदियों से जल ही जीवन है का संदेश देते आ रहे हैं। यहां कई महात्माओं की समाधियां हैं जो सैंकड़ों साल से इस पवित्र स्थल के महत्व का बखान करती हैं।