क्यों हिमाचल में जयराम के नाम पर जनादेश लेना चाहती है BJP?

Tuesday, May 14, 2019 - 11:01 AM (IST)

इलैक्शन डैस्क (संजीव शर्मा): पूरे देश में मोदी और राम के नाम पर वोट मांगने वाली भाजपा दिलचस्प ढंग से हिमाचल में जयराम ठाकुर के नाम पर जनादेश मांग रही है। इसकी कई वजहें हैं जिनमें से सबसे बड़ी है विधानसभा चुनाव के बाद उपजी स्थितियां। तब मुख्यमंत्री कैंडीडेट घोषित होने के बावजूद प्रेम कुमार धूमल हार गए थे और जब जयराम को मुख्यमंत्री बनाया गया तो विपक्षी कांग्रेस ने जयराम को एक्सीडैंटल सी.एम. तक कहा। ऐसे में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने इन लोकसभा चुनावों में जयराम के नाम पर जनादेश लेकर आगे बढ़ने की रणनीति अपनाई। दरअसल बाकी राज्यों में लगातार रिपीट होती सरकारों के बावजूद हिमाचल में निरंतरता नहीं मिल पाने से भाजपा नेतृत्व शुरू से ही परेशान था।   

ऐसे में जब 2012 में कोई बड़ा मुद्दा न होने के बावजूद धूमल सरकार सत्ताच्युत हुई तो उसी समय तय हो गया था कि अब नया चेहरा आगे किया जाएगा। इसी के तहत 2017 में भाजपा राज्य में मुख्यमंत्री चेहरा घोषित नहीं करना चाहती थी लेकिन धूमल ने दबाव बनाकर अपना नाम घोषित करवा लिया और वह हार गए। छाया मंत्रिमंडल के आधे लोग भी हार गए, भाजपा के अध्यक्ष तक हार गए और इसके बावजूद दो-तिहाई बहुमत से भाजपा की सरकार बन गई लेकिन बातें करने वाले नहीं माने और जयराम पर तंज शुरू हो गए। उसी का जवाब इस चुनाव में देने की कोशिश हो रही है। 

150 किलोमीटर हर रोज सफर कर रहे जयराम 

अपनी इसी रणनीति के तहत भाजपा ने पूरे चुनाव प्रचार में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को अकेले रण में उतार रखा है। जयराम को पहले ही दिन से यह बात बता दी गई थी और यही वजह है कि वह मुख्यमंत्री बनने के साथ ही इस मिशन में जुट गए थे। उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले सभी विधानसभा क्षेत्रों का दौरा किया ताकि हर जगह लोगों का उनसे निजी राफ्ता कायम हो सके। चुनाव के ऐलान के बाद भी उन्होंने अब तक सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों का एक राऊंड पूरा कर लिया है और अब जहां ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है वहां दूसरे दौरा कर रहे हैं। इस बात का भी खास ख्याल रखा गया है कि हैलीकॉप्टर से ज्यादा सड़क मार्ग से जाया जाए ताकि कदम-कदम पर जनता से संवाद होता रहे। जयराम आजकल औसतन 150 किलोमीटर का सफर प्रतिदिन तय कर रहे हैं। अब तक जयराम 143 छोटी-बड़ी जनसभाएं कर चुके हैं।  

हिमाचल में अकेले स्टार प्रचारक 

मुख्यमंत्री जयराम हिमाचल में भाजपा के इकलौते स्टार प्रचारक हैं। हालांकि स्टार प्रचारकों की सूची में 40 नाम हैं। इसके बावजूद अगर गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि बाकी नाम सिर्फ  कहने भर को हैं। यानी स्टार प्रचारक ‘नत्थी नेता’ बनकर रह गए हैं। धूमल को उनके बेटे के चुनाव तक समेट दिया गया है। हालांकि वह सभी नामांकनों पर मौजूद थे लेकिन वह तो महज शो था। नालागढ़ और बद्दी की जिन जनसभाओं में वह दिखे, वहां भी ज्यादा मामला वहां कार्यरत हमीरपुर क्षेत्र के वोटरों से सम्पर्क का ही था। शांता कुमार जरूर थोड़े-बहुत सक्रिय हैं लेकिन वह भी तब जब उनका चुनावी सियासत से संन्यास हो गया है। जे.पी. नड्डा तो वोट डालने ही आएंगे। वह बिलासपुर में भी अमित शाह की रैली में नहीं थे और उन्होंने अपने पेज पर एक भाषण झाड़कर किनारा कर लिया है। कुल मिलाकर जयराम से बड़ा मंच अगर किसी को है तो वे सिर्फ  शाह और मोदी ही हैं। हैलीकॉप्टर भी जयराम को ही मयस्सर है। जाहिर है जीत का श्रेय बंटेगा नहीं, सारा हिस्सा जयराम का होगा। हां, अगर कोई सीट खिसकी तो क्या होगा, यह देखना भी दिलचस्प होगा। 

मोदी तक नहीं ले रहे उम्मीदवारों का नाम 

यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी जनसभाओं में इसी रणनीति पर काम करते दिखे। उन्होंने मंडी में खुद के लिए और जयराम के काम के लिए वोट मांगे। मंच पर रामस्वरूप और किशन कपूर भी थे लेकिन वे मोदी के श्रीमुख से अपना नाम सुनने को तरस गए। दिलचस्प ढंग से मोदी ने भाजपा महासचिव राम सिंह और कुल्लू के पैराग्लाइडर रोशन ठाकुर से लेकर चाय वाले और सेपु बड़ी तक की चर्चा की। मण्डियाली में लोगों से समर्थन तक मांगा। बिजली महादेव की यात्रा उनको याद रही, भूला तो सिर्फ फिर रामस्वरूप और किशन कपूर का नाम जबकि यह उनकी ही चुनावी सभा थी। यानी मंच सैट था।  

भाजपा के एक गुट में यह चर्चा भी 

जयराम को जय और बाकियों को राम-राम किए जाने से भाजपा के एक विशेष वर्ग में क्षोभ भी है। इस गुट को रंज है कि उसे स्टार प्रचारकों की सूची में स्थान दिए जाने के बावजूद कहीं बुलाया नहीं जा रहा। कोई उनका प्रोग्राम लेने को तैयार नहीं और न ही केंद्रीय वार रूम की तरफ  से कोई कार्यक्रम तय किए जा रहे हैं। सब कुछ सी.एम. के इर्द-गिर्द केंद्रित है। ऐसे में यह खेमा इस सबको उन्हें नजरअंदाज किए जाने की सोची-समझी रणनीति मान रहा है और पलटवार के लिए मौके की तलाश में है। 

Ekta