मुख्यमंत्री के दावों का क्या होगा ???

Thursday, Jan 10, 2019 - 12:37 PM (IST)

शिमला (संकुश): सरकार बनते ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने दावा किया था कि वे बदले और बदली की राजनीति नहीं करेंगे। एक साल सरकार को हो गया है और उन्होंने जो कहा था वैसा ही हुआ है। पुलिस का सियासी इस्तेमाल करीब करीब बंद हुआ है। जहां सत्ता बदलते ही पहले दिन से विरोधियों का उत्पीड़न, केस दर्ज करने का सिलसिला शुरू हो जाता था, अबके ऐसा कुछ नहीं हुआ। लेकिन ये जो ऊना में हो रहा है ये उस दौर को वापस लाने वाला भी सिद्ध हो सकता है। एक ही सप्ताह में ऊना में दो ऐसी घटनाएं हुईं हैं जो सोचने पर विवश करती हैं। रविवार को हुए जनमंच में जो धाम लगी उसमें चावल में कीड़े होने की खबर सामने आई। चावल में कीड़े के फोटो और वीडियो भी आए। लेकिन तीन दिन बाद पता चला कि इस मामले में किसी के खिलाफ अफवाह फैलाने की शिकायत दर्ज हो गई है पुलिस में। 

मामले को अब ऐसे पेश किया जा रहा है मानो विरोधियों ने जेब से कीड़ा निकाल चावल में डाल उसकी फोटो डाल दी हो। जबकि ऐसा संभव नहीं दीखता क्योंकि जनमंच आपका है उसमे विरोधी तो ठीक वैसे ही दूर से दिख जाएगा जैसे कीड़ा दिखा था चावल में तो फिर ये क्या प्रपंच है एफआईआर वाला ?? क्या यह विरोधियों के खिलाफ सियासी ताकत का इस्तेमाल नहीं है ??? कहाँ तो केस दर्ज होता उसके खिलाफ जो धाम की व्यवस्था देख रहा हो लेकिन तथाकथित विरोधियों के खिलाफ केस ??? यह तो सियासी द्वेष ही कहा जाएगा और फिर सबसे बड़ा प्रश्न यह कि जनमंच को धाम में क्यों बदला जा रहा ??? क्या जरूरत है धाम लगाने की ??? लोग जनमंच में धाम खाने थोड़े आ रहे। उनके काम कीजिए खाना वो खुद खा लेंगे। 

जनमंच की सफलता उसमें निपटाए गए मामलों से होनी चाहिए न कि धाम में उमड़ी भीड़ से। वैसे बड़ा प्रश्न यह भी है कि सम्बंधित विभाग किस मद के तहत यह धाम परोस रहा था ??? अपने काम की हालत तो सुधारी नहीं जाती और धामगिरि की जा रही है ??? जग जाहिर है कि ऐसी धामों का पैसा ठेकेदार अदा करते हैं। और क्यों करते हैं ??? ताकि ठेके मिलते रहें . इस तरह से जनमंच की धाम भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली नहीं हुई क्या ??? अगर लोगों के भोजन की व्यवस्था करनी ही है तो सामुदायिक सहयोग से की जाए। किसी समाजसेवी के माध्यम से या फिर जिस इलाके में जनमंच हो उस शहर/कस्बे के भाजपाई अपने घरों से भोजन लाकर स्टाल पर रखें ताकि जिसे जरूरत हो वो खाना ले सके। लेकिन सबके लिए शाही दावत का दिखावा न हो, खासकर तब जब यह ठेकेदारी भ्र्ष्टाचार को बढ़ावा देने वाला हो। 

ऊना में ही बीते कल एक और एफआईआर दर्ज हुई। अनुराग ठाकुर की नमो अगेन हड्डी वाली तस्वीर से छेड़छाड़ को लेकर। इसमें एक बीजेपी कार्यकर्ता की शिकायत पर बाकायादा एक व्यक्ति को नामजद किया गया है। हालांकि अनुराग ठाकुर की तस्वीर के साथ छेड़छाड़ अशोभनीय और निंदनीय है। ऐसा नहीं होना चाहिए था। लेकिन इस मामले में एफआईआर भी तो राजनीतिक द्वेष की भावना से ही हुई है। क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि आज सभी प्रमुख पार्टियां सोशल मीडिया पर एकदूसरे के खिलाफ ऐसा विष वमन करने में नहीं लगी हुई हैं?? रोज ऐसी मीम्स और टून आते हैं जिन्हें छेड़छाड़ करके बनाया गया होता है, सिर्फ इसलिए ताकि विरोधी को नीचा दिखाया जा सके। जरा याद करें राजस्थान चुनाव से पहले गहलोत का वायरल हुआ वो वीडियो जिसमे वो कह रहे थे कि बीजेपी वालों ने पानी से बिजली बनाकर बिना ताकत वाला पानी सिंचाई के लिए छोड़ दिया है। लेकिन हुआ क्या ??? गहलोत आज राजस्थान के मुख्यमंत्री हैं। 

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जनता /मतदाता प्रबुद्ध है। वो जानता है कि सोशल मीडिया पर चल रहा तत्व कितना सही और कितना फेक परोसा जाता है। तो फिर इस मामले में भी तो जनता को पता ही था कि यह कितना सही है। क्या यह संभव है कि बीजेपी का एक वरिष्ठ सांसद जिसे पार्टी का यूथ सिम्बल कहा जाता है वह अपने प्रधानमंत्री के लिए -- नो नमो -- वाली हुड्डी पहनेगा ??? जाहिर है सब जानते हैं कि यह तस्वीर के साथ छेड़छाड़ है। तो फिर क्या जरूरत है इस मामले में पुलिस को जोतने की। पुलिस का इस्तेमाल और कहीं ज्यादा बेहतर हो सकता है। हिमाचल में नशे के खिलाफ मुहिम के लिए पुलिस की ज्यादा नफरी चाहिए, सड़क दुर्घटनाएं रोकने को पुलिस बल की जरूरत है, हत्या, चोरी डकैती आदि रोकने को ज्यादा पुलिस चाहिए तो फिर क्यों उसे ऐसे फालतू और फेक मामलों में एंगेज किया जाए ??? मंथन जरूर होना चाहिए।

Ekta