हाल-ए-हिमाचल : जमीनों की चाह रखने वाले पहले 370 , 371 और 118 का अंतर समझें

Saturday, Aug 10, 2019 - 03:58 PM (IST)

शिमला (संजीव शर्मा): जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के मूल प्रावधानों के निरस्तीकरण के बाद अब  अनुच्छेद 371 पर चर्चा गरमा गयी है। अनुच्छेद 371 के तहत मिले कुछ राज्यों के विशेषाधिकारों पर अब सियासत के गिद्धों ने नज़रें गड़ा दी हैं। मांग उठ रही है कि हिमाचल, उत्तराखंड, मणिपुर जैसे अन्य राज्यों में भी बाहरी लोगों को ज़मीने खरीदने की अनुमति मिलनी चाहिए। दिलचस्प ढंग से संसद के भीतर सबसे पहले ओवैसी ने यह सवाल उठाया कि वे कब हिमाचल में कृषि भूमि खरीद सकते हैं? फिर सुखबीर बादल और मनीष तिवारी ने भी ऐसे ही वक्तव्य दिए। इस बीच पूरे देश में यह बहस चल निकली कि अन्य राज्यों से भी यह प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए। जितने मुंह उतनी बातें और जितने दिमाग उतने तर्क लेकिन हकीकत को समझने का प्रयास न तो ओवैसी ने किया न बादल और तिवारी ने और न ही ऐसी मांग उठाने वाले अन्य नागरिक ऐसा कर पाए हैं।

वास्तव में 370 के तहत  कश्मीर में जारी प्रावधानों और 371 के तहत अन्य राज्यों में बने कानूनों में दिन रात का अंतर है। अनुच्छेद 371 के तहत समय समय पर कुछ राज्यों में वहां की सांस्कृतिक संरचना, भूगोल, परम्पराओं आदि को बचाने और उन सबको साथ लेकर विकास करने के नज़रिये से यह प्रावधान किये गए। ये राज्य जम्मू-कश्मीर की तरह अलग संविधान नहीं रखते। इनका कोई अलग झंडा नहीं है।ये भारत के सुप्रीम कोर्ट के हर कानून से बंधे हुए हैं। यहां भारत के राष्ट्र प्रतीकों का अपमान अपराध है। यहां लोगों को दोहरी नागरिकता हासिल नहीं है जबकि कश्मीर में यह सब भी था।

केवल मात्र ज़मीन ही एक मसला होता तो शायद ही 370 पर इतना हो-हल्ला होता और न ही इसे हटाने  की मांग और नौबत आती। यह राष्ट्र के भीतर राष्ट्र जैसा था जबकि हिमाचल, उत्तराखंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश गोवा ,सिक्किम, मिजोरम जहां ज़मीन क्रय पर नियंत्रण है वे सभी राज्य भारत के हर कानून को मानते हैं और अलग राष्ट्र जैसे नहीं हैं। इसलिए 371 अनुच्छेद के  तहत इन राज्यों में बने कानूनों को 370 से मिलाकर कैसे देखा जा सकता है ??

हिमाचल में सिर्फ कृषि भूमि पर प्रतिबंध

हिमाचल की ही बात करें तो हिमाचल के राज्य बनने के बाद पहले मुख्यमंत्री डाक्टर यशवंत परमार  ने यह कानून लाया था। उन्होंने महसूस किया कि हिमाचल की जनता आर्थिक रूप से सशक्त नहीं है। ऐसे में हो सकता है कि बाहरी राज्यों के पैसे वाले लोग यहां ज़मीनें खरीद लें और ऐसा हुआ तो स्थानीय वाशिंदे भूमिहीन हो जायेंगे।  इसलिए परमार मंत्रिमंडल ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371 के तहत राज्य भू- सुधार  अधिनियम में यह प्रावधान किया कि गैर कृषक  हिमाचल में ज़मीन नहीं खरीद सकेंगे। यहां तक वे लोग भी नहीं जो हिमाचल के स्थायी निवासी तो हैं लेकिन कृषक नहीं हैं। कालांतर में जरूरत महसूस होने पर इसमें कुछ संशोधन किये गए ताकि प्रदेश में उद्योग /व्यवसाय लगाने वाले या नौकरी करने वाले  बाहरी राज्यों के लोगों को सीमित भूमि दी जा सके। अभी बाहरी राज्यों के लोग सरकार की मंजूरी के बाद यहां रहने के लिए मकान खरीद सकते हैं।

ऐसे लोगों को राहत देने के लिए ही राज्य में धारा 118 में पांच बार संशोधन भी किया गया है। इसे राज्य सरकार ने 1976, 1987-88, 1994-95, 1996-97 और 2005-06 में संशोधित किया है। राज्य में इसके नियमों में तो बदलाव हुआ है, लेकिन मूल रूप से भूमि सुधार अधिनियम- 1972 की धारा 118 को बदला नहीं गया है। अब कश्मीर और हिमाचल की स्थितियों /कानूनों के बीच का फर्क और विस्तार से देख लें। हिमाचल में गैर कृषक कृषि भूमि नहीं खरीद सकते, लेकिन यह नियम सिर्फ कृषि भूमि पर लागू है रहने के लिए बाहरी राज्यों के लोग यहां ज़मीन लेकर मकान बना सकते हैं।

यही नहीं गैर हिमाचली उद्यमियों को राज्य में उद्योग /व्यवसाय के लिए भी ज़मीन  मिलती है। यह भी जानना जरूरी है कि बाहरी राज्यों के साथ साथ गैर कृषक हिमाचल भी  कृषि भूमि नहीं खरीद सकते। हिमाचल में 370 की तरह बाहर शादी करने से बेटियों के हक़ नहीं छिनते। कश्मीर की  370 की तरह बाहर के लोगों पर हिमाचल में नौकरी पर कोई प्रतिबंध नहीं, वे हिमाचल में नौकरी कर सकते हैं।  सरकारी और  निजी दोनों क्षेत्रों में यह व्यवस्था लागू है। प्रदेश में धारा 118 महज इसलिए लगाई गयी है ताकि  हिमाचल देश के अन्य राज्यों के धन्ना सेठों के हाथ न बिक जाये। इसलिए यह तय है कि धारा 118 को  अनुच्छेद 370 से मिलाकर नहीं देखा जा सकता।

वाजपेयी, प्रियंका, कमलनाथ, चौटाला सबके बंगले हैं हिमाचल में

दिलचस्प ढंग से हर दल हिमाचल में इस कानून को हटाने की मांग कर रहा है। लेकिन आपको बताते चलें की  पहले से ही कईयों के पास हिमाचल में ज़मीनें मौजूद हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी  का मनाली में मकान है। प्रियंका गांधी का घर शिमला में बनकर तैयार है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का बरसों से  मनाली के समीप रिजॉर्ट चल रहा है। चौटाला परिवार की सम्पत्तियां हिमाचल में हैं। कैप्टन अमरिंदर सिंह की पुश्तैनी ज़मीन हिमाचल में है। बादलों के पास भी शिमला में फ़्लैट होने की सूचना है(यह सही है या गलत इसकी पुष्टि नहीं है) केपीएस गिल का फार्म हाउस हिमाचल में है। पंजाब के कई अन्य प्रमुख नेताओं और प्रभावशाली लोगों की सम्पत्तियां हिमाचल में हैं।

 नागालैंड, सिक्किम, मिजोरम समेत कई राज्यों में  371

संविधान के आर्टिकल 371A के  प्रावधान से ऐसे लोगों को नागालैंड में जमीन खरीदने की इजाजत नहीं है, जो वहां के स्थायी नागरिक नहीं हैं। यहां तक की गैर आदिवासी भी नागालैंड में ज़मीन नहीं खरीद सकते भले ही वे वहां पीढ़ियों से रह रहे हों। यहां जमीनें सिर्फ राज्य के आदिवासी ही खरीद सकते हैं। आर्टिकल 371-F के तहत सिक्किम  सरकार को पूरे राज्य की जमीन का अधिकार दिया है, चाहे वह जमीन भारत में विलय से पहले किसी की निजी जमीन ही क्यों न रही हो। यानी यहां किसी के पास ज़मीन का मालिकाना हक़ नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि इसी प्रावधान से सिक्कम की विधानसभा चार साल की रखी गई है।

यही नहीं, आर्टिकल 371F में यह भी कहा गया है, 'किसी भी विवाद या किसी दूसरे मामले में जो सिक्किम से जुड़े किसी समझौते, एन्गेजमेंट, संधि या ऐसे किसी इन्स्ट्रुमेंट के कारण पैदा हुआ हो, उसमें न ही सुप्रीम कोर्ट और न किसी और कोर्ट का अधिकारक्षेत्र होगा।' हालांकि, जरूरत पड़ने पर राष्ट्रपति के दखल की इजाजत है। इसी तरह आर्टिकल 371-G के तहत मिजोरम में भी सिर्फ वहां के आदिवासी ही जमीन के मालिक हो सकते हैं। हालांकि, यहां प्राइवेट सेक्टर के उद्योग खोलने के लिए राज्य सरकार मिजोरम (भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन और पुनर्स्थापन) ऐक्ट 2016 के तहत भूमि अधिग्रहण कर सकती है। आर्टिकल 371-A और 371-G के तहत संसद के आदिवासी धार्मिक कानूनों, रिवाजों और न्याय व्यवस्था में दखल देने वाले कानूनों को लागू करने के अधिकार सीमित हैं। 

 

 

 

 

 

 

  
 

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