कामाक्षा मंदिर में मशालें लेकर निभाई ‘बड़ा फेर’ की परम्परा

Wednesday, Oct 13, 2021 - 11:42 PM (IST)

करसोग (पीयूष): करसोग क्षेत्र के सिद्ध शक्तिपीठ मां कामाक्षा मंदिर में इस वर्ष भी पशु बलि नहीं दी गई है। अष्टमी को कामाक्षा माता मंदिर में विधि-विधान से कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसके तहत बुधवार तड़के 4 बजे 3 किलोमीटर का ‘बड़ा फेर’ संपन्न हुआ। पारंपरिक रात्रि फेर में मशालें जलाकर वाद्ययंत्रों की थाप पर शक्ति का नियंत्रण श्रद्धापूर्वक किया गया। बता दें कि पूर्व में कामाक्षा मंदिर में भैंसे की बलि दी जाती थी लेकिन अब श्रद्धालु यहां केवल नारियल ही चढ़ा रहे हैं। पौराणिकता के आधार पर मां कामाक्षा परशुराम के समय से ही कामाक्षा नगर में स्थापित हैं।

हरी राम शर्मा के ऊपर आया आवेश

मां कामाक्षा कमेटी के प्रधान पम्मी शर्मा ने बताया कि अष्टमी की रात्रि को सभी धर्मों के लोग मां कामाक्षा के मंदिर के अंदर जाते हैं तथा मां कामाक्षा की शक्ति जिस व्यक्ति पर आती है, वह अचेत हो जाता है और यह प्रक्रिया इस बार भी हुई। इस बार यह आवेश हरी राम शर्मा के ऊपर आया, जिसे श्रद्धालुओं ने हाथों में उठाकर रात्रि फेर में ले गए और इसमें सैंकड़ों लोग शामिल हुए।

मां कामाक्षा ने काओ गांव में दिया था परशुराम को वर

डाॅ. हिमेंद्र बाली से जब कामाक्षा माता के संदर्भ में बात की गई तो उन्होंने बताया कि यह क्षेत्र करसोग का सबसे प्राचीन धाम है। काओ गांव में कामाक्षा माता का मंदिर परशुराम की तपोभूमि रहा है और त्रेतायुग में इस गांव को कंचनपुरी के नाम से जाना जाता था। दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों से मुक्ति के लिए परशुराम ने यहां कामाक्षा माता की तपस्या की थी। कहते हैं कि माता रेणुका के श्राप के कारण परशुराम की 21 कलाएं नष्ट हो गई थीं। परशुराम इसी स्थान पर तपस्या में लीन हो गए। मां कामाक्षा ने परशुराम के तप से प्रसन्न होकर 21 कलाएं प्रदान करते हुए वर दिया कि भविष्य में जो भी इस स्थान में सिद्धि करेगा, उसे अवश्य सिद्धि प्राप्त होगी।

हिमाचल की खबरें Twitter पर पढ़ने के लिए हमें Join करें Click Here
अपने शहर की और खबरें जानने के लिए Like करें हमारा Facebook Page Click Here

Content Writer

Vijay