28 साल से बैड पर लेटकर काव्य संग्रह व गजलें लिख रहा ये शख्स, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिली ख्याति

punjabkesari.in Saturday, Dec 03, 2022 - 12:30 AM (IST)

हरोली (ऊना) (संजीव दत्ता): लखां तीर्थां तो बदके, फल मां के इक दीदार दा, दस किवें मैं उतारां माए, कर्जा तेरे प्यार दा। ये भावपूर्ण लाइनें उस शख्स की कलम से लिखी गई हैं, जो किसी जटिल बीमारी के कारण पिछले 28 वर्षों से बैड पर लेटकर हाथ में कागज व कलम थामे हुए है। उसकी सोच के आगे विकलांगता भी रोड़ा नहीं बन सकी और देश ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसे ख्याति मिल रही है। यह कहानी है विधानसभा क्षेत्र हरोली के गांव सलोह निवासी 45 वर्षीय सुभाष पारस की। सुभाष पारस का जन्म 6 फरवरी, 1977 को माता रामआसरी व पिता प्यारा लाल के घर हुआ। सुभाष ने गांव के ही स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की।

पांव की अंगुली में हुई समस्या बन गई गंभीर बीमारी
कक्षा 7वीं तक तो सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन 13 वर्ष की उम्र में कक्षा 8वीं में अचानक सुभाष के पांव की अंगुली में कुछ तकलीफ शुरू हुई, जो लगातार बढ़ती चली गई।जैसे-तैसे 8वीं कक्षा पास की और 9वीं कक्षा में दाखिला हुआ लेकिन पांव की समस्या बढ़ती चली गई और समस्या टांग से लेकर शरीर के ऊपरी हिस्से तक पहुंचनी शुरू हो गई, जिस कारण उसे अपनी पढ़ाई को बीच में ही रोक कर स्कूल छोड़ना पड़ गया। सुभाष पिछले 28 वर्षों से बैड पर है। धीरे-धीरे उसकी समस्या इस कदर बढ़ती चली गई कि उससे न बैठा जाता और न ही चला जाता था। खाना-पीना भी बैड पर ही होता है।

इंगलैंड, कनाडा, अमेरिका व पाकिस्तान में छपे हैं लेख 
सुभाष पारस को उसकी लेखनी के चलते विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मान भी दिया जा रहा है। पंजाब के कपूरथला के सिरंजना केंद्र व पंजाब के ही नवी चेतना पंजाबी लेखक मंच द्वारा स्मृतिचिह्न देकर सम्मानित किया गया है, जबकि अन्य कई संस्थाएं उसे जल्द ही सम्मानित कर रही हैं। सुभाष पारस के इंगलैंड, कनाडा, अमेरिका व पाकिस्तान में उसके लेख छपे हैं जिनमे गजलें, गीत आदि पंजाबी में छपे हैं। यूके में उसके छपे लेख दस केहड़ी कलम नाल लिखदा ए रब्बा, तूं बंदेयां दी तकदीरां व गीत कुदरत तो पंज तत लै के, बुत बच्चे दा घड़दी मां सहित अन्य को लोगों ने खासा सराहा। इसी के साथ सुभाष विदेश में होने वाले सप्ताह में 2 बार कवि दरबार में भी ऑनलाइन शिरकत करते हैं।

माता-पिता कर रहे सेवा
पिछले 28 वर्षों से लगातार बैड पर लेटे हुए सुभाष की सेवा उसके बुजुर्ग माता-पिता कर रहे हैं। कभी आस-पड़ोस के रिश्तेदार भी मदद को हाथ आगे बढ़ा देते हैं। सुभाष का कहना है कि उन्हें बेटा होने के नाते अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा करनी चाहिए थी लेकिन उसके हालातों ने ठीक उससे उलटा ही कर दिया है।  

‘पंजाब केसरी’ के सम्पादकीय से मिली प्रेरणा, श्री विजय चोपड़ा जी प्रेरणास्रोत
शारीरिक समस्या के कारण सुभाष की किताबें छूट गईं, बावजूद इसके पढ़ने का शौक बरकरार रहा। सुभाष का कहना है कि उसने खासकर पंजाब केसरी के संपादकीय कॉलमों को ध्यान से पढ़ा, जहां से उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली। सुभाष पारस ने बताया कि वर्ष 1998 में ऊना स्थित हिमोत्कर्ष के कार्यक्रम के दौरान उन्हें ट्राईसाइकिल देने हेतु बुलाया गया था। जहां पर उसे पंजाब केसरी के प्रधान संपादक श्री विजय चोपड़ा जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वहां उसने श्री विजय चोपड़ा जी को अपनी लिखी हुई गजल सुनाई। उन्होंने उसकी पीठ थपथपाते हुए आशीर्वाद देकर प्रेरित किया। श्री विजय चोपड़ा जी को अपना प्रेरणास्रोत मानते हुए सुभाष अपने जीवन को नए रूप में ढालने के लिए आगे बढ़े और फिर कभी हार न मानते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक अपनी पैठ बनाने में कामयाब हुए। 

बैड पर लेटे हुए सीखी पंजाबी और उर्दू भाषा
सुभाष ने बैड पर लेटे हुए ही पंजाबी व उर्दू भाषा सीखी। पंजाबी भाषा को उसने टैलीविजन के माध्यम से सीखा। इसी तरह उर्दू भाषा के लिए लुगात (शब्दकोष) को अपना सहारा बनाया।  सुभाष ने बताया कि उसने अपने लेखन का कार्य पंजाबी गीतों से शुरू किया था। उसके गीतों को रिकार्ड भी किया गया, लेकिन उसके गीतों से उसका नाम हटाकर कई गायकों ने अपना नाम आगे कर लिया, जिसके चलते उसे काफी निराशा हुई। बाद में उसने अपना ध्यान अन्य काव्य लेखन की ओर मोड़ लिया।

3 संयुक्त व एक खुद की लिखी किताब
सुभाष के 3 संयुक्त काव्य संग्रह छप चुके हैं, जबकि एक किताब उसकी खुद अकेले की लिखी हुई है। संयुक्त में हरफा दा चानन व धीया दोनों पंजाबी संग्रह हैं, जबकि हिंदी में प्रेम कहानी लिखी है। इसी तरह उनकी अकेले की गजल संग्रह किताब फरिश्ते है, जिसका अभी हाल ही में लोकार्पण हुआ है, जिसके प्रकाशन में पंजाब के जिला कपूरथला से संबंधित शहबाज खान ने अपने सहयोगियों सहित उसकी मदद की है। सुभाष के लेख जहां राष्ट्रीय स्तर पर छपे हैं, वही उन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी स्थान मिलना बड़े गर्व की बात है। 

प्रशासन व सरकार से मायूस
सुभाष ने कहा कि वह प्रशासन व सरकार से वह मायूस है, क्योंकि उसके इलाज के लिए किसी ने भी कोई कदम नहीं उठाया। उसके घर की आॢथक स्थिति ऐसी नहीं है कि उसके घरवाले उसका इलाज करवा पाते। उसने कहा कि उसे प्रेरणास्रोत जो किताबें चाहिए, वे उसकी पहुंच से परे हैं। उसके पास इतनी जमापूंजी भी नहीं है कि वह उन्हें खरीद सके। 

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Content Writer

Vijay

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