पढ़िए, शिमला के अंकुश भारद्वाज की Indian Idol तक पहुंचने के सफर की कहानी

Friday, Nov 30, 2018 - 10:49 AM (IST)

कुमारसैन (नीरज सोनी): 15 दिसम्बर, 1991 को शिमला जिला के कोटगढ़ के लोश्टा गांव में पैदा हुए अंकुश भारद्वाज को बचपन से ही गीत-संगीत व गायन का शौक रहा है। इसी जुनून को लेकर करीब एक वर्ष पूर्व अंकुश माता-पिता की आज्ञा के बिना शिमला से मुंबई को निकल पड़ा। करीब एक वर्ष तक मुंबई में जीतोड़ मेहनत कर इंडियन आइडल के ऑडिशन में सफलता पाई और अपनी मधुर व सुरीली आवाज के दम पर फिल्म इंडस्ट्री के बड़े-बड़े सितारों का मन मोह लिया। उसने इंडियन आइडल में सिलैक्ट होने के बाद घर फोन किया। अंकुश के पिता सुरेश भारद्वाज विद्युत बोर्ड में कार्य करते थे, जहां पर शुरू में करीब 20 वर्षों तक उन्होंने मीटर रीडिंग का कार्य किया, जिसमें रोजाना ही कई किलोमीटर तक उन्हें पैदल चल कर गांव-गांव में मीटर रीडिंग का कार्य करना पड़ता था।

 

अंकुश के गायन के शौक का कभी भी विरोध नहीं किया

सुरेश भारद्वाज ने बताया कि उन्होंने अंकुश के गायन के शौक का कभी भी विरोध नहीं किया, बल्कि एक गुरु बनकर उसे हमेशा प्रोत्साहित किया, जबकि अंकुश की माता कमलेश भारद्वाज को अंकुश का गीत-संगीत का शौक कभी भी गवारा नहीं रहा। उसने स्कूल समय से ही एकलगान की कई प्रतियोगिताओं में विजेता बनकर स्कूल का नाम रोशन किया। इतना ही नहीं, कोटगढ़ के दशहरा उत्सव में भी कई बार वह विजेता बना। अंकुश भारद्वाज ने 8वीं कक्षा तक की पढ़ाई कोटगढ़ के सरस्वती विद्या मंदिर दलाण में पूरी की और इसके बाद शिमला में पढ़ाई की। 

अंकुश के माता-पिता लोगों से कर रहे वोट डालने की अपील

अंकुश ने एम.बी.ए. फाइनांस की पढ़ाई पूरी करने के बाद म्यूजिक को अपना करियर बनाया है। अंकुश इन दिनों मुंबई में बॉलीवुड म्यूजिक डायरैक्टर अरमान मलिक के साथ बतौर असिस्टैंट भी काम कर रहे हैं। अंकुश भारद्वाज को इंडियन आइडल विजेता बनाने के लिए उनके माता-पिता, अन्य परिजन व कोटगढ़ क्षेत्र के स्थानीय लोग उन्हें वोट देने के अलावा अन्य लोगों से भी उन्हें वोट डालने की अपील कर रहे हैं। वहीं अंकुश के परिजनों द्वारा अपने कुलदेवता चतुमुर्ख देवता मेलन व मां हाटू में पूजा-अर्चना कर अंकुश को विजेता बनाने के लिए मन्नतें मांगी जा रही हैं। उधर, माता चिंतपूर्णी से दुआ मांग रहे हैं नितिन के चाहने वाले और नितिन के पिता राजेंद्र बबलू व माता शशि बाला।

आंखों की रोशनी भी चाहे चली जाए, संगीत नहीं छोड़ूंगा: अंकुश 

अंकुश भारद्वाज ने कहा कि मैं हिमाचल प्रदेशवासियों का प्यार और माता-पिता व गुरुजनों के आशीर्वाद से ही इंडियन आइडल के इस मुकाम पर पहुंचा हूं। उन्होंने कहा कि यदि मेरी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए भी चली गई, तब भी संगीत को नहीं छोड़ूंगा। बता दें कि अंकुश भारद्वाज पिछले 3 वर्षों से आंखों की एक विचित्र बीमारी केरोटोकोनस से पीड़ित हैं, जिसमें उनकी आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होती जा रही है। हालांकि विशेषज्ञ डॉक्टरों ने इस बीमारी का इलाज संभव बताया है, लेकिन इसके लिए लाखों रुपए का खर्चा होगा।

Ekta