अगले साल के सेब सीजन में टैलीस्कोपिक कार्टन पर लग सकती है रोक !

Wednesday, Aug 14, 2019 - 11:49 AM (IST)

शिमला (देवेंद्र हेटा): हिमाचल में अगले साल सेब सीजन के लिए यूनिवर्सल कार्टन अनिवार्य हो सकता है। इसे लेकर राज्य सरकार अध्यादेश लाने पर विचार कर रही है। यूनिवर्सल कार्टन में सिर्फ 20 किलो सेब ही भरा जा सकता है। मौजूदा समय में टैलीस्कोपिक कार्टन में 25 से 35 किलो सेब भरकर सरेआम बागवानों का शोषण किया जा रहा है, जबकि दाम 20 किलो के हिसाब से मिल रहे हैं। इस तरह प्रति पेटी 5 से 15 किलो अतिरिक्त सेब भरा जा रहा है। इस लिहाज से सेब के मौजूदा बाजार भाव के हिसाब से बागवानों को 250 से 800 रुपए प्रति पेटी का नुक्सान उठाना पड़ रहा है। यह सब देखते हुए सरकार यूनिवर्सल कार्टन लागू कर सकती है। 

बागवानों से धोखाधड़ी क्यों की जा रही है?

किसान संघर्ष समिति के सचिव संजय चौहान तथा फल एवं सब्जी उत्पादक संघ के प्रदेशाध्यक्ष हरीश चौहान ने टैलीस्कोपिक कार्टन पर तत्काल रोक लगाने तथा सेब को पेटी के हिसाब से नहीं किलो के हिसाब से बेचने की व्यवस्था करने का आग्रह किया है। उन्होंने बताया कि दुनियाभर में सेब किलो के हिसाब से बिकता है तो हिमाचल में ऐसा न करके बागवानों से धोखाधड़ी क्यों की जा रही है?

यह है सेब पैकिंग का इंटरनैशनल स्टैंडर्ड 

दुनियाभर में 4 तह (लेयर) में सेब भरा जाता है। यह सेब पैकिंग का अंतर्राष्ट्रीय स्टैंडर्ड है। दुनिया के किसी भी मुल्क से जब भारत के लिए सेब आयात किया जाता है तो भी यूनिवर्सल कार्टन में किलो के हिसाब से खरीदा जाता है, लेकिन हिमाचल में टैलीस्कोपिक कार्टन में तकरीबन 2 पेटी का सेब एक ही पेटी में भरा जाता है। यूनिवर्सल कार्टन में 4 तह सेब भरा जाता है, जबकि टैलीस्कोपिक कार्टन में 6 से 7 तह में सेब भरा जाता है।

वीरभद्र सरकार ने दो बार लाया था विधेयक

पूर्व वीरभद्र सरकार ने भी यूनिवर्सल कार्टन को लेकर दो बार विधेयक लाया था, लेकिन बिना तैयारियों के लाया गया विधेयक बागवानों के विरोध के बाद वापस लेना पड़ा। उस दौरान यूनिवर्सल कार्टन तो अनिवार्य कर दिया गया, मगर बाजार में इसकी उपलब्धता नहीं करवाई गई। कार्टन बनाने वाली कंपनियों से पहले संपर्क नहीं साधा गया। हालांकि यूनिवर्सल कार्टन इस्तेमाल न करने वाले बागवानों को पैनल्टी लगाने इत्यादि का प्रावधान अध्यादेश में कर लिया गया था। यूनिवर्सल कार्टन के साइज इत्यादि तैयार करने पर पूर्व सरकार ने तकरीबन 11 लाखरुपए खर्च किए थे, लेकिन यह लागू नहीं हो सका।

Ekta