मंडी में स्थापित होंगी रानी खैरगढ़ी और महाराणा प्रताप की प्रतिमा : रामस्वरूप शर्मा

Sunday, Mar 01, 2020 - 05:12 PM (IST)

मंडी (पुरुषोत्तम शर्मा): मंडी में स्थापित होने वाली रानी खैरगढ़ी और महाराणा प्रताप की प्रतिमा के लिए सरकार ने 37 लाख रुपए बजट का प्रावधान कर दिया है। रामस्वरूप शर्मा ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने प्रतिमाओं के लिए मंजूरी दे दी है। छोटी काशी मंडी में अब जल्द महान स्वतंत्रता सेनानी रानी खैरगढ़ी और महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं स्थापित की जाएगी। उन्होंने बताया कि रानी खैरगढ़ी और महाराणा प्रताप की प्रतिमाओं को स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से मांग उठाई गई थी और इस दिशा में उन्हें एक ज्ञापन भी सौंपा था, जिस पर मुख्यमंत्री ने इन प्रतिमाओं को स्थापित करने के लिए 37 लाख बजट का प्रावधान किया है। सांसद ने कहा कि ये प्रतिमाएं मंडी में स्थापित होंगी तथा इसके लिए स्थान चिन्हित करने के लिए डीसी मंडी को निर्देश दिए गए हैं। जल्दी ही प्रशासनिक रिपोर्ट के मुताबिक इन प्रतिमाओं को स्थापित करने का कार्य शुरू कर दिया जाएगा।

प्रतिमाओं को स्थापित करने के पीछे ये है उद्देश्य

उन्होंने कहा कि प्रतिमाओं को स्थापित करने के पीछे उद्देश्य उन युवाओं को महान स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में रू-ब-रू करवाना है जो इनके इतिहास के बारे में नहीं जानते। रानी खैरगढ़ी ने स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ लोहा लिया जो छोटी काशी के लिए सम्मान की बात है। महाराणा प्रताप उदयपुर मेवाड सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे और उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रण के लिए अमर है। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीें की थी और कई बार मुगलों को युद्ध में पराजित किया था। उनके  इतिहास को आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए प्रतिमा लगाई जा रही है।

इंदिरा मार्कीट में शहीद स्मारक बनकर तैयार

उन्होंने कहा कि इंदिरा मार्कीट में शहीद स्मारक बनकर तैयार हो चुका है जिसका लोकार्पण मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर जल्दी ही करेंगे। इसके अलावा मंडी में एक शहीद पार्क स्थापित करने के लिए जगह का चयन किया जा रहा है यदि शहीद पार्क के लिए उचित जगह प्राप्त होती है जल्द ही शहीद पार्क का निर्माण भी होगा।

आखिर कौन थी रानी खैरगढ़ी?

मंडी की रानी ललिता कुमारी थीं, जिन्हें लोग खैरगढ़ी के नाम से जानते थे क्योंकि उन्हें मंडी के राजा खैरगढ़ (यूपी) से ब्याह कर लाए थे और वह राजा की तीसरी रानी थी। 1912 ई. में राजा भवानी सेन की मृत्यु के बाद विधवा रानी खैरगढ़ी ने राज वैभव त्याग कर क्रांति की राह अपनाई थी। उन्होंने राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में कूदकर क्रांतिकारी दल के साथ मिलकर बम बनाने और शस्त्रों के साथ महिलाओं को प्रशिक्षण देकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उन्हें दूसरी झांसी की रानी भी कहा जाने लगा था। वे स्वतंत्रता संग्राम में हिमालयी क्षेत्र से राजघराने की पहली महिला थीं और राजकोष से भी क्रांतिकारियों की मदद की थी। बाद में क्रांतिकारियों की मदद करने पर अंग्रेजों ने उन्हें रियासत से निकाल दिया था। इसके बाद वे लखनऊ गई और वहां असहयोग आंदोलन में भाग लिया।

आजादी से पूर्व हो गया था देहांत

बताया जाता है कि लखनऊ से लौटने पर जब राजा जोगेंद्र सेन के बुलावे पर वे जोगिंद्रनगर पहुंचीं तो वहां ग्रामीणों के भेजे क्रांतिकारियों को खाना खाने से उन्हें हैजा हो गया और देश की आजादी से पूर्व ही उनका देहांत हो गया था। सुंदरनगर के नामी साहित्यकार गंगाराम राजी ने उनपर एक उपन्यास एक थी रानी खैरगढ़ी लिखा है जो काफी चर्चित है। 

Vijay