Shimla: हिमाचल विधानसभा पर हाईकोर्ट ने लगाई 50,000 रुपए की कॉस्ट
punjabkesari.in Saturday, Dec 14, 2024 - 08:18 PM (IST)
शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल विधानसभा पर जाली दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त कर्मचारी के खिलाफ दी शिकायत पर कोई कार्रवाई न करने पर 50,000 रुपए की कॉस्ट को सही ठहराया है। हाईकोर्ट की एकल पीठ के फैसले को सही ठहराते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को चुनौती देने वाली विधानसभा की अपील को खारिज कर दिए। खंडपीठ ने कहा कि आम तौर पर यह भारी कॉस्ट लगाने के लिए एक उपयुक्त मामला है।
खंडपीठ ने विधानसभा को स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा कि अपीलकर्त्ता फिर से इस तरह की गुणवत्ताहीन अपील करने का दुस्साहस न करे। कोर्ट ने कहा कि हमें वास्तव में आश्चर्य है कि अपीलकर्त्ता ने अपील क्यों दायर की है, खासकर तब जब तथ्यात्मक मैट्रिक्स से पता चलता है कि अपीलकर्त्ता को एकल पीठ के फैसले से पीड़ित पक्ष नहीं माना जा सकता है। मामले के अनुसार प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल विधानसभा पर जाली दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त कर्मचारी के खिलाफ दी शिकायत पर कोई कार्रवाई न करने पर 50,000 रुपए की कॉस्ट लगाई थी। न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ ने याचिकाकर्त्ता कमल जीत की याचिका को स्वीकारते हुए विधानसभा सचिव को अपने दोषी अधिकारियों के खिलाफ मामले की जांच करने के आदेश भी दिए थे।
कोर्ट ने जांच को उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने और इसकी रिपोर्ट आगे की आवश्यक कार्रवाई करने के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखने के आदेश भी दिए थे। एकल पीठ ने याचिकाकर्त्ता को जूनियर ट्रांसलेटर के पद पर नियुक्ति देने के आदेश दिए थे। जिस कर्मी को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त किया गया था वह पहले ही अपने पद से त्यागपत्र दे चुका था। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ द्वारा की गई उन टिप्पणियों को सही ठहराया जिनमें एकल पीठ ने कहा था कि ऐसे मामलों में नियोक्ता द्वारा समय पर कार्रवाई करने से कतार में लगे अन्य अभ्यर्थियों को परेशानियों से बचाया जा सकता है। नियोक्ता से कम से कम यह अपेक्षा की जा सकती है कि वह शिकायत पर किसी प्रकार की जांच शुरू करे, ताकि यह पता लगाया जा सके कि नियुक्त व्यक्ति के पास पद के लिए अपेक्षित शैक्षिक मानदंड हैं या नहीं।
इस सामान्य ज्ञान तर्क को धत्ता बताते हुए नियोक्ता विधानसभा द्वारा उपरोक्त सामान्य उपाय भी नहीं अपनाया गया। एकल पीठ ने कहा था कि फर्जी दस्तावेज अथवा नकली प्रमाणपत्र के आधार पर रोजगार प्राप्त करना एक गंभीर मामला है, लेकिन विधानसभा ने इस पर आंखें मूंद लीं जिस कारण नियोक्ता का आचरण अशोभनीय है। एकल पीठ ने सूची में अगला स्थान होने के कारण याचिकाकर्त्ता को पद का हकदार माना था। एकल पीठ ने आश्चर्य जताया था कि याचिकाकर्त्ता को पद देने के बजाय विधानसभा ने विवादित पद को पुनः विज्ञापित किया, चयन प्रक्रिया को नए सिरे से शुरू किया और यहां तक कि यह दलील देने की हद तक चला गया कि नई चयन प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी और परिणामस्वरूप रिट याचिका निष्फल हो गई थी। एकल पीठ ने याचिका को स्वीकारते हुए विधानसभा को निर्देश दिया था कि वह याचिकाकर्त्ता को 11 सितम्बर 2019 को विज्ञापित जूनियर ट्रांसलेटर (ओबीसी) के पद पर दो सप्ताह के भीतर नियुक्ति प्रदान करे। इस फैसले को विधानसभा ने खंडपीठ के समक्ष अपील के माध्यम से चुनौती दी थी।