शिक्षा नीति के खिलाफ एसएफआई ने किया राज्यपाल कार्यालय के बाहर प्रदर्शन

Monday, Nov 15, 2021 - 05:03 PM (IST)

शिमला : एसएफआई हिमाचल प्रदेश राज्य कमेटी ने अखिल भारतीय कमेटी के आह्वान पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति के खिलाफ  राज्यपाल ऑफिस के बाहर धरना प्रदर्शन किया। एसएफआई का मानना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति गैर- लोकतान्त्रिक तरीके से बिना संसद सदनो में चर्चा किए तैयार की गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति पूरी तरह से छात्र विरोधी है। इस नीति के द्वारा छात्रों को शिक्षा से वंचित किया जाएगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शिक्षा के क्षेत्र में निजीकरण और शिक्षा के व्यापारीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। वही दूसरी और शिक्षा में शोध को भी खत्म किया जा रहा है। इस नीति के माध्यम से फाउंडेशन स्टेज मे प्री-नर्सरी की बात की गयी है, जो कि 3 वर्ष से 8 वर्ष तक के बच्चों के लिए है। इसमें आंगनबाड़ी को इमर्ज करके आंगनबाड़ी को भी कमजोर करके खत्म करने की कोशिश की जा रही है। यह नीति छात्रों को शिक्षा से वंचित करने वाली नीति है। 

इस नीति में छात्रों को राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय भाषा (हिंदी-इंग्लिश) न सिखाते मात्र क्षेत्रीय भाषा पर जोर दिया गया है, जो की आने वाले समय में छात्रों के भविष्य में और समस्याए उत्पन्न करेगा। इसके साथ छात्रों को वोकेशनल में लकड़ी, बागवानी, मिट्टी के बर्तन इत्यादि सिखाया जाएगा जोकि छात्र के सम्पूर्ण विकास और तर्कशक्ति तथा बुद्धिमता को बढ़ावा देने से कहीं सम्बन्ध नहीं रखता। इसके साथ-साथ चॉइस सिस्टम के साथ छात्र को आर्ट्स के साथ साइंस के सब्जेक्ट पढ़ेगा और कॉमर्स के साथ साइंस और आर्ट्स के सब्जेक्ट जो कि छात्र की किसी भी एक भी स्ट्रीम में स्पेशलाइजेशन नहीं होगी। इसका खामियाजा हिमाचल प्रदेश में छात्र 2013 में आरयूएसए और सीबीसीएस के माध्यम से भुगत चुके हैं। इसके साथ-साथ महाविद्यालयों में डिग्री पूरी करने की अवधि 4 वर्ष की हो जाएगी, जिसमें अगर छात्र एक वर्ष तक पढ़ाई करता है तो सर्टिफिकेट और 2 वर्ष पढ़ाई करता है तो एडवांस डिप्लोमा और 3 वर्ष के बाद डिग्री और 4 वर्ष के बाद बैचलर डिग्री दी जाएगी, जो कि छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। 

जहां सरकार को शिक्षा के स्तर को और सुदृढ़ बनाना था, वही इस नीति के माध्यम से शिक्षा के स्तर को गिरा रही है। इसके साथ एसएफआई ने प्रदेश विश्वविद्यालय में पीएचडी में बिना प्रवेश परीक्षा के हुए दाखिलो को रद्द करने की मांग की। बिना प्रवेश परीक्षा के दाखिले से शोध की गुणवत्ता में कमी आएगी। हम साफ तौर देख सकते है कि जो प्रवेश परीक्षा पास नहीं कर सकते वो किस तरीके का शोध करने सक्षम होंगे। विश्वविद्यालय कुलपति काबिल छात्रों को दरकिनार करके अपने चहेतों को पीएचडी में प्रवेश दे रहे हैं।  एसएफआई इसका कड़ा विरोध करती है और बिना प्रवेश परीक्षा के दाखिले जल्द से जल्द रद्द और एनईपी 2020 को वापिस नहीं लिया गया तो एसएफआई आने वाले समय में इस प्रदर्शन को और तेज करते हुए उग्र आंदोलन करेगी।
 

Content Writer

prashant sharma