डेरा ब्यास प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों ने प्रवचनों से निहाल की संगत, बोले-मालिक ने जो दिया उसमें संतुष्ट होना सीखें

punjabkesari.in Sunday, May 05, 2024 - 01:48 PM (IST)

नगरोटा बगवां/परौर (दुसेजा): राधा स्वामी सत्संग परिसर परौर में रविवार को डेरा ब्यास प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों महाराज की एक झलक पाने के लिए आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। डेरा प्रमुख ने भी पंडाल में उपस्थित लाखों की संख्या की संगत को प्रवचनों के माध्यम से निहाल किया। गुरिंदर सिंह महाराज ने फरमाया कि मन मांग इच्छाओं का आशिक है इसलिए बेकाबू रहता है। मन को मालिक की भक्ति से जोड़कर अंदर से रस प्राप्त किया जा सकता है। धार्मिक स्थलों पर माथा टेकना एवं नाक रगड़ना परमार्थ नहीं है। किसी भी धर्म एवं डेरे से जुड़ जाओ परन्तु मालिक की भक्ति मनुष्य को स्वयं ही करनी पड़ेगी तभी लाभ मिलेगा। धार्मिक स्थलों पर जाने को केवल कार्यवाही मे ही न शामिल करें बल्कि दिल से वहां पर बैठकर भक्ति एवं सिमरन करें। धार्मिक स्थलों का इतिहास महापुरुषों से जुड़ा हुआ है। 

डेरा ब्यास प्रमुख ने कहा कि मालिक की पहचान तभी होगी जब नाम एवं नामी एक हो जाएंगे। मैं और मेरी को छोड़कर जीवन में आगे बढ़ें। मालिक ने जो दिया उसमें संतुष्ट होना सीखें। नाम सत जग झूठ है। नाम एवं शब्द वह ताकत एवं शक्ति है जिसने सृष्टि को बनाया है। नाम न लिया जाता है न दिया जाता है। नाम मनुष्य के अंदर विराजमान है। गुरु केवल रास्ता दिखाते हैं, साधन समझाते हैं। गुरु द्वारा समझाया जाता है कि कमाई कैसे करनी है ताकि नाम की शक्ति अंदर से जागृत हो सके। मालिक का कोई नाम नहीं है इसलिए अनामी बोला गया है। मालिक को अलग-अलग धर्म के लोग अलग-अलग नाम से पुकारते हैं। 

डेरा ब्यास प्रमुख ने कहा कि मीराबाई को कोई कमी नहीं थी फिर भी उन्होंने राम रतन धन पायो शब्द का उच्चारण किया। राम नाम ही सच्ची दौलत है। मालिक ने मनुष्य को जो मौका दिया है उसे बर्बाद किया जा रहा है। मनुष्य अपनी पहचान तो कर नहीं पाया परंतु मालिक की पहचान करने में जरूर जुटा हुआ है। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना। मजहब की नींव प्रेम प्यार पर रखी हुई है। परमात्मा प्रेम है तो प्रेम ही परमात्मा है। मनुष्य भक्ति का भी आसान तरीका ढूंढता है। कलियुग में नाम का बीज बोने से ही सच्ची भक्ति प्राप्त होगी। मन को काबू कर भक्ति में रस जाना है। राधा स्वामी सत्संग परिसर परौर पंडाल में डेरा प्रमुख गुरिंदर सिंह महाराज के प्रवचनों से पूर्व चल चित्र के माध्यम से मरणोपरांत अंग दान एवं नेत्र दान का महत्व भी बताया गया। 
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Content Writer

Vijay

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