देह छोड़ समाधि में लीन हुए लामा वांगडोर, सैकड़ों भक्तों ने नम आंखों से दी अंतिम विदाई

Wednesday, Nov 06, 2019 - 03:37 PM (IST)

रिवालसर (पुरुषोत्तम): बौद्ध अनुयायियों में अपनी विशेष पहचान रखने के साथ देश-विदेशों में विख्यात रहे जिगर बौद्ध मंदिर रिवालसर के प्रमुख लामा वांगडोर रिम्पोछे उर्फ ओंगदू का बुधवार को बौद्ध धर्म के विधि विधान के अनुसार अंतिम संस्कार कर दिया गया। इसी के साथ आध्यात्मिक लामा का शरीर पंचतत्व में विलीन हो गया। इस मौके पर उनके सैकड़ों भक्तो ने अपने अध्यात्मिक गुरु को याद करते हुए नम आखों से उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की। बता दें 87 वर्षिय लामा बीते 18 सितम्बर को प्रात: 2:52 बजे अपनी देह का त्याग कर समाधि में लीन हो गए थे। बाद में उन्होंने शरीर का त्याग कर दिया था। 

लामा के देह त्याग के बाद देश-विदेशों से आए उनके अनुयायी व लामा उनकी देह की 49 दिनों तक लगातार पूजा-पाठ कर रहे थे, वहीं बुधवार को रिवालसर स्थित गुरु पद्मसंभव रिम्पोछे की मूर्ति के प्रांगण में बनाए विशेष स्थान (समाधि स्थल) पर विशेष पूजा पाठ के साथ उनका अग्नि संस्कार कर दिया गया। इस मौके पर जिगर बौद्ध धर्म गुरु तथा देश-विदेश से आए उनके अनुयायी व स्थानीय लोग मौजूद रहे। लामा वांगडोर रिमपोछे के जीवन के बारे में उनकी प्रिय शिष्य लीना जो अमेरिका से है तथा लामा के देह त्याग के बाद रिवालसर आई हुई है। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि लामा जी सिद्धपुरुष थे। उनका जन्म तिब्बत के खम प्रांत स्थित जिगर में 20 फरवरी 1932 में हुआ था।

वर्ष 1958 में वह तिब्बत छोड़ अपने गुरु टुकसी रिम्पोछे जो बीमार थे तथा चल फिर नहीं सकते थे, उनको अपनी पीठ पर उठाकर पहाड़ों को लांघते हुए यहां पहुंचे थे तथा रिवालसर स्थित सरकी धार पहाड़ी पर कई वर्षों तक अकेले तपस्या में लीन रहे। वह बहुत बड़े तपस्वी व सिद्धपुरुष थे। जब स्वप्न के माध्यम से उन्हें इस पहाड़ी व उनके दर्शन हुए तो वह उन्हें ढूंढती हुई यहां पहुंची थी तथा उसके बाद उनसे बौद्ध धर्म की शिक्षा ग्रहण की तथा वर्षों उनकी सेवा की उनके आज भी देश-विदेशों में हजारों अनुयायी रहे हैं। लामा वांगडोर का सपना रिवालसर में बहुत बड़ा भव्य मंदिर व भगवान गुरु पद्मसंभव की मूर्ति बनाने का था, जिसको उन्होंने अपने जीवन काल में पूरा किया। मूर्ति पर करोड़ों की धन राशि खर्च हुई है, जिसको देखने देश-विदेश से लोग यहां चले रहते हैं।

Ekta