रानी पूर्णम्मा मंजरी डोली में लेकर आई थीं मां काली की मूर्ति

punjabkesari.in Saturday, Apr 13, 2024 - 10:19 PM (IST)

कुठाड़ (मदन): दून विधानसभा क्षेत्र की प्राचीन रियासत मेहलोग में वैसे तो देवी-देवताओं के बहुत से मंदिर हैं परंतु अगर जानकारों की मानें तो सूरजपुर गांव में स्थित काली माता मंदिर की अपनी अलग ही मान्यता व इतिहास है। बता दें कि पट्टा से बरोटीवाला सड़क के किनारे पहाड़ों की तलहटी में बहुत सुंदर व मनमोहक छटा बिखेरे गांव सूरजपुर की शोभा देखते ही बनती है। जानकारों के मुताबिक इस गांव में रियासत काल में सर्दियों की राजधानी होती थी तथा यहां पर तत्कालीन शासकों ने अपनी कुल देवी का मंदिर स्थापित किया था, जो रियासत काल में बहुत ही ख्याति प्राप्त था। मेहलोग रियासत के वंशज व अंतिम शासक राणा एन.सी. सिसोदिया के पौत्र जितेन्द्र सिंह सिसोदिया (जोधपुर राजस्थान) व खुर्मिन्दर सिंह सिसोदिया (पट्टा) ने बताया कि उनके दादा की माता रानी पूर्णम्मा मंजरी के मायके बंगाल के कोलकाता में थे। वह वहां से काले संगमरमर की बनी हुई काली माता की मूर्ति को डोली (पालकी) में लेकर आई थीं। 1922 में उन्होंने सूरजपुर में काली माता का मंदिर बनवाकर विधिवत स्थापना भी करवाई थी।

बाद में 1958 में मेहलोग के अंतिम शासक राणा नरेंद्र चंद सिसोदिया ने महलों के निचली तरफ मंदिर निर्माण के लिए जमीन दान की थी। 1922 से ही इस मंदिर में पूजा-अर्चना होती है। तत्कालीन शासकों द्वारा पुजारी को मेहनताना दिया जाता था। वैसे तो वर्ष भर लोग मंदिर में माथा टेकने आते रहते हैं लेकिन नवरात्रों के अवसर पर विशेष आयोजन होते हैं व यहां श्रद्धालुओं की खूब चहल-पहल रहती है। सूरजपुर के राज कुमार शर्मा ने बताया कि मंदिर निर्माण के समय से ही उनके परिवार के सदस्य पीढ़ी दर पीढ़ी पूजा-पाठ का जिम्मा संभाले हुए हैं। सबसे पहले पंडित राघव, फिर रमेश किशोरी, चेत राम फिर उनके पिता प्रकाश चंद राज पुजारी के रूप में इस मंदिर में पूजा-अर्चना कर पुजारी का कार्य देखते रहे हैं। राज कुमार शर्मा पिछले 40 वर्षों से मंदिर की देखभाल व पूजा-पाठ का कार्य देख रहे हैं। वर्तमान में यह प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिर सौंदर्यीकरण व विस्तारीकरण की राह देख रहा है।

 


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Content Writer

Kuldeep

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