कंचनजंघा की चढ़ाई करने वाले विश्व के पहले पर्वतारोही हैं यह जांबाज, पढ़िए किस नाम से पुकारते हैं लोग

punjabkesari.in Saturday, Jul 22, 2017 - 02:13 PM (IST)

कुल्लू: पूरे विश्व में अगर देखा जाए तो पर्वतारोहण के प्रति समर्पित कई ऐसे जांबाज मिल जाएंगे जिन्होंने अपना पूरा जीवन ही पहाड़ों के नाम कर दिया। पर्वतारोहण के प्रति सच्ची दिवानगी को अगर कोई नाम दिया जाए तो वह नाम होगा लाहौल-स्पीति के कर्नल प्रेम चंद का। उनका नाम भारत के उन मशहूर पर्वतारोहियों में शुमार है जिन्होंने अपना पूरा जीवन भारतीय फौज की सेवा और पर्वतारोहण के नाम कर दिया। इस क्षेत्र से जो लोग जुड़ें हैं वे आज भी उनको दा माऊंटेन मैन, दा स्नो टाइगर और दा हीरो ऑफ कंचनजंघा के नाम से जानते हैं। कर्नल प्रेमचंद विश्व के पहले ऐसे पर्वतारोही हैं जिन्होंने 1977 में विश्व में सबसे पहले पर्वतारोही होने का गौरव हासिल किया तथा अपने हौंसलों के दम पर कंचनजंघा को फतह किया था। 
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1969 में अकेले ही स्की चलाते हुए रोहतांग को पार किया
इसके बाद भारतीय सरकार ने इस अभियान की सफलता पर डाक टिकट जारी कर इस अभियान को सम्मान दिया था। कर्नल पहाड़ों से बहुत प्रेम करते हैं और पूरे हिमालयन शृंखला को बेहद सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। उन्होंने 1984 के एवरैस्ट अभियान के दल को भी प्रशिक्षित किया था और इसी दल में एवरैस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बिछेंद्री पाल को भी इन्होंने ही प्रशिक्षित किया था और इसके अलावा सबसे छोटी उम्र में एवरैस्ट को फतह करने वाली डिक्की डोलमा को भी स्की कोर्स करवाया था। इसके अलावा 1972 में जापान में आयोजित होने वाले विंटर ओलिम्पिक में पहली भारतीय स्की टीम के लीडर और मैनेजर के तौर पर भी कर्नल का चयन किया गया था। उन्होंने अप्रैल, 1969 में अकेले ही स्की चलाते हुए रोहतांग को पार किया था। 


लाहौली होने के कारण पर्वतारोहण में मिला लाभ
7 जून, 1942 को जन्मे कर्नल प्रेमचंद लाहौल के जहालमा पंचायत के अंतर्गत आने वाले लिंडूर गांव से संबंध रखते हैं। कर्नल ने कहा कि एक लाहौली होने के नाते और पहाड़ से हमारा संबंध बचपन से ही रहा है और पर्वतारोहण के लिए जो जरूरी है वे सब तो लाहौल-स्पीति के लोग उन दिनों रोजमर्रा की जिंदगी में ही करते रहते थे। वह बताते हैं कि बचपन से ही पहाड़ों पर चढ़ने और उतरने का अभ्यास तो लाहौल में रोज ही करते थे और उन दिनों मनाली से लाहौल का सफर पैदल ही तय करते थे इसलिए उन्हें पर्वतारोहण के क्षेत्र में कभी भी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा।


कई पर्वतारोहण संस्थानों से जुड़े रहे
कर्नल पर्वतारोहण के दौरान और सेवानिवृत्त होने के बाद भी कई पर्वतारोहण संस्थान से जुड़े रहे जिनमें भारतीय पर्वतारोहण संस्थान, विंटर गेम्स फैडरेशन ऑफ इंडिया, नैशनल एडवैंचर फाऊंडेशन, टाटा एडवैंचर फाऊंडेशन, सिंगापुर एन.सी.सी., मलेशियन चोउखांभा एक्सपेडीशन 1996, मलेशियन एवरैस्ट 1997, चाइना एवरैस्ट, इंडो-नेपाल वूमेन एक्सपेडीशन, वाई.पी.एस. चंडीगढ़, मालवा स्कूल गढ़वाल व बी.सी.एस. शिमला के साथ-साथ अर्थ वॉच ग्रुप फ्रोम यू.के. आदि के साथ जुड़े रहे। पर्वतारोहण को लेकर जो अनुभव कर्नल प्रेमचंद के पास है वह वर्तमान में शायद ही किसी और के पास है। इसलिए लाहौल में अक्सर कर्नल प्रेमचंद को हिमाचल प्रदेश में साहसिक खेलों का ब्रांड एम्बैसेडर बनाने की मांग उठती है। कर्नल प्रेमचंद के नजदीकी लोग मानते हैं कि कर्नल प्रेमचंद स्वयं में ही जीता जागता संस्थान है और उनके अनुभव और मार्गदर्शन का लाभ समस्त हिमाचलवासियों को मिलना चाहिए। 


कई बार हुए सम्मानित
वह भारतीय डोगरा रेजीमैंट से संबंध रखते हैं और इसी दौरान सेना और पर्वतारोहण के क्षेत्र में अद्भुत योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इसमें कीॢत चक्र, सेना मैडल, विशिष्ट सेवा मैडल, जॉर्ज मेकगेरिगर मैडल, भारतीय पर्वतारोहण संस्थान द्वारा स्वर्ण पदक, भारतीय पर्वतारोहण संस्थान द्वारा रजत पदक व प्रेंच मैडल के अलावा भी कई पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। कर्नल प्रेमचंद अपने सम्मान के बारे कहते हैं कि पर्वत चढऩे से ज्यादा जरूरी है कि आप पर्वतारोहण के क्षेत्र में क्या उदाहरण छोड़ के जा रहे हो और जिस संस्थान से जुड़े हो, उस संस्थान के लिए और देश के लिए क्या कर के जा रहे हो। इसलिए सभी युवा पर्वतारोहियों को संदेश देते हुए कहते हैं कि पर्वतारोहण को अपना जुनून बनाओ न की इसे मात्र अपने व्यवसाय का जरिया।


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