झीड़ी हादसे से सबक लिया होता तो न जाती कुल्लू बस हादसे में इतनी जानें

Sunday, Jun 23, 2019 - 11:10 AM (IST)

मंडी (पुरुषोत्तम): सड़क हादसे रोकने के लिए सरकार और प्रशासन ने वर्ष 2013 में हुए अब तक के सबसे बड़े झीड़ी बस हादसे के बाद हुई न्यायिक जांच की रिपोर्ट पर अमल किया होता तो शायद कुल्लू के बंजार हादसे में इतनी जानें न जाती। मात्र 6 वर्ष पूर्व सौंपी गई इस रिपोर्ट के बाद तत्कालीन सरकार ने बड़े-बड़े वायदे किए कि सड़क हादसे रोकने के लिए मंडी जिला प्रशासन की ओर से तैयार की गई, न्यायिक जांच की रिपोर्ट को अक्षरश: लागू किया जाएगा क्योंकि कमेटी ने बड़ी गंभीरता से 25 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें कमेटी ने रिपोर्ट सरकार व ट्रांसपोर्ट विभाग को सौंपते हुए 9 प्वाइंट्स का सुझाव भी दिया था। रिपोर्ट के बाद जैसे ही बड़ा प्रशासनिक फेरबदल हुआ तो जांच रिपोर्ट बनाने वाले हिमाचल प्रशासनिक सेवा के अफसर भी बदल गए और उसे लागू करने का जिम्मा जिन भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों पर था उनके भी महकमे बदल गए।  

तत्कालीन परिवहन मंत्री जी.एस. बाली कुछ दिन  बसों में चढ़कर नाके लगाते स्वयं दिखे लेकिन लालफीताशाही की शिकार यह व्यवस्था चंद दिन में ही सब भूल गई और ये सुधार की सिफारिशें रद्दी की टोकरी में चली गईं। हालांकि ऐसा नहीं है कि इसके बाद ऐसी जांच रिपोर्ट नहीं तैयार हुई लेकिन पहाड़ी प्रदेश में सबसे बड़ा सड़क हादसा झीड़ी का ही अब तक हुआ है जिसमें 47 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। लिहाजा इस रिपोर्ट को लागू करने से व्यवस्था में सुधार आ सकता था। इसके बाद भी कई भीषण सड़क हादसे हुए लेकिन जांच रिपोर्ट सार्वजनिक ही नहीं हुई जिससे क्या एहतियाती कदम सरकार ने उठाए ये जनता आज तक नहीं जान पाई है। सही मायने में अगर सड़क हादसे रोकने के लिए आज से 6 वर्ष पूर्व दिए गए सुझावों को मान लिया गया होता तो पिछले इन वर्षों में बड़े सड़क हादसे रोके जा सकते थे।

झीड़ी बस हादसा चालक की लापरवाही थी

जांच रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा गया है कि झीड़ी बस हादसे का एकमात्र कारण बस चालक की लापरवाही थी जो मालिक का बेटा था और उस दिन स्वयं बस चला रहा था। हादसे के वक्त आगे बैठे तेज प्रकाश निवासी नाऊ, पवन कुमार निवासी कैहनवाल मंडी, नाथू राम निवासी खोखण और ज्ञान चंद निवासी आनी का बयान इसमें दर्ज है जिसमें उन्होंने कहा कि बस चालक तेजी से गाड़ी चला रहा था और उसके बगल में बोनट पर एक अन्य युवा बैठा था जिससे चालक बात कर रहा था। हादसा स्थल से 1 कि.मी. पीछे ही उसे मोबाइल फोन पर कॉल आई और वह एक हाथ से बस का स्टेयरिंग पकड़े हुए था और दूसरे हाथ से मोबाइल से बात कर रहा था। बस सड़क से बाहर अनियंत्रित होते ही चालक ने खुद छलांग लगा दी जिससे वह सकुशल बच निकला और हादसे में 44 लोगों की मौके पर ब्यास के पानी में डूब जाने से मौत हो गई। 

इस हादसे में 14 गंभीर रूप से घायल हुए थे और 3 को मामूली चोटें आई थीं जो पहले ही कूद गए थे। हादसे में 14 गंभीर रूप से घायलों में से 3 की बाद में मौत हो गई। जांच में पी.डब्ल्यू.डी. के मैकेनिकल विंग मंडी के एस.डी.ओ. ने जांच की थी जिसमें बस में कोई तकनीकी खराबी नहीं पाई गई थी। बस चालते वक्त चालक के पास एल.एम.वी. लाइसैंस था और बाद में उसने अपना टी.पी.टी. लाइसैंस भी पेश किया। बस चालक उस दिन आराम कर रहा था और मालिक अशोक कुमार ने बेटे अंकुश को बस का स्टेयरिंग संभाल दिया था। हादसे के बाद बस सेवा ही बंद हो गई और सारा मुआवजा कोर्ट ने मालिक से वसूला जिसके लिए उसे जमीन तक बेचनी पड़ी। करीब 10 करोड़ रुपए का मुआवजा कोर्ट के आदेश पर उस वक्त बांटा गया और सरकार की ओर से प्रत्येक मृतक के परिजनों को मात्र डेढ़ लाख रुपए की राशि दी गई थी जिसे इसी हादसे के बाद 4 लाख कर दिया गया है। 

ये हैं 9 सुझाव जो सरकार को सौंपे थे

  • लाइसैंस बनाने की प्रक्रिया दो चरणों में हो, जिसमें एक अधिकृत जारी करने वाले अधिकारी से और दूसरा क्रॉस चैक करने के लिए उसके ऊपर सक्षम अधिकारी से साक्षात्कार व ट्रायल लेकर। 
  • यात्री वाहनों की नियमित जांच मैकेनिकल इंजीनियर से होनी चाहिए। 
  • ओवरस्पीड रोकने को नाके, लेजर स्पीड गन, डिजीटल कैमरा का प्रयोग व अवहेलना पर अधिकतम 25 हजार रुपए जुर्माना। 
  • ड्रंकन ड्राइविंग रोकने के लिए उपकरणों का प्रयोग व लाइसैंस कैंसिल करने की प्रक्रिया सख्त। 
  • बसों में ड्राइवर सीट के पीछे-ऊपर आर.टी.ओ. और पुलिस का नम्बर मोटे अक्षरों में अंकित हो। 
  • ब्लैक स्पॉट चिन्हित कर संवेदनशील जगहों पर सूचना और सुधार कार्य। 
  • यात्री वाहन चालकों के लिए वर्दी और आई कार्ड आवश्यक।
  • ओवरलोङ्क्षडग रोकने के लिए ट्रैफिक ड्यूटी पर तैनात जवान से रिपोर्ट और गुप्त सूचना पर छापेमारी। 
  • घायलों के तुरंत इलाज को एम्बुलैंस बढ़ाना और ट्रामा सैंटर की जरूरत पर बल।

इनमें ये कार्य हुए बाकी पर अमल नहीं 

  • ओवरस्पीड रोकने के लिए नियमित नाके व लेजर स्पीड गन, डिजिटल कैमरे का प्रयोग शुरू।
  • बसों में ड्राइवर सीट के पीछे-ऊपर आर.टी.ओ. और पुलिस का नम्बर मोटे अक्षरों में अंकित।
  • ब्लैक स्पॉट चिन्हित पर सुधार कार्य पूरे नहीं।
  • यात्री वाहन चालकों के लिए वर्दी जरूरी हुई पर आई कार्ड लटकाना लागू नहीं हुआ। 
  • ओवरलोङ्क्षडग रोकने के लिए ट्रैफिक ड्यूटी पर तैनात जवान से रिपोर्ट पर कार्रवाई शून्य। 
  • ड्रंकन ड्राइविंग रोकने के लिए उपकरणों का प्रयोग व लाइसैंस कैंसिल करने की प्रक्रिया हुई सख्त।  

इन्होंने तैयार की थी जांच रिपोर्ट 

तत्कालीन डी.सी. मंडी देवेश कुमार के आदेश पर तत्कालीन एस.डी.एम. सदर शुभकरण सिंह ने रिपोर्ट तैयार करवाई थी और तब यहां ए.डी.एम. पंकज राय थे। उन्होंने काफी सख्ती से काम किया था और काफी हद तक सुधार भी हुए लेकिन इसके बाद परिवहन विभाग में क्या काम हुए, क्या कार्रवाई हुई कभी कोई जानकारी सामने नहीं आई।

Ekta