शिमला में फिर से शुरू हुई Ice Skating, जमकर लुत्फ उठा रहे पर्यटक

Sunday, Dec 16, 2018 - 02:20 PM (IST)

शिमला (योगराज): एशिया के एकमात्र प्राकृतिक आइस स्केटिंग रिंक लक्कड़ बाजार में एक बार फिर से स्केटिंग शुरू हो गई है और इसके दीवाने खूब लुत्फ उठा रहे हैं। शिमला घूमने आए पर्यटकों के लिए स्केटिंग रिंक काफी आकर्षण का केंद्र रहता है। शिमला के स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को सर्दी की छुट्टियां होने बाद स्केटिंग शुरू होने का बेसब्री से इंतजार रहता है। शिमला आइस स्केटिंग क्लब के कार्यकारी कमेटी सदस्य राजन भारद्वाज ने बताया कि अगर मौसम साफ रहा तो दिसंबर के अंतिम सप्ताह में स्केटिंग लवर के लिए विंटर कार्निवाल का आयोजन किया जाएगा। इसके अलावा जिमखाना का आयोजन भी होगा जिसमें जंप ऑन बास्केट, रिले-रेस, डांसिंग ऑफ दी आइस, आइस हॉकी और मार्शल टिटो जैसी खेल स्पर्धाएं आयोजित की जाएगी।


स्केटिंग कोच पंकज ने बताया कि 2 जनवरी से लेह में होने वाली स्केटिंग की राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए बच्चों को ट्रेनिंग दी जा रही है। 6 साल से अधिक के बच्चों के लिए 2 तरह की 300 और 500 मीटर की स्केटिंग रेस होगी जिसमें विजेता रहने वाले बच्चों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भाग लेने का मौका मिलेगा। वहीं स्केटिंग करने पहुंचे बच्चों ने बताया कि स्केटिंग करना उनकी हॉबी है। स्कूल में एग्जाम का प्रेसर खत्म होने के बाद वे अपनी थकान को स्केटिंग करके दूर करते है। स्केटिंग के बहाने दोस्तों से बात हो जाती है और सुबह जल्दी उठने की आदत भी बानी रहती है। प्राकृतिक रूप से बर्फ जमने की खासियत रखने वाले आइस स्केटिंग रिंक शिमला की देश ही नहीं विदेश में भी अलग पहचान है। शिमला के प्राकृतिक स्केटिंग रिंक को 200 साल भी पूरे होने वाले हैं।


शिमला स्केटिंग रिंक लक्कड़ बाजार के निर्माण की कहानी काफी दिलचस्प है। आयरलैंड के एक सैन्य अधिकारी ब्लेस्सिंगटन ने इस स्केटिंग रिकं का निर्माण किया था। ब्लेस्सिंगटन ने अपने घर के बाहर एक पानी की बाल्टी रखी जिसमें एक दिन बाद सुबह को बर्फ जमने से उनके दिमाग में इस रिकं को बनाने का विचार आया और शिमला के लक्कड़बाजार में 1920 को इस रिंक का निर्माण किया गया। तब से लेकर अभी तक इस रिंक में स्केटिंग की कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हो चुकी है लेकिन कुछ सालों से मौसम में बदलाव के कारण शिमला स्केटिंग क्लब प्रतियोगिता नहीं करवा पा रहा है और स्केटिंग के सत्र भी हर साल कम ही होते जा रहे हैं।

Ekta