एचआरटीसी को अप्रैल में मिलेंगे नए चालक, 10 सैंटरों में ट्रेनिंग पर भेजे

Tuesday, Mar 02, 2021 - 05:52 PM (IST)

शिमला (राजेश) : एचआरटीसी को अप्रैल माह में नए 359 चालक मिलेंगे। निगम प्रबंधन ने चालक भर्ती परिणाम घोषित करने के बाद चालकों को एक माह की ट्रेनिंग में प्रदेश के 10 ट्रेनिंग सैंटरों में भेज दिया है, जहां चालकों को निगम के नियमों के अनुसार बसें चलाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। 359 चालकों की ट्रेनिंग प्रदेश के अलग-अलग स्थानों पर शुरू कर दी गई है। बिलासपुर में 39, चम्बा में 18, जसूर में 34, मंडी में 51, तारादेवी शिमला में 68, हमीरपुर में 37, कुल्लू में 15, नालागढ़ में 43, रामपुर में 33 और सरकाघाट में 21 ड्राइवरों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह ट्रेनिंग 26 मार्च तक चलेगी इसके बाद ट्रेनिंग प्राप्त कर चुके चालकों को प्रदेश के अलग-अलग डिपुओं में भेज दिया जाएगा लेकिन निगम को 359 नए चालक मिलने के बाद भी निगम में चालकों की कमी पूरी नहीं होगी। प्रदेश में 27 बस डिपो हैं यदि 359 चालकों को बराबर-बराबर भी बांटा जाए तो भी एक-एक डिपो को 12 से 13 ड्राइवर मिलेंगे जबकि डिपो में चालकों की जरूरत अधिक है क्योंकि सभी डिपो में एक साथ पूरे ड्राइवर ड्यूटी पर नहीं होते हैं कुछ रैस्ट तो कुछ छुट्टी पर होते हैं। ऐसे में निगम ड्राइवर यूनियन का मानना है कि फिर भी निगम में चालकों की कमी रहेगी।  

कई ग्रामीण रूटों पर निगम नहीं चला पा रहा बसें 

एचआरटीसी कोरोना काल के बाद भी कई ग्रामीण रूटों पर बसें नहीं चला पा रहा है। इसके लिए ड्राइवरों की कमी बताई जा रही है। लोगों से निगम की ओर से वायदा किया गया था कि जब नए ड्राइवर मिलेंगे, उस समय शिमला में चालकों की कमी को पूरा कर दिया जाएगा जबकि अब शिमला को महज 12 से 13 चालक ही मिलेंगे। प्रदेश के 23 डिपुओं में हाल ही में भर्ती किए गए करीब 359 चालकों को भेजा जाना है। ऐसे में एक डिपो को कम ही ड्राइवर मिल पाएंगे जबकि शिमला के अलग-अलग डिपुओं में लगभग 150 ड्राइवरों की जरूरत है। 

जहां चलती थीं दो बसें, वहां अब एक ही जा रही बस 

एचआरटीसी में चालकों की कमी के कारण शिमला ग्रामीण सहित प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों के कई ऐसे रूट हैं, जहां पहले दो बसें जाती थीं। यहां के लिए अब एक ही बस जा रही है। ऐसे में जो लोग सुबह बाजार आते हैं, उन्हें शाम को पैदल ही घर को जाना पड़ता है। ज्यादा दिक्कत कामकाजी लोगों को और स्कूली बच्चों को हो रही है क्योंकि प्राइवेट बसें शहर के अंदर ही अपने रूटों पर चल रही हैं, जबकि सरकारी बसें ग्रामीण रूटों पर नहीं चल रही हैं। बड़ी मुश्किल यह है कि निजी वाहनों से अगर लोग निकलते हैं तो उन्हें पार्किंग के लिए जगह नहीं मिलती है जबकि बसें न चलने के कारण अब उन्हें पैदल या फिर महंगी टैक्सी हायर करके अपने घर पहुंचना पड़ रहा है।

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prashant sharma