हिमाचल में कैसे होगी नई पौध तैयार, सुविधाओं को तरसे खिलाड़ी

Sunday, Dec 30, 2018 - 01:19 PM (IST)

सुंदरनगर (नितेश सैनी): हिमाचल सरकार एक और खेल नीति बनाने के बड़े-बड़े दावे कर रही है वहीं दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश में खिलाड़ियों की नई पौध तैयार करने के लिए पर्याप्त कोच तक नहीं है। अगर बात हम हॉकी खेल की करें तो हिमाचल प्रदेश में शिक्षा विभाग के सात हॉकी हॉस्टल हैं लेकिन इनमें से मात्र दो ही इसमें शिक्षा विभाग के नियमित कोच हैं। बाकी पांच जगह पर शिक्षा विभाग के हॉकी के हॉस्टलों में कोई भी कोच नहीं है। वहां पर काम चलाऊ कोचों के सहारे व्यवस्था चलाई जा रही है। इतना ही नहीं विभाग के हॉस्टल में पर्याप्त सुविधा नहीं है खिलाड़ी खुद खाना पकाने से लेकर सर्द मौसम में आग जला कर पानी गर्म करने के साथ अन्य सुविधाएं जुटाने में विवश हैं। ऐसे में ना तो अपना पूरा ध्यान खेल की ओर लगा पा रहे हैं और ना ही पढ़ाई की ओर, जिससे शिक्षा विभाग की हॉस्टलों में उम्दा खिलाड़ी बनने की उम्मीद से जो बच्चे आए हैं। उनका भविष्य वर्तमान में अंधकार में लटकता दिख रहा है। 


ऐसा ही एक आलम सुंदरनगर के सीसे स्कूल बाल में शिक्षा विभाग के राज्य स्तरीय हाकी छात्रावास में देखने को मिल रहा है। देश के राष्ट्रीय खेल हॉकी में देश व प्रदेश का नाम चमकाने के सपने रखने वाले इसी छात्रावास के खिलाडिय़ों ने राज्य स्तर पर लगातार 23 बार राज्य स्तरीय प्रतियोगिता जीती है और राष्ट्रीय स्तर पर भी बेहतर प्रदर्शन कर सरहना बटोरी है। उन्हें सुविधाएं और बेहतर डाइट उपलब्ध करवाने में सरकार नाकाम साबित हो रही है। पूर्व सरकार के समय त्तकालिन मुख्यमंत्री ने छात्रावास को बेहतर सुविधाए मुहैला करवाने के लिए तीन लाख की राशि स्वीकृत की थी। लेकिन सरकार का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी यह राशि आज तक नहीं मिली है। सुविधाओं को अभाव में खेल छात्रावास से खिलाड़ियों का मोह भंग होने लगा है। 


हॉकी के प्रति जनून रखने वाले छात्रावास में रहने वाले खिलाड़ी अधिकतर गरीब परिवारों से संबंध रखते है। लेकिन खेल खिलाने के अलावा छात्रावास में खिलाड़ियों को नाममात्र की ही सुविधाएं प्रदान की जा रही है। फिर भी खिलाड़ी बच्चें चुप रह कर मौजुदा हालात में समझौता कर रहने को मजबूर है। सुंदरनगर के सीसे स्कूल (बाल) के परिसर में प्रदेश के शिक्षा विभाग ने करीब दो दशक पहले छात्रों के लिए राष्ट्रीय खेल हाकी को बढ़ावा देने के लिए छात्रावास खोला था। जिसमें प्रवेश पाने के लिए राज्य स्तर पर चयन शिविर आयोजित किये जाते है। सुंदरनगर के हाकी छात्रावास के खिलाडिय़ों ने पिछले 23 सालों से लगातार राज्य स्तर पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान हासिल कर ट्राफी अपने नाम की है। इसी छात्रावास के खिलाडिय़ों ने वर्ष 1998 में राष्ट्रीय स्तर पर हुई प्रतियोगिता में सिल्वर पद हासिल किया है। 

छात्रावास के दो खिलाड़ियों ने 1999 में स्कूल इंडिया की ओर से खेलते हुए लुधियाना में हुई अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतवाने में भी अपना अहम योगदान दिया था। इतनी उपलब्धियां अर्जित करने के बाद भी छात्रावास में रहने वाले खिलाडिय़ों को यहां पर बिना सुविधाओं के रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। छात्रावास में हालात यह है कि यहां पर पिछले करीब छह साल से कुक नहीं है जिसके कारण बच्चों को स्वयं ही मिलजुल कर खाना बनाने को मजबूर होना पड़ता है। छात्रावास में वार्डन की भी लंबे समय से नियुक्ति नहीं हो पाई है। छात्रावास का भवन भी करीब पांच दशक पुराना जर्जर हालत में हैै। खिलाड़ी बच्चों को बीमार होने पर मेडिकल का खर्चा भी स्वयं ही वहन करना पड़ता है। यहां तक की उनकी पढ़ाई के लिए फीस तक माफ नहीं है। उन्हें जेब से ही सीसे स्कूल में फीस भरनी पड़ती है।

छात्रावास में 13-18 वर्ष आयु के 30 छात्र रहते है जिन्हें रोजाना खाने के लिए 120 रुपये डाईट का शिक्षा विभाग की ओर से प्रावधान है। इन 120 रुपयों में गैस का खर्च भी शामिल रहता है। जो मंहगाई के इस दौरा में प्रोटिनयुक्त खाने के लिए बेहद कम है। प्रदेश में युवा सेवाएं एव खेल विभाग के जो छात्रावास है वहां पर खिलाडिय़ों के लिए 150 रुपये प्रतिदिन व साई के खेल छात्रावासों में 300 रुपये प्रतिदिन डाइट पर खर्च किये जाते है। जो साफ दर्शाता है कि प्रदेश का शिक्षा विभाग खिलाडिय़ों के स्वास्थय को लेकर कितना चिंतित है। 12वीं पास करने के बाद जब यह चैंपियन खिलाड़ी छात्रावास से निकलते है तो उन्हें आगे इस खेल को खेलने के लिए कोई भी राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढऩे के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है जिसके कारण उनका खेल जमा दो पास करने के साथ ही समाप्त हो जाता है। खिलाड़ियों का कहना है कि अगर सुविधा अच्छी होगी तो परिणाम भी अच्छे होंगे जिससे प्रदेश का नाम रोशन होगा।

Ekta