आखिर कब तक उधार के तेल से रोशन होता रहेगा हिमाचल प्रदेश

Saturday, Feb 09, 2019 - 11:07 PM (IST)

शिमला: हर साल की भांति इस बार भी वित्त वर्ष 2019-20 के लिए लोकलुभावना और ग्रामीण क्षेत्र के विकास पर केंद्रित बजट पेश किया है। इस बार भी बजट में घाटा शामिल है और उसकी पूर्ति के लिए नए कर्ज उठाने की सीमा भी अगले वित्त वर्ष के लिए 5069 करोड़ रुपए तय कर दी गई है लेकिन कर्ज के बढ़ते इस मर्ज से कैसे निपटा जाएगा इस पर आज तक न तो कोई सरकार मंथन कर पाई है और न ही विधानसभा में माननीय। वेतन, पैंशन, कर्ज और ब्याज अदायगी पर बजट की प्रतिशतता 60.44 प्रतिशत तक पहुंच गई है और विकास के लिए इस राशि में बरसों से कोई वृद्धि नहीं हो सकी है।

39.56 प्रतिशत राशि से खींचा जाएगा राज्य के विकास का पहिया

इस बार भी कुल 44,387 करोड़ रुपए के बजट में से केवल 39.56 प्रतिशत राशि से ही राज्य के विकास का पहिया खींचा जाएगा। इस बजट में 7352 करोड़ का वित्तीय घाटा शामिल है जिसकी पूर्ति नए कर्ज उठाकर होगी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने पहले बजट में गत वर्ष हिमाचल के विकास में निजी क्षेत्र की सहभागिता को बढ़ावा देने की बात कही थी। यही नहीं उनके द्वारा वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में 30 नई योजनाएं शामिल कर हर क्षेत्र को छूने की कोशिश हुई थी। हालांकि आंकड़ों के जाल वाले पिछले बजट में ब्यूरोक्रेटिक छाप भी दिखी थी। यही कारण है कि उन 30 नई योजनाओं में से बहुत कम योजनाएं ही जमीन पर उतर सकीं हैं।

पुरानी योजनाओं को जमीन पर खड़ा करने की होगी कोशिश

शनिवार को मुख्यमंत्री ने खुद स्वीकारा है कि इस बार वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में शामिल पुरानी योजनाओं को जमीन पर खड़ा करने की कोशिश की जाएगी, जिससे स्पष्ट होता है कि लोगों की जरूरतों को जाने बगैर पिछले बजट की अधिकांश योजनाएं जनता को पूरा लाभ नहीं दे सकी हैं। इस बार के बजट में भी 15 नई योजनाएं शामिल हैं और पुरानी सभी योजनाओं को जारी रखा गया है। हिमाचल प्रदेश का 85 प्रतिशत क्षेत्र ग्रामीण है और मुख्यमंत्री द्वारा पेश किए गए वर्तमान बजट की राह भी गांव की ओर बहती दिख रही है लेकिन कर्ज उठाकर आखिर कब तक हम अपने घर को रोशन करते रहेंगे।

वर्तमान में हिमाचल पर 54,000 करोड़ के कर्ज का बोझ

वर्तमान में हिमाचल प्रदेश पर करीब 54,000 करोड़ के कर्ज का बोझ है, वहीं हर साल सभी सरकारें जी.डी.पी. के एक तय अनुपात के अनुसार नए कर्ज उठाती आ रही हैं। राज्य के कुल 23 निगम व बोर्डों में से 11 घाटे में चल रहे हैं और इनका कुल घाटा 3629 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। सबसे ज्यादा घाटा राज्य बिजली बोर्ड को हर साल हो रहा है। जबकि राज्य के घरेलू उपभोक्ताओं और किसानों को सस्ती बिजली उपलब्ध करवाने के लिए हर साल सरकार बजट में उपदान का प्रावधान रखती आ रही है। नए कर्ज उठाने के विरोधी रहे जयराम ठाकुर को भी वर्तमान वित्तीय वर्ष में करीब 4546 करोड़ रुपए के नए कर्ज उठाने पड़े हैं।

आर्थिक संसाधनों को बढ़ाने की बात परंतु योजना का खुलासा नहीं

मुख्यमंत्री ने इस बजट में राज्य के आर्थिक संसाधनों को बढ़ाने की बात कही है लेकिन उसके लिए क्या योजना होगी इसका खुलासा वो नहीं कर पाए हैं परन्तु पिछले बजट के बाद राज्य में निजी सहभागिता से एक भी परियोजना सिरे नहीं चढ़ पाई है, वहीं पिछले एक साल में राज्य में नए निवेश की राह भी बंद पड़ी हुई है। सरकार के खजाने की बिगड़ रही सेहत को देखते हुए अब वक्त सभी दलों को एकजुट होकर राज्य को कर्ज से उबारने की राह तलाश करने का आ गया है। हालांकि वर्तमान बजट को एक सीमा में बांधने की कोशिश कुछ हद तक हुई है लेकिन हर साल बढ़ रहे वेतन, पैंशन, ब्याज और कर्ज अदायगी के कारण बजट का घाटा कम नहीं हो पाया है। 

Vijay