हाल-ए-हिमाचल: उपचुनाव का इतिहास, 12 बार हारा, 15 दफा जीता सत्ताधारी दल

Thursday, Oct 10, 2019 - 02:07 PM (IST)

शिमला (संकुश): आधा देश एक बार फिर से चुनावी मोड में है। देशभर में कुल जमा 442 विधानसभा सीटों पर चुनाव है। इनमें से 288 सीटें महाराष्ट्र और 90 सीटें हरियाणा में हैं। दोनों ही राज्यों में विधानसभा का आम चुनाव हो रहा है। इसके अतिरिक्त 64 सीटों पर उपचुनाव हो रहा है। इनमें से दो सीटें हिमाचल की भी हैं। धर्मशाला और पच्छाद। दोनों ही सीटें वहां के विधायकों के सांसद बनकर दिल्ली चले जाने से खाली हुई हैं, जहां बीजेपी फिरसे कब्जे की लड़ाई में अपनों से ही उलझी हुई है। कौन जीतेगा कौन चूक जाएगा इसका फैसला मतदाता 21 अक्टूबर को करेंगे जिसका परिणाम 24 को सामने आ जाएगा। लेकिन इस बहाने प्रदेश में उपचुनाव के इतिहास को जानने  का अवसर भी है। तो आज हम आपको वही इतिहास बताएंगे।

प्रदेश में अब तक कुल  27 सीटों पर उपचुनाव हो चुका है। पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था और उसी साल से उप-चुनाव का सिलसिला भी शुरू हो गया था। 1952 में आम चुनाव के बाद सोलन-2, रेणुका , बिलासपुर, कोट कहलूर, गेहड़वीं और घुमारवीं के लिए उप चुनाव हुआ था। सोलन-2 से प्रजापति सोशलिस्ट पार्टी के हीरा पाल, रेणुका से कांग्रेस के सूरत सिंह, बिलासपुर से आज़ाद दीनानाथ , कोट कहलूर से निर्दलीय संत राम, गेहड़वीं से आज़ाद उमाबती और घुमारवीं से आनंद चंद आज़ाद जीते थे। बिलासपुर की सभी चारों सीटों पर सत्ताधारी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा था और सभी सीटें आज़ाद उम्मीदवारों ने जीती थीं। इसी तरह 1956 में घुमारवीं से आनंद चंद के इस्तीफे से खाली हुई सीट पर फिरसे आज़ाद कांशी राम जीते।  

डॉक्टर परमार भी उपचुनाव लड़कर आए थे 

1956 के बाद 1963 में फिर उप चुनाव हुआ। इसमें चौपाल से कांग्रेस के मोहन लाल जीते। यह सीट  टेरिटोरियल परिषद सदस्य ए सिंह के निधन से खाली हुई थी। उधर बिना टेरिटोरियल परिषद सदस्य मुख्यमंत्री बने डॉक्टर यशवंत परमार के लिए हितेंद्र सिंह ने संगड़ाह सीट खाली की जिस पर चुनकर डाक्टर यशवंत परमार चुनकर विधानसभा पहुंचे। दरअसल 1956 में विधानसभा रद हो गई थी और फिर जब 1963 में दोबारा बहाल हुई तो तत्कालीन टेरिटोरियल कौंसिल को ही विधानसभा मान लिया गया था। डॉक्टर परमार उसके सदस्य नहीं थे। लिहाजा सीएम बनने के बाद उनका विधायक बनना जरूरी था और इसीलिए छह माह के भीतर सीट खाली कराकर उनका निर्वाचन कराया गया था। 

उसके बाद 18 साल बाद प्रदेश में कोई उप चुनाव हुआ। बनीखेत में देस राज महाजन के निधन से खाली हुई सीट पर 1981 बिमला महाजन, देवेंद्रा कुमारी और किशोरी लाल में मुकाबला हुआ। टिकट नहीं मिलने से आज़ाद लड़ी  बिमला महाजन और अन्य निर्दलीय हेत राम राणा ने मुकाबले को चौकोना बना डाला और कांग्रेस प्रत्याशी हार गईं।किशोरी लालाजीते थे। हालांकि तकनीकी कारणों से यह चुनाव निर्वाचन आयोग के आंकड़ों में बतौर उप-चुनाव दर्ज नहीं है। उसके बाद 1984 में परागपुर से योगराज उपचुनाव में कांग्रेस के विधायक बने। इसी वर्ष धर्मपुर से उपचुनाव में जीतकर नत्था सिंह विधानसभा पहुंचे। बाद में 1994 में जगदेव चंद के निधन से खाली हुई सीट पर कांग्रेस की अनीता वर्मा जीतीं। 1995 में मान चंद राणा के निधन से खाली हुई सीट के लिए सुलह से कंवर दुर्गा चंद चुने गए। इसी तरह किन्नौर में देवराज नेगी के निधन के बाद जगत सिंह नेगी उपचुनाव जीतकर विधायक बने। 1996 में शिमला से आदर्श कुमार सूद और नूरपुर से रणजीत बख्शी उपचुनाव जीतकर विधायक बने थे।

आखिरी दो उप-चुनाव हारी है सरकार 

बाद में 1998 के चुनाव में नतीजों वाले दिन ही परागपुर से जीतने वाले वीरेंद्र कुमार का निधन हो जाने के बाद उनकी पत्नी निर्मला देवी उप चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचीं थीं। उसी वर्ष कांग्रेस दिग्गज संत राम के निधन से खाली हुई सीट पर बैजनाथ से बीजेपी के दूलो राम चुनकर आए थे। साल 2000 में सोलन उपचुनाव में राजीव बिंदल जीते थे। जबकि 2004  में गुलेर से हरबंस राणा ने नीरज भारती को हराकर विधानसभा पहुंचने में सफलता पाई थी। 2009 में ख़ुशी राम बालनाहटा और सुजान सिंह पठानिया उपचुनाव जीतकर विधायक बने थे। इसी तरह 2011 में हरी नारायण सैनी के निधन के बाद नालागढ़ से लखविंदर राणा चुने गए। इसी उप- चुनाव में रेणुका से प्रेम सिंह के निधन से खाली हुई सीट पर बीजेपी के हृदय राम भी जीते थे। 2014 में हुए सुजानपुर उप चुनाव में नरेंद्र ठाकुर जीतकर विधायक बने थे। विधानसभा के लिए आखिरी उपचुनाव 2017 में भोरंज में हुआ था। बीजेपी के नेता ईश्वर दास धीमान के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे नवीन धीमान जीते थे। 

Ekta