हिमाचल: सीटें सिर्फ 4, पर सियासत में योगदान बेशुमार

Wednesday, May 15, 2019 - 04:55 PM (IST)

इलेक्शन डेस्क (संजीव शर्मा): हिमाचल के गठन की प्रक्रिया काफी  जटिल रही है। यह एकमात्र ऐसा राज्य है जहां विधानसभा स्थापित होने के बाद पुन इसे गौण-राज्य बना दिया गया था और विधानसभा निरस्त हो गई थी। दो चुनाव ऐसे ही बीत गए और फिर 1963 में टेरिटोरियल कौंसिल को ही विधानसभा मानकर दोबारा शुरुआत हुई थी। लेकिन यह बीते जमाने की बात है। वर्तमान में स्थितियां यह हैं कि  छोटा सा या पहाड़ी राज्य देश को हर क्षेत्र में नई दिशा देने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। चूंकि मौसम सियासत का है तो आज बात सियासत में हिमाचल के योगदान की। यहां सीटें भले ही चार है लेकिन सियासत बेशुमार है क्योंकि पहले ही आम चुनाव से हिमाचल केंद्रीय राजनीति की आकशगंगा  का प्रमुख सितारा बना हुआ है।  

कभी 2, कभी 6 तो अब 4 सीटें 

पहले आम चुनाव के वक्त हिमाचल में दो सीटें थीं। मंडी-महासू और चम्बा-सिरमौर। मंडी -महासू डबल सीट थी। यानी यहां से दो सांसद चुने गए थे। तब बिलासपुर अलग स्टेट थी, जहां से राजा आनंद चंद संसद में गए थे। 1957 में हिमाचल में मंडी-महासू को अलग करके तीन सीटें बना दी गईं। चम्बा सीट का सिरमौर वाला हिस्सा महासू में चला गया। 1962 के चुनाव में सिरमौर अलग से आरक्षित सीट हो गई और मंडी, महासू, चम्बा को मिलकर कुल चार सीटें हो गईं। अभी भी चार ही हैं लेकिन बीच में जब 1967 का चुनाव आया था तो सीटें कुल छह थीं। कांगड़ा और हमीरपुर नाम से दो सीटें और जुड़ गई थीं। बाद में 1971 के चुनाव में सीटों की संख्या फिर से चार हो गई जो अभी तक यथावत है।  

पहले ही मंत्रिमंडल में मिला था कैबिनेट पद 

छोटा राज्य होने के बावजूद केंद्र सरकार में हिमाचल की अहमियत हमेशा बड़ी रही है। पहले ही चुनाव में मंडी से जीतकर गईं राजकुमारी अमृत कौर केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री बनी थीं। बाद में इंदिरा कैबिनेट में वीरभद्र सिंह पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के डिप्टी मिनिस्टर रहे। अगली कैबनेट में (1980) वीरभद्र सिंह  केंद्र में उद्योग राज्यमंत्री बने। इसी तरह 2009 में जब वे सांसद चुने गए तो उन्हें कैबिनेट रैंक के साथ इस्पात मंत्रालय मिला। उनके अतिरिक्त कांग्रेस से ही पंडित सुखराम आनंद शर्मा और चंद्रेश कुमारी भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहे। बीजेपी की सरकारों में भी हिमाचल से शांता कुमार को अटल जी की कैबिनेट में मंत्री पद मिला और वर्तमान में  जगत प्रकाश नड्डा मोदी मंत्रिमंडल में हैं। यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्रिमंडल में एक समय वीरभद्र सिंह और आनंद शर्मा तथा आनंद शर्मा और चंद्रेश कुमारी के रूप में एक साथ दो-दो केंद्रीय मंत्री भी राज्य को मिले।  

बड़े नेताओं का भी सीधा रिश्ता 

देश के प्रधानमंत्रियों समेत कई अन्य प्रमुख नेताओं का हिमाचल से सीधा रिश्ता रहा है। इंदिरा गांधी अक्सर कहती थी कि वे यहीं बसना चाहती हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तो यहां पर ही घर बना लिया था और अब मनाली का प्रीणी ही उनका गांव कहलाता है। इसी तरह वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपने संघर्ष के दौर में हिमाचल में रहे हैं। आज भी वे हिमाचल आने पर यहां बिताएं समय का उल्लेख करने से नहीं चूकते। वे लंबे समय तक हिमाचल बीजेपी के संगठन मंत्री रहे हैं। इसलिए उन्हें यहां की सेपू, बड़ी, मशरूम, टोपी और चाय, मदरा हमेशा याद रहता है। वर्तमान की ही बात करें तो कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी ने भी अब शिमला में घर बना लिया है। अन्य प्रमुख नेताओं में  मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमल नाथ का मनाली में होटल है। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के हिमाचल में फार्म हाउस और सम्पत्तियां हैं। केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और बीजेपी नेता राजीव प्रताप रुड्डी और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की ससुराल हिमाचल में है।चौटाला और बादल परिवारों की जायदाद भी हिमाचल में हैं।


श्याम, राम और मानवी सबकी यहां से शुरुआत 

सियासत और चुनाव के नज़रिये से ही देखें तो कई अन्य योगदान हिमाचल के नाम हैं। देश के  पहला मतदाता श्याम शरण नेगी यहां रहते हैं। उन्होंने 25 अक्टूबर 1951 को देश का पहला वोट डाला था। यही नहीं भारत में महिलाओं को मताधिकार देने का फैसला भी 1930 में शिमला के कौंसिल चैंबर में हुआ था जिसे अब लोग विधानसभा भवन के रूप में जानते हैं। इसके अतिरिक्त देश के पांच मुख्य निर्वाचन आयुक्त हिमाचल से सम्बद्ध रहे हैं और तो और जिस राम मंदिर  के मुद्दे पर वर्तमान सत्ताधारी दल बीजेपी बरसों से राजनीति कर रहा है उसका संकल्प भी 1989 के बीजेपी अधिवेशन में हिमाचल के पालमपुर में (अब शहीद बिक्रम बत्तरा ग्राउंड) लिया गया था।  

Ekta