हिमाचल के एक सियासी युग का अंत कर जाएगा यह चुनाव

Thursday, May 16, 2019 - 03:14 PM (IST)

इलैक्शन डैस्क (संजीव शर्मा): लोकसभा चुनाव हिमाचल प्रदेश में इस बार एक सियासी युग का अंत कर जाएगा और सियासत की नई इबारत लिखी जाएगी। दरअसल यह चुनाव कई दिग्गजों का आखिरी चुनावी रण हो सकता है। इस चुनाव में आप जिन बड़े सियासी सूरमाओं को मुस्तैदी से प्रचार करते देख रहे हैं जरूरी नहीं कि अगली बार जब विधानसभा का चुनाव आए तो वे उस अखाड़े में मौजूद हों। यह सब वे नेता हैं जो दशकों से हिमाचली सियासत के फलक पर छाए रहे लेकिन प्रकृति का नियम यही है कि पुराने का स्थान नया लेता है। करीब एक दर्जन ऐसे नेता हैं जो अब सियासी संन्यास की राह हैं। हालांकि यह जरूरी नहीं कि इनमें से सब के सब शांता कुमार की तरह ‘लड़ाने’ का आनंद ले पाएंगे लेकिन उनके खुद लड़ने पर तो अब बड़ा सवाल है ही। तो आइए आज चर्चा उन दिग्गजों की करें जो अब शायद ही चुनावी रण में दिखें। 

कांग्रेस में सबसे ज्यादा रिटायरमैंट

इस चुनाव के बाद सबसे ज्यादा सियासी संन्यास कांग्रेस में होगा। वीरभद्र सिंह हालांकि यह जरूर कहते हैं कि वह राज्य की राजनीति में सक्रिय रहेंगे लेकिन चुनाव लड़ेंगे या नहीं यह देखना होगा। उम्र में उनसे भी वरिष्ठ विद्या स्टोक्स तो चाह कर भी पिछला विधानसभा चुनाव नहीं लड़ सकी थीं और अब उनका संन्यास तय है। बृज बिहारी लाल बुटेल बेटे को टिकट दिलाकर सेवानिवृत्त हो गए थे तो सुजान सिंह पठानिया ने भी इच्छा जताई थी कि उन्हें रिटायर कर दिया जाए। यानी अगला चुनाव वह भी नहीं लड़ेंगे। पोते का मोह सुखराम को जरूर घसीट रहा है लेकिन अब दोबारा वह भी शायद ही किसी चुनावी जनसभा में दिखें। चुनाव से तो वह किनारे हो ही चुके हैं। इसी तरह रंगीला राम राव, सत्य प्रकाश ठाकुर, कुश परमार, कुलदीप सिंह, चंद्र कुमार, मेजर मनकोटिया, हर्ष महाजन, धर्मवीर धामी आदि नेताओं की चुनावी राजनीति भी लगभग समाप्त हो चुकी है। धनी राम शांडिल भी संभवत: अपना आखिरी चुनाव लड़ रहे हैं। कौल सिंह ने हालांकि सबसे पहले रिटायरमैंट की उम्र की हामी भरी थी लेकिन देखना होगा कि उनका मन भर गया है या अभी एक बार फिर लड़ पाएंगे। हो सकता है बेटी को टिकट ट्रांसफर करवाकर वह भी चुनाव से किनाराकशी कर लें।

भाजपा में भी कई नेताओं की बारी

भाजपा हालांकि कांग्रेस की अपेक्षा अधिक जवान पार्टी है। इसकी वजह यही है कि पार्टी ने उम्र का फार्मूला अब सख्ती से लागू कर दिया है। ऐसे में अगर मोदी दोबारा लौटे तो शांता के बाद धूमल का भी संन्यास हो चुका ही समझो। गुलाब सिंह की बगिया में भी कमल खिलने से रहा। रूप सिंह, रिखी राम कौंडल आदि किनारे किए जा चुके हैं। महेंद्र सिंह और सुरेश भारद्वाज सिटिंग मिनिस्टर होने के कारण शायद अगला चुनाव लड़ सकें लेकिन रमेश ध्वाला और किशन कपूर पर संदेह है कि अब वह दोबारा टिकट हासिल कर पाएंगे। वीरेंद्र कश्यप, खीमी राम, महेश्वर सिंह की भी सियासत करीब-करीब विराम ले ही चुकी है। नरेंद्र बरागटा बॉर्डर लाइन पर हैं और बेटे को टिकट दिलवा कर वह भी पीछे हट सकते हैं। कर्नल इंद्र सिंह का केस भी एग्जामिन करना पड़ेगा।

महिलाओं की कमी पूरी करना होगा चुनौती

पीढ़ी परिवर्तन का सबसे असर महिला नेतृत्व पर दिखेगा। प्रदेश की पुरानी महिला नेत्रियों में आशा कुमारी को छोड़कर बाकी सब नए चेहरे होंगे। हालांकि अभी सरवीण चौधरी मंत्री हैं लेकिन उन्हें अगली बार टिकट मिलेगा इस पर संशय है। इस बार भी उनका काफी विरोध हुआ था। विद्या स्टोक्स, चंद्रेश कुमारी, अनीता वर्मा और विप्लव ठाकुर का चैप्टर भी क्लोज हो चुका है। महेंद्र सिंह और कौल सिंह की बेटियां नए चेहरे हो सकते हैं जो चुनावी किस्मत आजमाएंगे। ऐसे में वर्तमान में विधायक रीटा धीमान और कमलेश कुमारी के साथ-साथ पिछले चुनाव में चूक गईं इंदु गोस्वामी और शशि बाला की राह आसान हो सकतीहै।

इनकी लग सकती है लाटरी

लोकसभा चुनाव में इस समय 5 सिटिंग विधायक मैदान में हैं। इनमें किशन कपूर और पवन काजल कांगड़ा से आमने-सामने हैं तो धनी राम शांडिल और सुरेश कश्यप शिमला सीट पर मुकाबिल हैं। हमीरपुर सीट पर कांग्रेस के विधायक रामलाल ठाकुर मैदान में हैं। जाहिर है ऐसे में अभी से 2 जगहों पर उपचुनाव तय हैं। रामलाल जीते तो 3 सीटें खाली हो जाएंगी। ऐसे में कांगड़ा के नतीजे सुधीर शर्मा, इंदु गोस्वामी, जी.एस. बाली और सुरेंद्र काकू की लाटरी लगा सकते हैं। यही मैजिक शिमला सीट पर गंगू राम मुसाफिर और हमीरपुर सीट पर रणधीर शर्मा के लिए लागू हो सकता है। बशर्ते नतीजे इनके लिहाज से निकलें। हालांकि यह आदर्श स्थितियां हैं और नतीजे ही इनको फाइनल करेंगे।

Ekta