हाईकोर्ट ने दिया आदेश, अधिकारियों-कर्मचारियों को दिया जाए कानूनन प्रशिक्षण

Sunday, Aug 25, 2019 - 11:02 PM (IST)

शिमला: हाईकोर्ट ने पुन: अर्द्धसरकारी कार्य से जुड़े अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के आदेश जारी किए हैं ताकि मामलों का निपटारा कानूनन करने के अलावा मामलों का रिकॉर्ड भी ठीक ढंग से मैंटेन हो, साथ ही हाईकोर्ट ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका के पदों को भरने के लिए राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नीति को दोषपूर्ण करार दिया है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने कहा कि इन पदों को भरने बाबत नई नीति बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव को आदेश दिए हैं कि वह सभी संबंधित अधिकारियों से मीटिंग करें और नई पॉलिसी को बनाने के लिए संभावनाएं तलाशें जोकि व्यावहारिक और तर्कपूर्ण हों।

राज्य सरकार द्वारा बनाई गई आंगनबाड़ी नीति में रखे गए प्रावधानों पर हाईकोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य सरकार द्वारा आंगनबाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका के लिए वार्षिक आय 15,000 रुपए रखी गई है जोकि प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 41 रुपए आंकी जा सकती है। अदालत ने आश्चर्य जताते हुए अपने आदेशों में कहा कि राज्य सरकार के अधिकारी किस तरह से इस नतीजे पर पहुंचे हंै कि एक परिवार एक दिन में मात्र 41 रुपए में गुजारा कर सकता है। नीति में दिए गए अपील के प्रावधान पर भी अदालत ने प्रतिकूल टिप्पणी की है। नीति में दिए प्रावधानों के तहत आंगनबाड़ी कार्यकर्ता या सहायिका की नियुक्ति को चुनौती सिर्फ  15 दिनों के भीतर ही दी जा सकती है। यही नहीं, अपील को निपटाने के लिए भी 15 दिनों का ही समय दिया गया है जोकि व्यावहारिक और तर्कपूर्ण नहीं है।

हाईकोर्ट ने अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति और प्रार्थियों की वित्तीय स्थिति के नजरिए से अपील दायर करने के लिए उचित समय नहीं दिया गया है, जिससे प्रार्थियों का अपील दायर करने का अधिकार लगभग समाप्त कर दिया गया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उन कर्मचारियों और अधिकारियों की कार्यशैली पर भी कड़ी प्रतिकूल टिप्पणी की है जो एक ही भवन में स्थापित दूसरे दफ्तर के लिए डाक के माध्यम से पत्राचार करते हैं जिसे कि सेवादार के जरिए और ई-मेल या अन्य माध्यम से भेजा जा सकता है। इससे समय और सरकारी खजाने दोनों की ही बचत होगी।

हाईकोर्ट ने उक्त आदेश प्रार्थी संगीता द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किए। एडीएम ने प्रार्थी की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया था कि प्रार्थी ने अपील 15 दिनों के भीतर दायर नहीं की है। हालांकि प्रार्थी ने दलील दी थी कि चूंकि अपील दायर करने के लिए कम समय का प्रावधान रखा गया है फिर भी उसने समय रहते अपील दायर कर दी थी। अदालत ने मामले से जुड़े तमाम रिकॉर्ड का अवलोकन करने के पश्चात पाया कि प्रार्थी ने 15 दिन के भीतर डीसी को अपील डाक के माध्यम से भेज दी थी और यह भी पाया कि प्रार्थी की अपील 15 दिनों के भीतर डीसी कार्यालय में पहुंच गई थी।

डीसी ने अपील का निपटारा करने के लिए एडीएम को शक्ति दी और अपील को डाक के माध्यम से भेजा। हाईकोर्ट ने पाया कि डीसी व एडीएम कार्यालय एक ही भवन में स्थापित हैं फिर भी प्रार्थी की अपील को डाक के माध्यम से भेजा गया, जिस कारण प्रावधान के अनुसार अपील 15 दिनों के भीतर एडीएम कार्यालय में नहीं पहुंची। हाईकोर्ट ने डीसी और एडीएम की लचर कार्यप्रणाली पर प्रतिकूल टिप्पणी करते हुए प्रार्थी की याचिका को स्वीकार करते हुए उक्त आदेश पारित किए।

 

Vijay