IIT मंडी के शोधकर्ताओं का कमाल, बेकार प्लास्टिक से बनाया फेस मास्क

Monday, Jun 08, 2020 - 12:39 PM (IST)

मंडी (पुरुषोत्तम शर्मा): भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मंडी के शोधकर्ताओं ने बेकार ‘प्लास्टिक (पीईटी) बोतलों’ से असरदार फेस मास्क बनाने की स्वदेशी तकनीक विकसित की है। आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में एसिस्टैंट प्रोफैसर डॉ. सुमित सिन्हा राय ने अपने शोधार्थी आशीष काकोरिया और शेषांग सिंह चंदेल के साथ बेकार प्लास्टिक बोतल से नैनो-नॉनवोवन मेम्ब्रेन की एक पतली परत विकसित की है। कणों को फिल्टर करने में एन-95 रेस्पिरेटर और मैडीकल मास्क के बराबर सक्षम है। इस प्रोडक्ट का विकास और परीक्षण आईआईटी मंडी के मल्टीस्केल फैब्रिकेशन और नैनो टैक्नोलॉजी लैबरोटरी में किया गया है।

धुआं फिल्टर करने और निरंतर वायु स्वच्छ करने में भी उपयोगी

प्लास्टिक कचरे का प्रदूषण पहले से ही पूरी दुनिया के शोधकर्ताओं के लिए गंभीर चुनौती बना हुआ है और कोविड-19 महामारी के दौर में प्लास्टिक से बनी वस्तुओं के उत्पादन और खपत बढऩे से यह संकट और गहरा गया है लेकिन आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं की इस पहल से प्लास्टिक प्रदूषण कम होगा और प्लास्टिक कचरे से अधिक कीमती चीज बन जाएगी। हाल ही में विकसित इस तकनीक के अन्य उपयोग भी हैं। यह धुआं फिल्टर करने और निरंतर वायु स्वच्छ करने में भी काम आएगी।

बाजार के मास्क की तुलना इसमें सांस लेना आसान

नैनोफाइबर विकसित करने के लिए डॉ. सुमीत सिन्हा राय और उनकी टीम ने प्लास्टिक की बोतलों की ‘इलेक्ट्रोस्पिनिंग’ कर बेहद बारीक टुकड़े कर दिए और इन्हें कई सॉल्वैंट के घोल में डाला और फिर इस घोल से नैनोफाइबर प्राप्त किए। बैक्टीरिया और संक्रामक तत्वों को हटाकर नैनोफाइबर के उपयोग के सुरक्षा मानकों को पूरा किया। इस तरह बने मास्क से बाजार के मास्क की तुलना में सांस लेना आसान होता है। डॉ. सुमीत ने इलेक्ट्रोस्पिनिंग आधारित बेकार प्लास्टिक की बोतल से फिल्टर मेम्ब्रेन बनाने की तकनीक के प्रोविजनल पेटैंट के लिए आवेदन कर दिया है।

मास्क धुलने और बार-बार पहनने योग्य

आईआईटी मंडी की ईडब्ल्यूओके सोसायटी की मदद से ये मेम्बे्रन 2 पतले सूती कपड़ों के बीच सिलकर फेस मास्क बनाए गए। सांस लेने के मानक पर बराबर सक्षमता के साथ वायु कण रोकने में सक्षम ये मास्क 3-प्लाई मेडिकल फेस मास्क से अधिक कारगर है। यह टीम लैबरोटरी स्तर पर प्रति दिन 20 मास्क मेम्ब्रेन बनाने में सक्षम हो गई है जिसे मांग के अनुसार बढ़ाया जाएगा। नैनोफाइर वाले 3-प्लाई सेमी-रीयूजबल मास्क धुलने और बार-बार पहनने योग्य हैं। लैबरोटरी स्तर पर निर्माण सामग्री की लागत 12 रुपए प्रति मास्क आ रही है।

फेस मास्क के लिए चमत्कार कर सकते हैं नैनोफाइबर

डॉ. सुमीत सिन्हा राय ने बताया कि नैनोफाइबर फेस मास्क के लिए चमत्कार कर सकते हैं। किसी अच्छे फेस मास्क के दो बुनियादी मानक हैं वायु कण और प्रदूषण रोकने की क्षमता और खुल कर सांस लेने की सुविधा। बाजार के मेल्ट-डाऊन फैब्रिक की कीमत तो कम है पर इसमें खुल कर सांस नहीं आती है। हालांकि आम तौर पर उपलब्ध 3-प्लाई सर्जिकल मास्क में सांस लेना आसान है पर यह असरदार नहीं है, ऐसे में नैनोफाइबर वाले मास्क आपको खुल कर सांस लेने की सुविधा देने के साथ हवा में मौजूद छोटे कणों को रोकने में भी असरदार हैं। आशा है कि इस तकनीक से मास्क के औद्योगिक उत्पादन के लिए इच्छुक भागीदार आगे आएंगे।

लैब में मास्क को तैयार करने में आई 25 रुपए की लागत

रिसर्च स्कॉलर आशीष काकोरिया ने बताया कि ये अल्ट्राफाइन फाइबर हवा को कम से कम रोकते हैं। ऐसा एक विशेष परिघटना की वजह से मुमकिन होता है जिसे हम ‘स्लिप फ्लो’ कहते हैं। इसलिए आप खुल कर सांस ले सकते हैं। इतना ही नहीं, इस तकनीक के उपयोग से बेकार प्लास्टिक बोतलों के कचरे का सदुपयोग हो जाएगा। लैब में निर्माण सामग्री की लागत लगभग 25 रुपए प्रति मास्क है। हालांकि औद्योगिक उत्पादन में यह लागत लगभग आधी हो जाएगी।

Vijay