देव श्रीबड़ा छमाहूं व चार छमाहूं के इतिहास से भरा है कुल्लू व मंडी सराज
punjabkesari.in Thursday, Oct 26, 2023 - 06:41 PM (IST)

कुल्लू (धनी राम): देवभूमि कुल्लू में कुल देवता और ईष्ट देव को घर-परिवार या क्षेत्र का मुख्य माना जाता है। कोई भी शुभ कार्य हो या घर में कोई आयोजन करना हो तो उस क्षेत्र या घर के मुख्य देवी या देवता की अनुमति ली जाना यहां की सांस्कृतिक परंपरा में बेहद जरूरी है। वहीं जिला कुल्लू व मंडी सराज में देव श्रीबड़ा छमाहूं अधिकतर क्षेत्र के लोगों के ईष्टदेव व कुल देव हैं। छमाहूं शब्द का अर्थ है छह जमा समूह या मुंह। यानि छह देवी-देवताओं की सामूहिक शक्ति, ओम शब्द ही छमाहूं है। माना जाता है कि ओम शब्द तीन प्रमुख देवताओं ब्रह्मा, विष्णु व महेश का प्रतीक चिन्ह है, लेकिन वास्तव में ओम शब्द छह देवी-देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदिशक्ति शेष की वह अमर वाणी है, जिसमें पूरी सृष्टि वास करती है। सृष्टि की रचना भी ओम शब्द से जुड़ी हुई है।
महाप्रलय के बाद हुई थी देव छमाहूं की उत्पत्ति
महाप्रलय के बाद जब सृष्टि की दोबारा रचना हुई है, उसी समय देव छमाहूं की उत्पत्ति हुई है। इसका पुराणों व शास्त्रों में प्रमाण है। सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश को आदि व शक्ति का आह्वान करना पड़ा। इस तरह पांच शक्तियां सृष्टि की रचना में जुट गईं। जब पूरी सृष्टि की रचना कर ली गई और अंधकार समुद्र में समाहित सभी ग्रहों को अपने-अपने स्थान पर स्थापित किया गया तो सृष्टि की रचना लगभग पूर्ण हो चुकी थी लेकिन अंधकार समुद्र में काफी समय तक डूबे रहे। सभी ग्रहों से जो ऊर्जा उत्पन्न हुई वह भयावह थी और उस ऊर्जा ने एक बार फिर से उथल-पुथल मचानी शुरू की।
कुल्लू व मंडी सराज में है छमाहूं देवता की धरती
वर्तमान में छमाहूं देवता की धरती कुल्लू व मंडी सराज है। माना जाता है कि छमाहूं आज भी सृष्टि के चारों दिशा में विराजमान हैं। वर्तमान में छमाहूं के चार रथ हैं। पांचवां रथ शक्ति का है, जबकि आदिब्रह्म का रथ नहीं बल्कि सुंदर स्थान है। जिसे हंसकुंड के नाम से जाना जाता है। हंसकुंड को ब्रह्म का रूप मानकर स्वच्छ देवता माना जाता है और कलश व फू लों के गुच्छों के रूप में माना जाता है। सराज घाटी में चार छमाहूं की देउली प्रमुख स्थान रखती है। छमाहूं के चार रथों को चार भाइयों व शक्ति को बहन के रूप में माना जाता है, जबकि आदिब्रह्म को घाटी के देवता गुरु के रूप में मानते हैं। इन सभी देवी-देवताओं का पृथ्वी पर अवतार स्थान सराज घाटी का दलयाड़ा गांव है। आज भी यह स्थान छमाहूं की अवतार भूमि मानी जाती है और सभी देवी-देवताओं के रथ समय-समय पर यहां के भव्य मंदिर में एकत्र होते हैं।
कोटला गांव में है देव श्रीबड़ा छमाहूं की प्रमुख कोठी
देव श्रीबड़ा छमाहूं की प्रमुख कोठी कोटला गांव में विराजमान है। इसके अलावा देव श्रीबड़ा के अठारह देउल में मंदिर, भंडार व मधेउल में विराजमान है। इसके बाद दूसरे स्थान के छमाहूं का रथ सराज घाटी के पलदी क्षेत्र में विराजमान रहता है और इन्हें पलदी छमाहूं के नाम से भी जाना जाता है। पलदी छमाहूं का प्रमुख मंदिर बड़ाग्रां में है।
भगवान रघुनाथ जी की धुर मेंं बैठते थे श्रीबड़ा छमाहूं
दशहरा पर्व में देव श्रीबड़ा छमाहूं तभी से आते हैं, जब से दशहरा पर्व शुरू हुआ था। एक समय था जब देव श्रीबड़ा छमाहूं भगवान रघुनाथ जी की धुर में बैठते थे, लेकिन धीरे-धीरे धुर को लेकर विवाद पैदा होने के कारण यह परंपरा खत्म हो गई। दशहरा पर्व के दौरान देवता से मिलन करने सबसे पहले पल्दी के छमाहूं, वासुकी नाग, करथनाग, खोडू देवता आदि आते हैं। इसके बाद देवता अठारह करडू के दरबार में मिलन करने राजमहल जाते हैं और वहीं भगवान रघुनाथ जी से भी मिलन करते हैं। इसके अलावा चाननी के पास भगवान नरसिंह से मिलन होता है और रघुनाथ के शिविर में भी मिलन होता है। देवता पुराने स्टेट बैंक मैदान में विराजमान रहता है।
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