मजदूर व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ एकजुट हुए संगठन, प्रदेश में जगह-जगह प्रदर्शन

Sunday, Aug 09, 2020 - 03:51 PM (IST)

शिमला (योगराज): सीटू, इंटक व एटक सहित 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, दर्जनों राष्ट्रीय फैडरेशनों व हिमाचल किसान सभा सहित सैंकड़ों किसान संगठनों के आह्वान पर केंद्र व राज्य सरकारों की मजदूर व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ हिमाचल प्रदेश में ‘‘मजदूरों द्वारा भारत बचाओ दिवस’’ व ‘‘किसानों द्वारा किसान मुक्ति दिवस’’ मनाया गया। इस दौरान प्रदेश के 11 जिलों के हजारों मजदूरों व किसानों ने अपने कार्यस्थलों, ब्लॉक व जिला मुख्यालयों पर केंद्र सरकार की मजदूर व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किए।

शिमला में डीसी ऑफिस के बाहर हुए प्रदर्शन में लगभग 500 मजदूरों, किसानों, महिलाओं व छात्रों आदि ने भाग लिया। इस प्रदर्शन को सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा, इंटक प्रदेश उपाध्यक्ष राहुल मेहरा, पूर्ण चंद, जिलाध्यक्ष भारत भूषण, युवा इंटक अध्यक्ष यशपाल, हिमाचल किसान सभा जिलाध्यक्ष सत्यवान पुंडीर, किसान नेता संजय चौहान, जयशिव ठाकुर, सीटू राज्य कमेटी सदस्य किशोरी ढटवालिया, रामप्रकाश, रेहड़ी-फड़ी तहबाजारी यूनियन अध्यक्ष सुरेंद्र बिट्टू, महासचिव राकेश सलमान, एसटीपी यूनियन अध्यक्ष दलीप सिंह, महासचिव मदन लाल, आऊटसोर्स यूनियन प्रदेश उपाध्यक्ष वीरेंद्र लाल, महासचिव नोख राम, प्राइवेट बस ड्राइवर कंडक्टर यूनियन प्रदेश चेयरमैन विकास राणा, रूप लाल, अखिल कुमार, जनवादी महिला समिति प्रदेश महासचिव फालमा चौहान, प्रदेश कोषाध्यक्ष सोनिया सभरवाल, डीवाईएफआई राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बलबीर पराशर, शहरी कमेटी अध्यक्ष कपिल शर्मा, महासचिव अमित राजपूत, एसएफआई राष्ट्रीय संयुक्त सचिव दिनित देंटा, प्रदेशाध्यक्ष रमन थारटा, उपाध्यक्ष पवन शर्मा, सचिव अमित ठाकुर, बीसीएस यूनियन अध्यक्ष चुनी लाल, महासचिव महेश कुमार व विशाल मैगामार्ट यूनियन महासचिव हनी बैंस आदि ने सम्बोधित किया।

प्रदेश भर में हुए प्रदर्शनों में श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी परिवर्तन की प्रक्रिया पर रोक लगाने,मजदूरों का वेतन 21 हज़ार रुपये घोषित करने,सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बेचने पर रोक लगाने,किसान विरोधी अध्यादेशों को वापिस लेने,मजदूरों को कोरोना काल के पांच महीनों का वेतन देने,उनकी छंटनी पर रोक लगाने,किसानों की फसलों का उचित दाम देने, कर्जा मुक्ति, मनरेगा के तहत 200 दिन का रोजगार, कॉर्पोरेट खेती पर रोक लगाने, आंगनबाड़ी, मिड-डे मील व आशा वर्कर्ज को नियमित कर्मचारी घोषित करने, फिक्स टर्म रोजगार पर रोक लगाने, हर व्यक्ति को महीने का 10 किलो मुफ्त राशन देने व 7500 रुपए देने की मांग की गई।

ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने केंद्र व प्रदेश सरकारों को चेताया है कि वह मजदूर व किसान विरोधी कदमों से हाथ पीछे खीचें अन्यथा मजदूर व किसान आंदोलन तेज होगा। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के इस संकट काल को भी शासक वर्ग व सरकारें मजदूरों व किसानों का खून चूसने व उनके शोषण को तेज करने के लिए इस्तेमाल कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, व राजस्थान में श्रम कानूनों में बदलाव इसी प्रक्रिया का हिस्सा है। केंद्र सरकार द्वारा 3 जून, 2020 को कृषि उपज, वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन एवम सुविधा) अध्यादेश 2020, मूल्य आश्वासन (बन्दोबस्ती और सुरक्षा) समझौता कृषि सेवा अध्यादेश 2020 व आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020 आदि 3 किसान विरोधी अध्यादेश जारी करके किसानों का गला घोंटने का कार्य किया गया है।

यह सरकार देश की जनता के संघर्ष के परिणाम स्वरूप वर्ष 1947 में हासिल की गई आजादी के बाद जनता के खून-पसीने से बनाए गए बैंक, बीमा, बीएसएनएल, पोस्टल, स्वास्थ्य सेवाओं, रेलवे, कोयला, जल, थल व वायु परिवहन सेवाओं, रक्षा क्षेत्र, बिजली-पानी व लोक निर्माण आदि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को पूंजीपतियों को कौडिय़ों के भाव पर बेचने पर उतारू है। ऐसा करके यह सरकार पूंजीपतियों की मुनाफाखोरी को बढ़ाने के लिए पूरे देश के संसाधनों को बेचना चाहती है। ऐसा करके यह सरकार देश की आत्मनिर्भरता को खत्म करना चाहती है।

हिमाचल प्रदेश सरकार भी इन्हीं नीतियों का अनुसरण कर रही है। कारखाना अधिनियम 1948 में तब्दीली करके हिमाचल प्रदेश में काम के घंटों को 8 से बढ़ाकर 12 कर दिया गया है। इससे एक तरफ एक-तिहाई मजदूरों की भारी छंटनी होगी, वहीं दूसरी ओर कार्यरत मजदूरों का शोषण तेज होगा। फैक्टरी की पूरी परिभाषा बदलकर लगभग दो तिहाई मजदूरों को 14 श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है। ठेका मजदूर अधिनियम 1970 में बदलाव से हजारों ठेका मजदूर श्रम कानूनों के दायरे से बाहर हो जाएंगे। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में परिवर्तन से जहां एक ओर अपनी मांगों को लेकर की जाने वाली मजदूरों की हड़ताल पर अंकुश लगेगा वहीं दूसरी ओर मजदूरों की छंटनी की पक्रिया आसान हो जाएगी व उन्हें छंटनी भत्ता से भी वंचित होना पड़ेगा।

तालाबंदी, छंटनी व ले ऑफ की प्रक्रिया भी मालिकों के पक्ष में हो जाएगी। मॉडल स्टैंडिंग ऑर्डर्ज में तब्दीली करके फिक्स टर्म रोजगार को लागू करने व मैंटेनंस ऑफ रिकोर्ड्ज को कमज़ोर करने से श्रमिकों की पूरी सामाजिक सुरक्षा खत्म हो जाएगी। उन्होंने मजदूर व किसान विरोधी कदमों व श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलावों पर रोक लगाने की मांग की है। उन्होंने सरकार को चेताया है कि अगर पूंजीपतियों,नैेगमिक घरानों  व उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाकर मजदूरों-किसानों के शोषण को रोका न गया तो मजदूर-किसान सड़कों पर उतरकर सरकार का प्रतिरोध करेंगे।

उन्होंने मांग की है कि केंद्र सरकार कोरोना काल में सभी किसानों का रबी फसल का कर्ज माफ करे व खरीफ फसल के लिए केसीसी जारी करे। किसानों की पूर्ण कर्ज माफी की जाए। किसानों को फसल का सी-2 लागत से 50 फीसदी अधिक दाम दिया जाए। किसानों के लिए वन नेशन-वन मार्किट नहीं बल्कि वन नेशन-वन एमएसपीकी नीति लागू की जाए। किसानों व आदिवासियों की खेती की जमीन कम्पनियों को देने व कॉरपोरेट खेती पर रोक लगाई जाए। उन्होंने मांग की है कि महिला शोषण पर रोक लगाई जाए, उनका आर्थिक शोषण बन्द किया जाए, नई शिक्षा नीति को वापस लिया जाए, शिक्षा के निजीकरण, व्यापारीकरण व केंद्रीकरण पर रोक लगाई जाए, बढ़ती बेरोजगारी पर रोक लगाई जाए व बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाए।

Vijay