विश्व को कष्टों से उबार सकती है अङ्क्षहसा : दलाईलामा

Friday, Nov 22, 2019 - 04:35 PM (IST)

शिमला (ब्यूरो): तिब्बती धर्म गुरु 14वें दलाईलामा ने कहा कि आज विश्व को पारंपरिक भारतीय ज्ञान में उल्लेखित करुणा की आवश्यकता है। अहिंसा इस विश्व को कष्टों से उबार सकती है। भले ही आधुनिक विज्ञान ने आज चाहे जितनी भी तरक्की कर ली हो पर जब बात अंतर्मन की शांति और आध्यात्मिकता की आती है तो केवल पारंपरिक भारतीय ज्ञान ही मानव जीवन और आत्मा से जुड़े इन विषयों पर हमारा मार्ग प्रशस्त कर सकता है। हमें अपने जीवन में आलोचनाओं के प्रति उदार रवैया अपनाते हुए उन्हें खुले मन से स्वीकार करना चाहिए। वह शुक्रवार को भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (एडवांस स्टडीज) द्वारा आयोजित 24वें राधाकृष्णन स्मृति व्याख्यान के दौरान संबोधित कर रहे थे।

नोबेल पुरस्कार विजेता दलाईलामा ने इस दौरान दिल्ली के इंडिया इंटरनैशनल सैंटर में यूनिवर्सल एथिक्स विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म और भारतीय ज्ञान हमें इसी की शिक्षा देते हैं। उन्होंने प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा, करुणा व आध्यात्मिकता आदि को न केवल धार्मिक रूप से अपितु अकादमिक रूप से भी पढ़ाए जाने की बात की। दलाईलामा ने वैश्विक तापमान में बढ़ौतरी, प्राचीन भारतीय ज्ञान, आध्यात्मिकता व आधुनिक जीवन की जटिलताओं से जुड़े विषयों पर प्रश्नों का उत्तर दिया। इससे पूर्व कार्यक्रम की शुरूआत में एडवांस स्टडीज के निदेशक प्रो. मकरंद परांजपे द्वारा स्वागत प्रस्ताव रखा गया और उन्होंने दलाईलामा को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उपस्थित जनसमूह का स्वागत किया।

इसके बाद भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शासकीय निकाय के उपाध्यक्ष प्रो. चमन लाल गुप्ता द्वारा दलाईलामा व आई.सी.सी.आर. के अध्यक्ष डा. विनय सहस्रबुद्धे का परिचय दिया गया। डा. विनय सहस्रबुद्धे द्वारा अपने संबोधन में आध्यात्मिक लोकतंत्र के साथ उभरते हुए नैतिक विश्व, पर्यावरणीय न्याय व नैतिक अर्थशास्त्र में समग्रता के संतुलन जैसे विषयों पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा कि नैतिकता केवल सामाजिक विज्ञान नहीं होता, जहां केवल सैद्धांतिक बातें की जाती हों। नैतिकता में सिद्धांत और प्रायोगिकता दोनों समान रूप से शामिल रहते हैं। संस्थान के अध्यक्ष प्रो. कपिल कपूर ने समापन अवसर पर कहा कि अङ्क्षहसा, करुणा और दया भारतीय चेतना और प्रकृति के मौलिक गुण हैं। ये हमारे जीवनमूल्यों और शिक्षा पद्धति का अभिन्न अंग भी हैं। इस अवसर पर भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के निदेशक प्रो. मकरंद परांजपे आदि उपस्थित थे।


 

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