कैंसर दवा खरीद में सरकारी खजाने को लग रही है लाखों की चपत

Thursday, Oct 10, 2019 - 10:29 AM (IST)

शिमला (जस्टा): वैसे तो प्रदेश के बड़े अस्पतालों में कैंसर के दवाइयों की हमेशा ही कमी रहती है, लेकिन जब पी.एच.सी. और सी.एच.सी. में कैंसर की दवाइयां डेट एक्सपायर होने लगती हैं तो बड़े अस्पतालों में एकदम से दवाइयां भारी मात्रा में उपलब्ध हो जाती हैं। दवाइयां इतनी उपलब्ध होती हैं कि फिर डेट एक्सपायर होने पर बड़े अस्पतालों में कई बार डिस्ट्रॉय करनी पड़ती हैं। पी.एच.सी. और सी.एच.सी. से दवाइयां तभी भेजी जाती हैं, जब डेट एक्सपायर होने की अवधि सिर्फ एक माह या फिर 20 दिन बचते हैं। ऐसे में बड़े अस्पतालों में भी इन दवाइयों का इस्तेमाल नहीं हो पाता है। यहां पर सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि पी.एच.सी. और सी.एच.सी. में जब कैंसर का इलाज नहीं होता है तो इन दवाइयों को भेजने की क्या जरूरत है। जहां बड़े अस्पतालों में दवाइयों की जरूरत होती है, वहां पर दवाइयां नहीं मिलती हैं।  

दवाइयां बर्बाद होने पर सरकारी खजाने को लाखों रुपए की चपत लग रही है। हैरानी की बात है कि विभाग के अधिकारी को इसकी भनक तक नहीं लग रही है। अगर अधिकारी को पता भी है तो भी सरकार के ध्यान में यह बात नहीं लाई जा रही है। बताया जा रहा है कि ये दवाइयां प्रदेश के जिला स्तर के अधिकारियों द्वारा अपने लेवल पर खरीदी जा रही हैं। यहां पर कैंसर की दवाइयां ही नहीं, बल्कि कई प्रकार की दवाइयां जिला स्तर पर ऐसी खरीदी जाती हैं, जिन बीमारियों का वहां पर इलाज ही नहीं होता है। प्रदेश के बड़े अस्पतालों में हमेशा ही दवाइयों की कमी चली होती है। मरीज दवाइयों के लिए दर-दर भटकते हैं। बावजूद इसके विभाग दवाइयां पूरी मात्रा में उपलब्ध नहीं करवा पाता है।

सिर्फ 3 अस्पतालों में होता है कैंसर का इलाज 

प्रदेश में सिर्फ 3 सरकारी अस्पतालों नेरचौक, टांडा और आई.जी.एम.सी. में कैंसर का इलाज होता है। इसके अलावा किसी भी मैडीकल कालेज, पी.एच.सी. और सी.एच.सी. में कैंसर के इलाज की सुविधा नहीं है। विभाग के अधिकारियों को यह देखना चाहिए कि अगर 3 ही अस्पतालों में कैंसर का इलाज होता है तो अन्य जगहों पर दवाइयां भेजने की क्या जरूरत है। बताया जा रहा है कि जो दवाइयां पी.एच.सी. और सी.एच.सी. में भेजी जा रही हैं, वे काफी महंगी हैं।

दवाइयों को लेकर नहीं भेजी जाती रिक्वायरमैंट

दवाइयां को लेकर जिला स्तरीय अधिकारियों का एक और कारनामा यह है कि कभी भी दवाइयों की रिक्वायरमैंट नहीं भेजी जाती है, जिसके चलते दवाइयों को लेकर यह सब प्लान बिगड़ रहा है। बिना रिक्वायरमैंट के दवाइयां उस बीमारी की जमा हो जाती हैं, जिसकी जरूरत ही नहीं होती है।   

Ekta