दिलचस्प हुआ उप-चुनाव का रण, सत्ता के छूटे पसीने

Tuesday, Oct 15, 2019 - 01:20 PM (IST)

शिमला (संकुश): ऐसा नहीं है कि हिमचाल में तीसरी सियासी ताकत कभी नहीं रही। जनता दल, हिमाचल विकास कांग्रेस और हिलोपा जैसे प्रयोग बताते हैं कि यहां तीसरी ताकत  कम से कम पहली को क्षीण करने में अहम कारक रही है। लेकिन ऐसा शायद पहली बार है जब उप-चुनाव में किसी तीसरी शक्ति के होने का एहसास हो रहा है और उस पर भी तुर्रा यह कि ये अहसास आज़ाद है। बोले तो इंडिपेंडेंट। दरअसल यह शब्द अपने आप में ही बहुत मारक है और कई संभावनाएं लिए हुए हैं। व्यक्ति हो या राष्ट्र जब वे आज़ाद हो जाते हैं तो फिर कुछ भी कर डालते हैं और यही उप-चुनाव में हो रहा है। जी हां अब तक की सूचनाओं की मानें तो हिमाचल में उप-चुनाव का दंगल दिलचस्प हो गया है। धर्मशाला और पच्छाद में सत्ताधारी बीजेपी को उसके ही बागियों ने नाकों चने चबा रखे हैं। हालांकि नतीजों का इतिहास कुछ भी रहा हो लेकिन ऐसा पहली बार है कि किसी उप चुनाव में आज़ाद उम्मीदवार दलीय प्रत्याशियों से अधिक चर्चा में हों।  

सबसे पहले बात करते हैं पच्छाद की। यहां बीजेपी पहले ही दिन से बगावत  झेल रही है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के युवा तुर्क आशीष सिक्टा और बीजेपी की ही जिला परिषद सदस्य दयाल प्यारी यहां से टिकट के प्रबल दावेदार थे। टिकट नहीं मिला तो बागी हो गए। आशीष सिक्टा तो मान गए लेकिन जिला परिषद में लगातार जनमत हासिल करती आ रहीं दयाल प्यारी को पार्टी की बेवफाई इतना आहत कर गई कि उन्होंने प्यार त्याग बागी बने रहना ही ज्यादा मुनासिब समझा। और अब हालात यह हैं कि वे लगातार चुनाव के केंद्र में बनी हुई हैं। उनके समर्थकों की मानें तो मुकाबला उनके और कांग्रेस के बीच है। हालांकि बीजेपी इसे महज शिगूफा मानती है क्योंकि उसके पास सत्ता और सत्ता के साथ चलने वालों का इतिहास है। पच्छाद सीट परम्परागत रूप से कांग्रेस की सीट रही है और वहां कांग्रेस में अब तक गंगू राम मुसाफिर के अलावा कोई दूसरा नेता नहीं उभरा। बीजेपी ने अनेकों प्रयोग किए जो अंतत सुरेश कश्यप की जीत के रूप में पल्लवित हुए।

कश्यप एक बार जीते तो फिर मुसाफिर को लगातार हराते गए। लेकिन अबके जब कश्यप को दिल्ली भेज दिया गया तो उसी से उपजे शून्य को भरने के लिए कई हरफ़  सामने आ गए। उन्हीं में से एक हैं दयाल प्यारी। आशीष सिसिक्टा उठे और बैठ गए, लेकिन दयाल प्यारी का डर अभी भी बीजेपी की नींद हराम किये हुए है। नतीजा कुछ भी हो दयाल प्यारी का नाम सियासी गलियारों में  अरसे तक गूंजेगा यह तय है। दयाल प्यारी के चुनाव लड़ने से कुलमिलाकर मुकाबला एक तरफा तो नहीं रहा। उधर धर्मशाला में  भी बीजेपी के बागी राकेश चौधरी सत्ता की पेशानी पर पसीने छुड़वाए हुए हैं। कांग्रेस ने गद्दी उम्मीदवार विजय इंद्र करण उतारा तो बीजेपी ने भी बदले में गद्दी विशाल नैहरिया को उतार दिया।  धर्मशाला में करीब अस्सी हज़ार वोट हैं, जिनमे से गद्दी वोट 22 हज़ार हैं। लेकिन दोनों दलों के इस गद्दी गद्दी के खेल के बीच खलल तब पड़  गया जब बीजेपी के राकेश चौधरी बागी हो गए। obc राकेश चौधरी के समुदाय के 36 हज़ार वोट हैं और वे अपने साथ-साथ 10 हज़ार राजपूत और 7 हज़ार ब्राह्मण वोटरों से भी समर्थन मांग रहे हैं।

दोनों दलों को अब लग रहा है कि कहीं ऐसा न हो की गद्दी तो बंट जाएं लेकिन बाकी इक्क्ठे होकर को नया गुल खिला दें। इसलिए शांता और धूमल जिन्हें बूढ़े माली कहकर किनारे कर दिया गया था अब उन्हें वोटों के बाग़ को बचाने के लिए उतारा  गया है। दोनों बगीचे का एहसान उतारने के लिए फूल को बचाये रखने के लिए अपने अपने समुदायों से गुहार लगा रहे हैं। ये प्रयास कितने फलीभूत होते हैं कितने नहीं यह तो वक्त बताएगा। लेकिन इस सबके बीच औंधे मुंह पडी कांग्रेस अचानक समीकरणों पर चढ़कर खड़ी हो गई है। टिक पाती है या नहीं ये अभी देखना होगा। हिमाचल में उप-चुनाव के नतीजों का इतिहास हम और आप सब जानते हैं, लेकिन यह भी सभी जानते हैं कि इतिहास जुनूनी लोग ही लिखते हैं। सुघड़ और सयाने तो सर्फ उसे वांचते हैं।

Ekta