हिमाचली काला जीरा और चूली का तेल GI Act में शामिल, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होगी अलग पहचान (Video)

Saturday, Jun 01, 2019 - 04:21 PM (IST)

रामपुर बुशहर (विशेषर नेगी): काला जीरा और चूली के तेल को जी.आई. यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन ऑफ गुड्स एक्ट में शामिल किए जाने पर किन्नौर के लोगों में खुशी का माहौल है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इससे उनके क्षेत्र में पाए जाने वाले उत्पाद की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग पहचान होगी। मार्कीट में दोनों उत्पादों के वाजिब दाम मिलेंगे। चूली और काला जीरा दोनों में औषधीय गुण हैं। चुली का तेल और काला जीरा हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में पाया जाता है। खासकर किन्नौर के सांगला आसपास के जंगलों में प्राकृतिक रूप से काला जीरा निकलता है। इसी तरह चूली जिसे वाइल्ड एप्रिकॉट के नाम से भी जाना जाता है किन्नौर के अलावा पड़ोसी जिलों में भी पाया जाता है।

चुली और काला जीरा विशुद्ध रूप से ऑर्गेनिक

चूली जून में पकती है। उसके बाद इसे पेड़ से झाड़ा जाता है। फिर चूली व गुट्टी अलग कर गुट्टी को तोडऩे पर अंदर की गिरी जो बादाम की तरह होती है निकलती है। इस गिरी से मशीन में तेल निकाला जाता है। चुली और काला जीरा दोनों ही विशुद्ध रूप से ऑर्गेनिक हैं। इनमें कोई छिड़काव नहीं किया जाता है। चूली के तेल को पुराने जमाने मे लोग घी के रूप में भी खाने में प्रयोग करते थे। इसके तेल से मालिश करने से जोड़ों में दर्द कम होती है। काला जीरा में भी कई औषधीय गुण है। इसे दाल-सब्जी में थोड़ा सा लगाने से पकवान सुगंधित और स्वादिष्ट बनता है।

विज्ञान एवं पर्यावरण परिषद ने करवाया पेटैंट

हाल ही में हिमाचल प्रदेश विज्ञान एवं पर्यावरण परिषद ने इनका पेटैंट करवाया है। अब इसकी मार्कीट में ज्यादा वैल्यू होगी। हिमाचल प्रदेश पेटैंट सूचना केंद्र विज्ञान एवं पर्यावरण परिषद ने जी.आई. एक्ट 1999 के तहत रजिस्ट्रार जी.आई. में सफलतापूर्वक पेटैंट करवाया है। पेटैंट से अब हिमाचली काला जीरा और चूली तेल की पहचान अंतर्राष्ट्रीय बाजार में होगी। देव कुंती ने बताया कि हाल ही में जीरा और चूली तेले को जी.आई. दर्जे में लाया गया है। इससे किन्नौर के लोगों मे खुशी की लहर है। अब उनके इन उत्पादों की बाजार में मांग भी बढ़ेगी।

Vijay