हाल-ए-हिमाचल: बीजेपी अध्यक्ष पद को लेकर शुरू हुई चौसर, कौन-कौन कर रहा कसरत

Monday, Aug 26, 2019 - 05:32 PM (IST)

शिमला (संकुश): बीजेपी के नए अध्यक्ष को लेकर शाह मात का खेल शुरू हो गया है। हालांकि पार्टी को नया अध्यक्ष दिसंबर या नए साल में ही मिलना है और अक्टूबर में संभावित उपचुनाव सतपाल सत्ती की ही अध्यक्षता में लड़े जाने हैं। पार्टी का सदस्यता अभियान पूरा हो गया है और अब अगले स्टेप यानि मण्डलाध्यक्षों के चुनाव की तरफ कदम उठ चुका है। उसके बाद जिलाध्यक्ष चुने जाएंगे और फिर तब जाकर प्रदेशाध्यक्ष का चुनाव होगा। कायदे के मुताबिक  मंडलाध्यक्ष जिलाध्यक्ष का चयन करते हैं और जिलाध्यक्ष मिलकर राज्याध्यक्ष का। हालांकि  इसमें स्टेट डेलिगेट्स भी रहते हैं। बीजेपी के संविधान के अनुसार हर मंडल से दो स्टेट डेलीगेट तय होते हैं और फिर दो अतिरिक्त डेलीगेट जिला के रहते हैं। यानी मान लीजिए किसी जिला में  पांच मंडल हैं तो राज्याध्यक्ष के चुनाव के लिए मंडलों से दस (पांच x दो) और जिलाध्यक्ष और दो अन्य जिला डेलीगेट्स सहित कुल 13 लोग राज्याध्यक्ष के चुनाव में हिस्सा लेंगे। सदस्यता पूर्ण होने के बाद अब 11 अक्टूबर से 31 अक्टूबर तक मंडलाध्यक्ष चुने जाएंगे। फिर 11 नवंबर से 30  नवंबर तक जिलाध्यक्ष चुने जाएंगे और पहली दिसंबर से 15 दिसंबर के बीच राज्याध्यक्ष चुना जाएगा। यानी 15 दिसंबर तक बीजेपी को नया राज्याध्यक्ष मिल जाएगै। 

इस बार स्पष्ट है हाईकमान की नीति 

हालांकि यह सब तब होगा जब वोटिंग होगी और वोटिंग की नौबत 21 साल से नहीं आई। आखिरी बार यह नौबत ज्वालामुखी में आई थी लेकिन तब भी वोटिंग हुई नहीं थी। उस लिहाज से  वोटिंग के जरिए राज्याध्यक्ष चुने जाने वाले आखिरी शख्स प्रेम कुमार धूमल थे जिन्होंने किशोरी लाल को पटखनी देकर जीत हासिल की थी। उसके बाद  समय के साथ साथ बीजेपी में कांग्रेस कल्चर स्थापित हो गया। अध्यक्ष केशव कुञ्ज और 11 अशोका रोड से तय होने लगे। इस बार भी अगर केशव कुञ्ज नहीं तो कम से कम 6 दीन दयाल मार्ग  से ही अध्यक्ष तय होगा। सूत्र  बताते हैं कि हाईकमान ने यह कड़ा फैसला किया है कि कहीं भी चुनाव यानी मतदान की नौबत नहीं आने दी जाएगी। अगर मंडलों में सर्वसम्मति से चुनाव हो गया तो ठीक, अलबत्ता जरा सा भी विवाद होने पर बंदा ऊपर से थोपा जाएगा। यही नियम जिला अध्यक्षों पर भी लागू होगा। ऐसे में  यह कल्पना तो बेमानी होगी की बीजेपी अध्यक्ष के लिए जिलाध्यक्ष और स्टेट डेलीगेट मतदान करेंगे। यानी जिलाध्यक्ष किसी के भी हों  राज्याध्यक्ष वही होगा जिसे केंद्रीय हाईकमान चाहेगी। लेकिन ऐसी स्थितियों में भी गोटियां फिट करने में क्या जाता है, सो चौसर बिछ गई है और  बाजियां चलनी शुरू हो चुकी है। 

किस खेमे से कौन ठोक रहा खम ?? 

अध्यक्ष पद के लिए आमतौर पर मुख्यमंत्री खेमा ही मजबूत माना जाता रहा है। ऐसे में सबसे पहले चर्चा मुख्यमंत्री जयराम के खेमे की ही कर लेते हैं। इस खेमे के फ्रंट रनर हैं विधायक राकेश जम्वाल। युवा है, संगठन में गढ़े-कढ़े हैं, लेकिन उनका और मुख्यमंत्री का एक ही जिला  और एक ही जाति से होना आड़े आ सकता है। हालांकि अभी भी और प्रेम कुमार धूमल के समय में भी मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष दोनों राजपूत वर्ग से थे। लेकिन एक जिला से दोनों के होने का उदाहरण फिर भी मौजूद नहीं है। ऐसे में इस खेमे से दूसरा नाम विजय अग्निहोत्री का सामने आता है। वे भी संगठन के संघर्ष के लिए जाने जाते हैं। जिलाध्यक्ष से सीधे बीजेपी के उपाध्यक्ष बने हैं। लोअर हिमाचल से हैं और ब्राह्मण भी हैं लेकिन भरी लहर में चुनाव हार जाना और बीजेपी के भीतर उनको गंभीरता से न लिया जाना उनके लिए बाधा पैदा कर सकता है। राम कुमार भी विचाराधीन हैं। ब्राह्मण भी हैं, लेकिन बार बार ऊना की बारी और फिर नेता प्रतिपक्ष से दो बार चुनाव हारना उनकी बाधाओं के रूप में गिना जाएगा। इसी खेमे की नज़र ख़ुशी राम बालनाहटा पर भी है। लेकिन देखना होगा कि हिलोपा के गठन के सूत्रधार को क्या बीजेपी अपने अध्यक्ष के रूप में स्वीकारेगी ?? यही दिक्कत महेंद्र नाथ सोफत के सामने भो हो सकती है। अलबत्ता वे तो मित्रमंडली के भी रणनीतिकार रहे हैं। ऐसे में जब ये उमीदवार आपस के गुण-दोष के आधार पर  छलनी से गुजरेंगे तो सबसे सशक्त धावक बचेंगे राजीव भरद्वाज। सबसे बड़े जिला से हैं, ब्राह्मण हैं और गंभीर भी दीखते ही हैं। हालांकि उनको शांता खेमे का माना जाता है लिहाज़ा देखना यह होगा कि  क्या जयराम गुट उनपर दांव खेलेगा ?? बीच में राम सिंह छुपा हुआ घोडा (डार्क हॉर्स ) हो सकते हैं। संघ और जयराम का संग उनकी सबसे बड़ी पूंजी है। सौम्य हैं, स्वीकर्यता न भी हो तो विरोध भी नहीं है। ऊपर से दलित अध्यक्ष का नारा चल गया तो दावेदारी मजबूत पड़ सकती है।  

दूसरे खेमे से कौन कौन ??

दूसरे खेमे को आप धूमल खेमा कह सकते हैं। हालांकि प्रेम कुमार धूमल सीधे खेल खेलेंगे यह  संभव नहीं लगता। उनकी मण्डली की  भूमिका टीम के 12 वें  से 15 वें खिलाड़ी की रहेगी यानी कोई इंजर्ड हुआ तो उनका बंदा बैटिंग करने उतरेगा। लेकिन इसके बावजूद  इस खेमे के संभावित उम्मीदवारों में रणधीर शर्मा सबसे ऊपर हैं। रणधीर शर्मा वैसे भी अपनी सांगठनिक क्षमताओं के चलते इस पद के लिए सबसे योग्य हैं। उम्र, ऊर्जा, अनुभव, जाति और क्षेत्र सभी समीकरणों में वे इक्कीस हैं, सिवा एक विशेष खेमे के टैग के। उनके बाद वीरेंद्र कश्यप और किशन कपूर इस खेमे की बेंच स्ट्रेंथ हैं। यानी दलित या ट्राइबल कार्ड चला तो ये दोनों  जयराम खेमे के सामने  प्रबल चुनौती पेश करेंगे।  

तीसरा खेमा भी 

इस बार तीसरा खेमा भी होगा। हालांकि यह हमेशा से ही रहा है लेकिन अंदरखाते ही खेलता रहा है। पर इस बार खुलकर खेलने के मूड में है। शांता कुमार का संन्यास इसी खेमे ने कराया था। यह खेमा संगठन मंत्री का होगा। पवन राणा की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं किसी से छिपी नहीं हैं। सत्ती उनके सामने चक्क्रघिन्नी की तरह नाचते थे। ऐसे में सत्ती के जाने के बाद राणा को एक और चक्क्रघिन्नी चाहिए होगी। त्रिलोक जम्वाल और गणेश दत्त के नाम चर्चा में हैं। तीसरा कोई नाम है तो वो राम सिंह का है। ये सबसे दिलचस्प समीकरणों वाला खेमा है। त्रिलोक को अभी तक नड्डा खेमे से ही जोड़कर देखा जाता रहा है जबकि गणेश दत्त धूमल और राम सिंह जयराम के माने जाते हैं। चलिए देखिए क्या सामने आता है।  

इन्हें न भूलना 

इस सारी धमाचौकड़ी के बीच कुछ नाम ऐसे भी हैं जिन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। हालांकि अभी इनके नाम की कोई सम्भावना नहीं है लेकिन ये चाहें तो कुछ भी हो सकता है। इनमें राजीव बिंदल, इंदु गोस्वामी और किरपाल परमार हैं। बिंदल अगर चाहते हैं तो संघ, सरकार कहीं किसी का विरोध अबके शायद ही हो। यही बात इंदु गोस्वामी और किरपाल परमार पर लागू होती है। हाईकमान में इनकी सीधी पैठ है। हालांकि इस बात की सम्भावना बिलकुल नहीं है कि मोदी जी और अमित शाह हिमाचल के मामले में कोई पसंद जाहिर करेंगे। ये मामला तो  जेपी का ही एकाधिकार है और जेपी को जो जानते हैं, उन्हें पता है कि वे बिना लाठी तोड़े सांप मारने में माहिर हैं।   

Ekta