चुनावों से पहले एक बार फिर 4,500 करोड़ की सेब बागवानी पर राजनीति

Sunday, Mar 31, 2019 - 12:02 PM (IST)

शिमला (कुलदीप): लोकसभा चुनाव के दौरान एक बार फिर 4,500 करोड़ रुपए की सेब बागवानी पर राजनीति होने लगी है। ऐसे में सेब पर आयात शुल्क (इम्पोर्ट ड्यूटी) बढ़ाए जाने संबंधी मांग फिर उठी है। मौजूदा समय में सेब पर 50 फीसदी आयात शुल्क है, जिसे बढ़ाने की मांग लगातार की जा रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी यह मुद्दा बना, लेकिन आयात शुल्क में किसी तरह की बढ़ौतरी नहीं हुई। मौजूदा लोकसभा चुनाव में एक बार फिर यह मांग उठी है। इस समय कुल फलोत्पादन में सेब की हिस्सेदारी 49 फीसदी है। इसमें से अकेले शिमला जिला में 75 फीसदी सेब का उत्पादन होता है। 

आयात शुल्क बढ़ाने का मामला केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है और इसी कारण बागवानी संघों के साथ फल उत्पादक एक बार फिर से इस मांग को उठा रहे हैं। बागवान सेब पर आयात शुल्क 2 से अढ़ाई गुना तक बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं, साथ ही कोल्ड स्टोर (सी.ए.) क्षमता को बढ़ाए जाने की मांग की जा रही है। राज्य में इस समय करीब 5 फीसदी फसल को ही सी.ए. स्टोर में रखने की क्षमता है। सी.ए. स्टोर में रखे जाने पर इसे 4 से 5 माह तक रखा जा सकता है।

सेब जी.डी.पी. का 15 फीसदी हिस्सा

सेब हिमाचल प्रदेश की आॢथकी का मुख्य आधार है। प्रदेश की जी.डी.पी. में इसका करीब 15 फीसदी तक योगदान है। सेब राज्य के 12 में से 9 जिलों में पैदा हो सकता है, लेकिन मुख्य रूप से शिमला, किन्नौर, लाहौल-स्पीति, कुल्लू, मंडी और चम्बा में ही इसका उत्पादन होता है। प्रदेश में सेब उत्पादन से करीब 1.70 लाख परिवार जुड़े हैं।

विदेशों से आयातित संभावित सेब की मात्रा

जानकारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2006-07 में हिमाचल प्रदेश में 35,832 मीट्रिक टन सेब आयात होता था। वर्ष 2010-11 में यह बढ़कर 1,15,391 टन तथा वर्ष 2012-13 तक 2,20,000 मीट्रिक टन पहुंचा। मौजूदा समय में आयातित सेब की मात्रा करीब 3,00,000 मीट्रिक टन के आसपास पहुंच गई है। सेब मुख्य रूप से अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, चीन और न्यूजीलैंड से आता है।

Ekta