2 शोधकर्ताओं ने हमीरपुर व मंडी से 188 साल बाद खोज निकाली दुर्लभ प्रजाति ''ब्रैकिस्टेल्मा एटेनुएटम''

Thursday, Jun 30, 2022 - 07:02 PM (IST)

शिमला (ब्यूरो): भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के शोधकर्ता डाॅ. अम्बर श्रीवास्तव और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से निशांत चौहान द्वारा हिमालय की एक विलुप्त मान ली गई दुर्लभ पादप प्रजाति ब्रैकिस्टेल्मा एटेनुएटम को 188 वर्षों के अंतराल के उपरांत पुन: खोज निकाला है। इस प्रजाति को पहली बार सन् 1835 में ब्रिटिश वनस्पति वैज्ञानिक जॉन फोर्ब्स रॉयले ने हिमाचल प्रदेश के डूंगी गांव से संग्रहित किया था, जिसके आधार पर एक अन्य वनस्पति शास्त्री रॉबर्ट व्हाइट ने इसका वर्णन किया था। इसकी पहली खोज से लेकर अभी तक इस प्रजाति को दोबारा नहीं देखा गया था, जिसके कारण कई वैज्ञानिकों द्वारा इसको विलुप्त मान लिया गया था।

2020 में हमीरपुर जिले से मिले ब्रैकिस्टेल्मा कुल के पौधे 
वर्ष 2020 में पश्चिमी हिमालय में सर्वेक्षण के दौरान निशांत चौहान को हमीरपुर जिले से ब्रैकिस्टेल्मा कुल के कुछ पौधे मिले, जिनको पहचान के लिए भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण देहरादून में तत्कालीन कार्यरत डाॅ. अम्बर श्रीवास्तव के पास भेजा गया था। जहां से वैज्ञानिक अध्ययन के उपरांत उन पौधों की पहचान 186 वर्षों से विलुप्त प्रजाति ब्रैकिस्टेल्मा पार्वीफ्लोरम के रूप मेें की गई। इस विषय में और अधिक सर्वेक्षण के दौरान शोधकर्ताओं ने एक अन्य विलुप्त प्रजाति ब्रैकिस्टेल्मा एटेनुएटम को भी हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर और मंडी जिले से खोज निकाला है। निशांत चौहान हमीरपुर जिले के टिक्कर खतरियां गांव के रहने वाले हैं तथा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं जबकि डाॅ. अम्बर श्रीवास्तव लखनऊ के निवासी हैं।

इंगलैंड की शोध पत्रिका में प्रकाशित किया
इतने लंबे अंतराल के बाद मिली इस विलुप्त प्रजाति की खोज को इंगलैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रैस द्वारा प्रकाशित विश्व स्तरीय शोध पत्रिका ओरिक्स के जुलाई 2022 के अंक में प्रकाशित किया गया है। हालांकि इस प्रजाति को सर्वप्रथम पिछले वर्ष 2021 मेें ही देखा गया था लेकिन उस दौरान पौधे अपने विकास के अंतिम चरण में थे, जिस कारण उनकी उचित पहचान की पुष्टि कर पाना संभव नहीं हो सका था। इस वर्ष मार्च माह में दोबारा सर्वेक्षण के दौरान उन पौधों का विस्तृत अध्ययन करने के उपरांत उनकी पहचान की पुष्टि की गई है। 

क्या कहते हैं शोधकर्ता 
शोधकर्ता डाॅ. अम्बर श्रीवास्तव ने बताया कि मात्र 2 वर्षों में वैज्ञानिकों द्वारा विलुप्त मान ली गईं 2 दुर्लभ पादप प्रजातियों का मिलना यह दर्शाता है कि इस भौगोलिक क्षेत्र में अभी और अधिक सर्वेक्षणों की आवश्यकता है। संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उन प्रजातियों के प्राकृतिक वास स्थलों का क्षय होने से रोकने के प्रयास किए जाएं तथा उनके अनियंत्रित दोहन पर भी रोक लगाई जाए। वहीं शोधकर्ता निशांत चौहान ने बताया कि शोध एवं सर्वेक्षण में हमने पाया कि इस प्रजाति को सर्वाधिक खतरा मानवजनित गतिविधियों से है, जिसका मूल कारण भूमिगत कंदों का अधिक दोहन है। स्थानीय लोग व मुख्य रूप से चरवाहे खाद्य गुणों के कारण इसके कंदों को खोदकर खा जाते हैं और साथ ही इसके प्राकृतिक परिवेश को भी विकृत करते जा रहे हैं। जिन क्षेत्रों में लोग इसकी पहचान और उपस्थिति से अनभिज्ञ हैं, वहां इसकी संख्या अन्य स्थानों से अधिक आंकी गई है।

संकटग्रस्त सूचियों में शामिल करने की आवश्यकता
इन दोनों ही प्रजातियों का भौगोलिक विस्तार बहुत कम होने के साथ-साथ इनकी संख्या तेजी से घटती जा रही है, जिसके कारण इन प्रजातियों को आईयूसीएन की रैड लिस्ट के मानदंड के आधार पर गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों की सूची में शामिल करने की आवश्यकता है, जिससे कि समय रहते इन प्रजातियों का उचित संरक्षण किया जा सके।

जानिए विलुप्त पादप प्रजाति बारे
जीनस ब्रैचिस्टेल्मा में 100 से अधिक प्रजातियां शामिल हैं जो मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और ऑस्ट्रेलिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। भारत में जीनस को सी द्वारा दर्शाया जाता है। 40 प्रजातियां मुख्य रूप से पश्चिमी घाट में पाई जाती हैं और इनमें केवल 4 उत्तरी भारत से रिपोर्ट की गई हैं। ब्रैकिस्टेल्मा की कई प्रजातियों में औषधीय गुण होने की बात भी सामने आई है, जिसके कारण कई स्थानो पर स्थानीय लोगों द्वारा इसके कन्द खाए भी जाते हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश अत्याधिक दोहन होने के कारण इसकी अधिकांश प्रजातियां आज संकटग्रस्त हैं। इतना ही नहीं, इसकी कुछ प्रजातियों का विश्व स्तर पर सजावटी पौधे के रूप में भी व्यापार किया जाता है जो कि इसके दोहन का एक अन्य मुख्य कारण है।

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Content Writer

Vijay