हुरला में बिठ पर्व की धूम, बुरांस के फूलों से हुई देवताओं की पूजा

punjabkesari.in Saturday, Apr 17, 2021 - 08:21 PM (IST)

जिला कुल्लू के हुरला में देवता मार्कंडेय ऋषि व बाबा वीरनाथ को समर्पित बिठ उत्सव धूमधाम और दैविक रीति रिवाजों के अनुसार मनाया गया। सैकड़ों कारकूनों और हारियानों ने इस मौके पर हुरला के साथ लगती पहाड़ी पर कई घंटों की पैदल यात्रा के बाद बुरांस के फूलों को एकत्रित कर बिठ को तैयार कर हुरला में देर शाम को पहुंचाया। मेले में मंडी जिला की स्नोर घाटी के वियाणी के देवता भी हारियानों संग मेहमान देवता के रूप में पहुंचे थे। श्रेष्ठ मास माने जाने वाले बैसाख में घाटी के देवता अपनी दैविक शक्तियों को अर्जित करने के लिए पहाड़ों पर अपने दैविक स्थलों पर जाते हैं और देव शक्तियों को अर्जित करते हैं।

इसके अलावा दैविक शक्तियों के जरिए देवता अपने हारियान क्षेत्र को एक साल तक ओलों और अतिवृष्टि के कहर से भी बचाते हैं। यहां पर कारकूनों ने जोगनी पूजन की प्रक्रिया को पूरा किया तो इसके बाद बुरांस के फूलों का देवता, जिसे बिठ कहा जाता है, उसे तैयार किया गया। इसे कारकूनों द्वारा सिर पर उठाकर हुरला में देवता के मंदिर में पहुंचाया गया। हुरला में बिठ के पहुंचने पर कारकूनों द्वारा जोरदार स्वागत किया गया। मंदिर में लाने के बाद बिठ के साथ देवताओं और देवलुओं ने अढ़ाई बार परिक्रमा की। इसके बाद दो गुटों में बंटे कारकूनों और हारियानों में बिठ के फूलों को प्राप्त करने के लिए खींचतान आरंभ हो गई।  दोनों गुटों में इसके लिए कशमकश हुई और बुरांस के फूलों को देवता के शेष के तौर पर हारियानों ने एकत्रित किया। उक्त खींचतान दैविक उत्सव का आकर्षण का केंद्र रही। धार्मिक मान्यता है कि बिठ के फूलों को जो भी प्राप्त करता है तो उसे सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

यह मेला देवता मार्कंडेय ऋषि व बाबा वीरनाथ के सम्मान में मनाया जाता है।मानयता है की बुरांस के फूलों को जो भी प्राप्त करता है वह भाग्यशाली होता है और उसकी मनोकामना भी पूरी होती है। साथ ही वर्ष कोरोना के कारण सिर्फ देव संस्कृति का निर्वहन किया गया। वही सांस्कृतिक कार्यक्रम को रद्द्द कर दिया गया है।


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News Editor

Dishant Kumar

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