भारतीय नोटों के इन रोचक पहलुओं से अभी तक आम जनता है अनजान

Wednesday, Nov 16, 2016 - 10:54 AM (IST)

पालमपुर: 1000 और 500 रुपए के नोटों के बंद होने के बाद पूरा भारत पैसे के पीछे भाग रहा है तथा हर कोई पैसों की बात कर रहा है। ऐसे में नोटों के बारे में कुछ रोचक जानकारियां भी हैं जिनसे अभी तक आम जनता अनजान है। हर तरफ इन नोटों को कागज का टुकड़ा बताया जा रहा है जबकि ये नोट उच्च कोटि के कोटन के मिश्रण से बने होते हैं जिससे ये भीगने पर भी गलते नहीं हैं। ये कोटन मिश्रित नोट मध्यप्रदेश के देवास, महाराष्ट्र के नासिक, कर्नाटक के मैसूर और पश्चिम बंगाल के सल्तोनी स्थित प्रिटिंग प्रैस में छपते हैं। 


उल्लेखनीय है कि सिर्फ एक रुपए का नोट वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता है जिसमें मंत्रालय के सैक्रेटरी के हस्ताक्षर होते हैं जबकि 2 रुपए व इससे ऊपर के सभी बड़े नोट रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया गवर्नर द्वारा जारी किए जाते हैं। 15 जुलाई 2010 को इन छपने वाले नोटों को रुपए का नया चिन्ह मिला जिसे एक भारतीय युवा उदय कुमार ने डिजाइन किया था, जिसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा अढ़ाई लाख रुपए का ईनाम दिया गया था। मुद्रा को लेकर एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि सिक्कों को गौर से देखें तो पाएंगे कि उसके जारी होने के वर्ष के नीचे एक निशान बना है। डायमंड का निशान हो तो सिक्का मुंबई में बना, डॉट हो तो नोएडा में, स्टार हो तो हैदराबाद में और कोई चिन्ह अंकित न हो तो वह सिक्का कोलकाता में बना होता है। 


पाकिस्तान के पास अपना कोई प्रिटिंग प्रैस न होने की वजह से बंटवारे के बाद भी कई वर्ष तक पाकिस्तान में भारतीय नोट चलते रहे जिन पर पाक की मोहर लगी होती थी। नोटों की कहानी को आगे बढ़ाया तो आज भी नेपाल में भारत के 1000 व 500 रुपए के नोटों पर पाबंदी है जबकि भारतीय छोटी करंसी से वहां कुछ भी खरीदा जा सकता है। किसी भारतीय के पास बड़े नोट पकड़े जाने पर कानून प्रतिबंध है। भारतीय नोटों के ऊपर चांदी का सुरक्षा धागा लगा होता है जिसमें अंग्रेजी में आर.बी.आई. व हिन्दी में भारत छपा होता है।  


1949 में एक रुपए का पहला नोट छपा 
उल्लेखनीय है कि आजादी के 2 वर्ष के बाद तक 1949 में एक रुपए का पहला नोट छपा जिसमें से जॉर्ज किंग की तस्वीर के स्थान पर अशोक स्तंभ का प्रतीक अंकित किया गया। भारतीय नोटों का इतिहास 250 साल पुराना है। भारत में पहले 5 व 10 हजार रुपए के नोट भी चला करते थे जिन्हें 1938 में बंद कर दिया गया तथा 1954 में पुन: शुरू किया गया जिन्हें 1974 में बंद कर दिया गया।