...और वो मरकर फिर से जिंदा हो गया (Watch Video)

Wednesday, Aug 02, 2017 - 10:00 AM (IST)

मंडी (नीरज शर्मा): क्या आप विश्वास करेंगे कि किसी व्यक्ति को दैवीय शक्ति से मार दिया जाता है और फिर वही शक्ति उसे जिंदा भी कर देती है। विश्वास न करने वाली यह घटना 5 साल में एक बार देव हुरंग नारायण के मंदिर में होती है। मंदिर में 5 सालों के बाद 'काहिका उत्सव' मनाया जाता है और इस उत्सव के दौरान ही यह सबकुछ होता है। यह काहिका उत्सव मंडी जिला के पधर उपमंडल के सुराहण गांव स्थित देव हुरंग नारायण के मंदिर में 5 सालों के बाद मनाया जाता है। दरअसल काहिका उत्सव खुशहाली और स्मृद्धि का प्रतीक है। स्थानीय लोग मानते हैं कि इस उत्सव से उनके इलाके की शुद्धि होती है तथा सुख शांति बनी रहती है। लोक आस्था के अनुसार यदि किसी से भूल से कोई पाप हो गया हो तो उससे मुक्ति भी इस 'काहिका उत्सव' के दौरान मिल जाती है। इस प्रक्रिया को स्थानीय भाषा में 'छिद्रा' कहा जाता है। यह इस उत्सव की कुछ मुख्य रस्में होती हैं, जिन्हें मीडिया को कवर नहीं करने दिया जाता और न ही स्थानीय लोग अपने मोबाइल में इनकी कोई तस्वीरें उतारते हैं।


पूरे गांव में निकाली जाती है मर चुके नड़ पंडित की शवयात्रा
तीन दिनों के चलने वाले इस 'उत्सव' का मुख्य आकर्षण तीसरे दिन होता है। इस दिन देव हुरंग नारायण का रथ मंदिर से बाहर निकलता है और पूरे इलाके की परिक्रमा करता है। देवलू देवरथ के साथ खूब झूमते और खुशियां मनाते हैं। इसके पश्चात शाम के समय जब दिन ढलने वाला होता है तो उस वक्त इस उत्सव की मुख्य रस्म निभाई जाती है। नड़ पंडित जाती के एक व्यक्ति का देवता की तरफ से चयन किया जाता है। फिर इस व्यक्ति को दैविय शक्तियों के द्वारा मूर्छित किया जाता है। माना जाता है कि मूर्छित करने के साथ ही उसकी मौत भी हो जाती है। उपरांत इसके मर चुके नड़ पंडित की एक शवयात्रा पूरे गांव में निकाली जाती है और इस दौरान जौ के आटे को हवा में उछाला जाता है ताकि कोई विघ्न बाधा न आए। उपरांत इसके शव को देवता के मंदिर में ले जाया जाता है और वहां पर देवता का पुजारी मूर्छित नड़ पंडित के कान में कहता है कि उसे देवता बुला रहा है। इसी के साथ मूर्छित हुआ नड़ फिर से जीवित हो जाता है।


कुल्लू जिला के अन्य स्थानों पर भी मनाया जाता है काहिका उत्सव
यदि नड़ पंडित कभी जीवित न हो सका तो देवता की करोड़ों की संपति उसके परिवार को दे दी जाएगी। इस पूरे घटनाक्रम पर यहां आए हुए श्रद्धालु और देवता के पुजारी कैमरे पर कुछ नहीं बोलते और न ही इन घटनाक्रमों की रिकार्डिंग करने दी जाती है। मंडी जिला के वरिष्ठ लेखक बीरबल शर्मा इन घटनाक्रमों की पुष्टि करते हुए बताते हैं कि नड़ के मरने और जिंदा करने के तो कोई चिकित्सिय प्रमाण नहीं होते लेकिन लोक आस्था के अनुसार यह सब घटित होता है। क्योंकि आज के इस आधुनिक युग में इन सब बातों पर विश्वास कर पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। बता दें कि काहिका उत्सव मंडी और कुल्लू जिला के अन्य स्थानों पर भी मनाया जाता है। आने वाले दिनों में मंडी जिला की चौहारघाटी में भी यही घटनाक्रम फिर से देखने को मिलेंगे।