कुल्लू आएं तो देखना न भूलें यह रहस्यमयी झरना, रोचक है कहानी

Thursday, Dec 07, 2017 - 06:54 PM (IST)

कुल्लू: देवघाटी में कई जल स्रोत हैं जिनका इतिहास किसी न किसी से जुड़ा हुआ है। मणिकर्ण घाटी में भी एक ऐसा झरना है जिसका नामकरण फुहाल के नाम पर हुआ है। घाटी के तहत आने वाले शिल्हा गांव से ऊपर जंगल में काफी ऊंचाई पर एक ऐसा स्थान है जहां प्राकृतिक स्रोत है। इसकी कथा भी काफी रोचक है। झरने के नामकरण को लेकर जब एक  फुहाल से पूछा गया तो उसने इस बारे में एक दिलचस्प बात बताई। उसने बताया कि यहां जंगल में एक फुहाल अक्सर भेड़-बकरियों को चराने के लिए आता था। इस जंगल में पानी का कोई भी स्रोत नहीं था इसलिए वह पीने के लिए पानी अपने साथ ही किसी बर्तन में भरकर ले जाता था। एक दिन वह अपने साथ पानी ले जाना भूल गया। दिन में जब उसे प्यास लगी तो पानी न मिलने की वजह से वह काफी परेशान हो गया। उसने पूरा जंगल घूमा लेकिन उसे पानी नहीं मिला। घर तो शाम ढलने के बाद ही जाना था।

दराट को चट्टान पर मारने से फूट पड़ी जलधारा
फुहाल अपने साथ एक पारंपरिक दराट रखता था। दिनभर भेड़-बकरियों के पीछे चलते-चलते फुआल को अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी नहीं मिला तो थक कर वह एक चट्टान के पास आकर बैठ गया। प्यासे फुआल को अपने आप पर काफी गुस्सा आ रहा था कि आज उसकी मति मारी गई थी जो अपने साथ पानी नहीं लाया। उसने गुस्से में अपना दराट उठाया और इस चट्टान पर दे मारा। दराट की चोट से चट्टान में एक छेद हो गया और उससे पानी का फव्वारा फूट पड़ा। फुहाल की खुशी का ठिकाना न रहा और उसने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई। लोक धारणा के अनुसार तब से इस जगह और पानी के  चश्मे का नाम फुआल पाणी रखा गया है। 

चट्टानों के बीच से पानी निकलना रहस्य से कम नहीं
शिल्हा गांव के साथ लगती पहाड़ी पर चट्टान के भीतर से पानी निकलना किसी रहस्य से कम नहीं है। इस पानी को देखने के लिए कई लोग यहां आते हैं। स्थानीय गडरिये का कहना है कि पानी किस तरह चट्टान से निकल रहा है और कहां इसका मूल स्रोत है, यह हरेक के लिए रहस्य बना हुआ है। कई लोग तो यहां पर धूप बत्ती भी करते हैं और साक्षात ईश्वर को अपने करीब पाते हैं। बीस भादों के अवसर पर लोग यहां से पानी अपने साथ घर ले जाते हैं। इस पानी को शुद्ध माना जाता है। देव कारज के लिए भी लोग यहां से शुद्धिकरण के लिए पानी ले जाते हैं।