नादौन की वो बातें, जिन्हें देखकर कहा जाता है- आए नदौण तो जाए कौण

Wednesday, Nov 15, 2017 - 04:21 PM (IST)

नादौन: रियासतों के दौर से ही नादौन का गौरवशाली इतिहास रहा है। कभी कटोच वंश के राजाओं की कर्मभूमि के बारे में मशहूर है। बुजुर्गों का कहना है कि  जो कोई भी नादौन आ जाता है तो वह वहां का ही होकर रह जाता है। इसका कारण वहां की खूबसूरती है। नादौन के अमतर का किला इतिहास को आज भी संभाले हुए है। देखरेख के अभाव में ये किला जर्जर हालत में पहुंच चुका है, मगर किले में अभी भी कुछ प्राचीन चित्र हैं, जो कटोच वंश के राजा संसार चंद की शाही विरासत को जिंदा करते हैं। 

आम के पेड़ों से घिरा है महल
किले के साथ ही कटोच राजवंश का एक महल भी है। आम के पेड़ों के बीच घिरा ये महल ठीक व्यास नदी के किनारे सटा है। राजा महेश्वर  चंद आज भी अपने महल में यहां रहते हैं। महल के अंदर आपको इतिहास से जुड़ी कई चीजें देखने को मिलती हंै, जो उस दौर के खुशहाली को दिखाती हैं। रियासती काल में नादौन जागीर का ये मुख्यालय हुआ करता था, जहां पर राजा संसार चंद अपना दरबार लगाया करते थे। नादौन के पहले राजा होने का श्रेय संसार चंद के पुत्र युद्धवीर चंद कटोच को हासिल है।

मुगलों को दी थी मात
व्यास नदी के किनारे नादौन में एक ऐतिहासिक गुरुद्वारा भी है। इस गुरुद्वारे का सीधा संबंद्ध सिखों के 10वें गुरु, गुरु गोविंद सिंह से है। यह गुरुद्वारा ठीक उसी जगह पर बनाया है जहां गुरु गोविंद सिंह ने मुगलों को हराया था। उन्होंने 500 सिख सैनिकों के साथ 4 अप्रैल, 1891 को मुगल सरदार अल्फा खान हुसैन के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और जीती भी थी। सिखों की पवित्र पुस्तक दस्सम ग्रंथ के नादौन जंग अध्याय में इस लड़ाई का जिक्र आता है। इस बात की जानकारी सिमरन सिंह, ग्रंथी, नादौन गुरुद्वारा साहिब ने दी है।

श्रद्धालु आते हैं माथा टेकने
मुगलों को हराने के बाद गुरु आठ दिन तक यहीं रुके थे। 1929 में बने इस गुरूद्वारे में आज बड़ी तादाद में श्रद्धालु मात्था टेकने के लिए आते हैं। इस गुरुद्वारे को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति चलाती है और यहां पर महाराजा रणजीत सिंह के समय का एक नगाड़ा भी मौजूद है।

अमतर में क्रिकेट स्टेडियम
नादौन आज खेलों का एक केंद्र बनकर भी उभरा है। एचपीसीए ने नादौन के अमतर में एक खूबसूरत क्रिकेट स्टेडियम बनाया है। इस स्टेडियम में जहां रणजी के मैच कराए जाते हैं वहीं उभरते हुए क्रिकेटरों की प्रतिभा को भी निखारा जाता है। नादौन की इस बेपनाह खूबसूरती की वजह से पंजाबी कवि बुल्ले शाह ने कहा था, आए नदौण तो जाए कौण।