कारगिल युद्ध में ''शहीद'' कैप्टन सौरभ कालिया ने सबसे पहले दी थी कुर्बानी
punjabkesari.in Wednesday, Jul 20, 2016 - 01:39 PM (IST)

पालमपुर: वर्ष 1999 में हुआ कारगिल युद्ध न सिर्फ पाकिस्तान पर भारत की विजय गाथा का उदाहरण है बल्कि इसके साथ ही उन तमाम शहीदों का जिक्र भी होता है जिन्होंने देश की रक्षा में अपना सबकुछ दे दिया। जाट रेजीमेंट के कैप्टन सौरभ कालिया और उनके 5 साथी जवान इस युद्ध में शहीद होने वाले बहादुरों का पहला नाम हैं। बता दें कि कैप्टन सौरभ कालिया का जन्म 29 जून, 1976 को अमृतसर में डा. एनके कालिया और विजय कालिया के घर हुआ था।
1997 में कृषि विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि लेने के बाद अगस्त माह में भारतीय सैन्य अकादमी के लिए चुने गए। 12 दिसंबर, 1998 को सौरभ कालिया की भारतीय थलसेना में कमीशंड अधिकारी में तैनाती हुई। 4 जाट रेजिमेंट में उनको कारगिल सेक्टर में तैनात किया गया। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान को खदेड़ने के लिए यह 22 साल का जवान अधिकारी अपने साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, बीका राम, मूला राम और नरेश सिंह के साथ घुसपैठियों की तलाश में था। 5 मई ,1999 को कैप्टन सौरभ कालिया अपने साथियों के साथ लद्दाख के बटालिक में बजरंग पोस्ट पर पैट्रोलिंग कर रहे थे तभी पाकिस्तानियों ने इनको साथियों सहित बंदी बना लिया। इनको 22 दिन तक बंदी बनाकर रखा गया और अमानवीय यातनाएं दी गईं।
पहला वेतन भी नहीं ले पाए कैप्टन सौरभ कालिया
जानकारी के मुताबिक सौरभ कालिया सेना में नियुक्ति के बाद अपना पहला वेतन भी नहीं ले पाए थे। पालमपुर के आईमा स्थित निवास में उनके परिजनों ने सौरभ से जुड़ी हर वस्तु सहेज कर रखी है, जो यहां आने-जाने वालों को सैनिकों की वीरता की याद दिलाती है। कुछ समय पूर्व केंद्र सरकार ने इस मसले पर अपना रुख साफ करते हुए कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय यदि अनुमति देता है, तो इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाया जाएगा। हालांकि उस समय भी सांसद शांता कुमार और एंटी टेरारिस्ट फ्रंट के अध्यक्ष मनिंद्रजीत सिंह बिट्टा सहित अन्य लोगों ने मामले को सीधा ही अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में ले जाने की वकालत की थी।