फूलों से सजाया शिव मंदिर

Sunday, Mar 06, 2016 - 10:39 PM (IST)

बैजनाथ: बैजनाथ स्थित शिव मंदिर में सोमवार से शिवरात्रि मेले शुरू होंगे। इसके चलते मंदिर को फूलों से सजाया गया है। बिनवा खड्ड के किनारे स्थित बैजनाथ कस्बे में पर्यटन व धर्म का अनूठा संगम है। बैजनाथ शिव मंदिर 9वीं शताब्दी का बना हुआ है। शिखराकार शैली में बने इस मंदिर की शिल्पकला अपने आप में अनूठी है।

 

मंदिर का संबंध रावण की तपस्या से भी जोड़ा जाता है इस कारण यहां पिछले 4 दशकों से दशहरा नहीं मनाया जाता है। मंदिर की शिल्पकला को देखते हुए यहां विदेशी पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। मन्दिर में एक ही चट्टान को तराश कर बनाया गया नंदी बैल भी आकर्षण का केंद्र है। लंकापति रावण की तपोस्थली के रूप में बैजनाथ नगरी में अचंभित करने वाली 2 बातें है। एक तो यह कि बैजनाथ कस्बे में लगभग 700 व्यापारिक संस्थान हैं परंतु कोई भी सुनार की दुकान नहीं। ऐसा कहा जाता है कि यहां सोने की दुकान करने वाले का सोना काला पड़ जाता है जिसके चलते उन दुक ानदारों को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ती हैं।

 

मंदिर की कला शैली को देखकर हर कोई हैरान हो जाता है। मंदिर के गर्भ गृह में स्थित शिवलिंग का इतिहास रावण के तप से जोड़ा जाता है, ऐसा माना जाता है कि यह वही शिवलिंग है, जिसे रावण तप कर लंका ले जा रहा था लेकिन इस जगह लघुशंका के दौरान रावण ने इस शिवलिंग को एक चरवाहे को पकड़ा दिया था काफी समय तक रावण के न लौटने पर इस चरवाहे ने इस शिवलिंग को यहीं जमीन पर रख दिया और यह शिवलिंग यहीं स्थापित हो गया।


9वीं शताब्दी में 2 व्यापारी भाइयों ने करवाया था निर्माण

ऐसा भी कहा जाता है कि तप करने के पश्चात कैलाश पर्वत से इस शिवलिंग को लंका ले जाने से पूर्व भगवान शिव ने रावण से वचन लिया था कि वह रास्ते में इस शिवलिंग को न रखे अन्यथा जहां भी वह शिवलिंग को रखेगा यह वहीं स्थापित हो जाएगा। इसके बाद 9वीं शताब्दी में इसका निर्माण 2 व्यापारी भाइयों मयूक और अहूक ने करवाया था। कांगड़ा के अंतिम शासक राजा संसार चंद ने भी मंदिर काजीर्णोद्धार करवाया था। 1905 के भूकंप में केवल यही मंदिर ऐसा था जिसे आंशिक रूप से नुक्सान हुआ था।