भवारना के छोटे उस्ताद यूवी में है गाड़ियाें के मॉडल बनाने का जुनून

punjabkesari.in Thursday, Apr 15, 2021 - 12:28 AM (IST)

परौर (पालमपुर) (रविन्द्र ठाकुर): कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई को मजबूर स्कूली बच्चों के मन-मस्तिष्क पर पड़ रहे विपरीत प्रभावों के बीच चंद ऐसे बच्चे भी हैं जोकि घर पर खाली समय का सदुपयोग अपना हुनर तराशने में कर रहे हैं। ऐसा ही हुनरमंद बालक है नौवीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा आर्यन राठौर उर्फ  यूवी। भवारना के चंजेहड़ गांव का निवासी यूवी पढ़ाई में अव्वल होने के साथ ही अपने शौक को बखूबी परवान चढ़ा रहा है। गाड़ियाें के तरह-तरह के मॉडल बनाना इस बालक का शौक या यूं कहें कि जुनून है।

9 हजार रुपए खर्च कर बनाया एचआरटीसी बस का मॉडल

अपनी धुन के पक्के यूवी ने इस बार एचआरटीसी बस का मॉडल बनाया है। इसके लिए पालमपुर बस डिपो की बसों से प्रेरणा ली है। बस का यह कोई साधारण मॉडल नहीं है। इसमें गियर, लाइट व इलैक्ट्रॉनिक डिस्प्ले बोर्ड तक लगा है। आर्यन उर्फ  यूवी को इसे तैयार करने में 4 माह का समय लगा। इसके लिए इलैक्ट्रिक सामान उसने ऑनलाइन मंगवाया। बस का मॉडल तैयार करने पर करीब 9 हजार रुपए खर्च हुए।

पहले भी बना चुका है कई गाड़ियाें के मॉडल

यह नन्हा उस्ताद पहले भी कई गाड़ियाें के मॉडल बना चुका है। पोते के हुनर को बढ़ावा देने में उसके सेना से सेवानिवृत्त दादा जगरूप राठौर भी पूरी मदद करते हैं। यूवी के पिता भारतीय सेना में कार्यरत हैं जबकि मां गृहिणी हैं। परिजनों का कहना है कि यूवी मोबाइल में गाड़ियाें के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली तकनीक सीखता रहता है। यूवी द्वारा तैयार गाडिय़ों के मॉडल को देखने आने वाले लोग उसके इस जुनून की सराहना करते हैं।

विदेश में जैसी रुचि, वैसा ही करियर

विदेश में बच्चे का शौक देखकर उसे उसी फील्ड में आगे बढऩे के लिए प्रेरित किया जाता है। ऐसे में बच्चे स्कूली शिक्षा के दौरान ही अपने मनपसंद क्षेत्र में आगे बढऩे के लिए खुद को पारंगत बना लेते हैं। बड़े होकर वे अपने कार्यक्षेत्र के महारथी बनते हैं। सिंगापुर में किड्जैनिया नामक स्थान पर बच्चों को सैर करवाई जाती है। वहां तरह-तरह के करियर संबंधी उपकरण रखे होते हैं। बच्चों को अपनी रुचि के अनुसार करियर चुनने की आजादी दी जाती है।

बच्चों पर न डालो उम्मीदों का बोझ

दुर्भाग्य से हमारे देश में अधिकांश बच्चों के भविष्य का फैसला उनके माता-पिता तय कर देते हैं। कोई अपने बच्चे को डॉक्टर, कोई इंजीनियर या फिर आईएएस अफसर बनाना चाहता है। बच्चे से यह नहीं पूछा जाता कि वह क्या चाहता है। हालांकि हर माता-पिता की इच्छा अपने लाडले को सफल देखने की होती है लेकिन कई बार वे तरीका गलत अपना लेते हैं। कई बार बच्चों पर उम्मीदों का इतना बोझ डाल दिया जाता है कि कई बार वे इसके दबाव में टूटने लगते हैं। हर कीमत पर सफल होने के दबाव तले कई बच्चे राह भटक जाते हैं या फिर आत्मघाती कदम उठा लेते हैं।

थ्री इडियट फिल्म ने की एजुकेशन सिस्टम की खामियों पर चोट

बीते दशक में आई आमिर खान की सुपरहिट फिल्म थ्री इडियट में देश के एजुकेशन सिस्टम के लूपहोल्स पर चोट की गई थी। फिल्म में बताया गया कि किस तरह बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों पर हर हाल में सफल बनने का दबाव डालते हैं। बच्चा अपने जीवन में क्या बनना चाहता है, यह कोई नहीं पूछता। इस उधेड़बुन में बच्चा कब डिप्रैशन में चला जाता है किसी को पता नहीं चलता है।


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Vijay

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