अपने दम पर क्लासिक मिसेज इंडिया बनी कल्पना की कहानी उन्हीं की जुबानी

Wednesday, Aug 09, 2017 - 11:48 AM (IST)

कुल्लू: कल्पनाओं की भी एक अलग ही दुनिया है जिसे हर कोई साकार करना चाहता है। लाहौल-स्पीति की कल्पना ठाकुर का नाम भी आज उन शख्सियतों में शुमार है जिन्होंने अपनी कल्पनाओं को विस्तार देते हुए समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य करते हुए मिसेज इंडिया तक के सफर को तय कर एक ऐसी मिसाल पेश की है जिसके बारे में शायद उन्हें भी यकीन नहीं था और न ही इस बारे में उन्होंने कभी सोचा था। 28 मई 1975 को जन्मी कल्पना शुरू से ही कुछ अलग सोच और अलग मुकाम की ख्वाहिश रखती थी। कल्पना ठाकुर आज क्लासिक मिसेज इंडिया-2017 का खिताब हासिल कर पूरे जिले और प्रदेश का नाम रोशन कर चुकी है। कल्पना ठाकुर लाहौल के चौंखग गांव से संबंध रखती है और अपनी संस्कृति से बेहद लगाव रखती है। मिसेज इंडिया के खिताब को जीतने के बाद कल्पना ठाकुर से उनकी सफलता और उनके अब तक के सफर के बारे में बात की गई तो उन्होंने जो भी बताया वो कुछ इस प्रकार से है। कल्पना ठाकुर अपनी पहचान को जब सामने रखती है तो बड़े ही गर्व के साथ लाहौल-स्पीति का नाम अपने नाम के साथ जोड़ती है। 2 खूबसूरत बच्चों की मां कल्पना ठाकुर की इसी सफलता की कहानी को जानते हैं उन्ही की जुबानी।


सवाल: मिसेज इंडिया ब्यूटी क्वीन प्रतियोगिता की शुरूआत कैसे हुई?
कल्पना: मिसेज इंडिया ब्यूटी क्वीन बनने से पहले मनाली में वर्ष 2016 के दौरान रैडक्रॉस संस्था द्वारा आयोजित मिसेज मनाली प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था, जहां पर मैंने भी अपनी प्रतियोगिता में भाग लिया था मगर इस प्रतियोगिता में शीर्ष 10 में आने के बाद बाहर हो गई थी और इसी तरह से मैंने एक शुरूआत की। इसके बाद 14 मई 2017 में सोलन में आयोजित मिसेज इंडिया हिमाचल ब्यूटी क्वीन-2017 का आयोजन किया गया था जहां पर मैंने मिसेज इंडिया हिमाचल ब्यूटी क्वीन का खिताब अपने नाम किया था जिसके बाद से मैंने अपने आप पर भरोसा करना शुरू कर दिया। इसके बाद 4 जुलाई 2017 को चेन्नई में आयोजित सौंदर्य प्रतियोगिता में क्लासिक मिसेज इंडिया-2017 का खिताब मैंने अपने नाम किया।


सवाल: मिसेज इंडिया ब्यूटी क्वीन प्रतियोगिता के लिए किस तरह की तैयारियां की थीं?
कल्पना: इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए मैंने अपने हुनर को ज्यादा से ज्यादा प्रदर्शित करने के बारे सोचा था। मैं उपयोग में न आने वाली वस्तुओं को फैंकने के बजाय उन वस्तुओं को तराश कर कुछ नया आकार देने की कोशिश करती हूं और इसी हुनर को इस प्रतियोगिता में इस्तेमाल भी किया। इस दौरान प्रतियोगिता में कुछ ऐसे परिधानों को भी तैयार किया जोकि अखबारों और कागज के बने थे। मजेदार बात यह रही कि इस बारे में किसी को भी शक नहीं हुआ कि ये परिधान कागज के बने हैं मगर प्रतियोगिता के बाद जब निर्णायक मंडल को इस बारे में पता चला तो सभी ने मुझे बहुत सराहा और मेरे हुनर की तारीफ की और इसी हुनर की बदौलत मुझे प्रतियोगिता को जीतने में मदद मिली।


सवाल : इसके बाद आप का अगला पड़ाव क्या होगा?
कल्पना : मिसेज इंडिया के बाद अब क्लासिक मिसेज इंडिया-एशिया इंटरनैशनल ग्लोबल 2017-18 के लिए तैयारियां करनी हैं। हालांकि अभी तय नहीं हुआ है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कौन सी प्रतियोगिता के लिए चयन होना है क्योंकि इसमें एशिया, ग्लोबल और वर्ल्ड 3 स्तर हैं जहां पर भी चयनकत्र्ता तय करेंगे। मुझे इस प्रतियोगिता के लिए अभी से तैयारी करनी है और इस बारे तैयारी कर भी रही हूं।


सवाल: जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति से होने के बावजूद आज इस मुकाम पर पहुंच कर कैसा लगता है?
कल्पना: बहुत अच्छा लगता है आज मिसेज इंडिया ब्यूटी क्वीन का खिताब जीतने के बाद मैं खुद को आत्मविश्वास से भरपूर पाती हूं। हालांकि प्रतियोगिता से पहले मेरे जहन में कभी खिताब को जीतने का विचार नहीं आया था क्योंकि लाहौल-स्पीति और कुल्लू का माहौल अलग है और हिमाचल से बाहर का माहौल अलग। इसलिए प्रतियोगिता में जब गई तो मैं सिर्फ उन लम्हों को अच्छे से जीना चाहती थी और हर पल को संजोए रखना चाहती थी मगर जब खिताब जीत गई तो यकीन ही नहीं हुआ।


सवाल: पहले ग्रीन लेडी और अब ग्रीन वॉरीयर ये टाइटल आप को चयनकर्ताओं ने क्यों दिया?
कल्पना: मिसेज हिमाचल और मिसेज इंडिया दोनों ही प्रतियोगिताओं में मैंने पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुए प्लास्टिक और बेकार वस्तुओं के साथ जो भी परिधान, आभूषण और अन्य वस्तुओं का निर्माण किया था वो चयनकर्ताओं को बहुत ही ज्यादा पसंद आए थे। क्योंकि इन परिधानों और आभूषणों को देखकर किसी को भी नहीं लगा कि ये सब प्लास्टिक और बेकार की वस्तुओं से बने हैं। इसी दौरान मुझे चयनकर्ताओं ने ग्रीन लेडी और बाद में ग्रीन वॉरीयर का टाइटल दिया।


सवाल: मिसेज इंडिया प्रतियोगिता के लिए किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा?
कल्पना: प्रतियोगिता के दौरान आयोजित होने वाले पारम्परिक राऊंड में अपनी संस्कृति का नेतृत्व करते हुए अपने पारंपरिक परिधानों और आभूषणों का प्रदर्शन करते हुए कैट वॉक करना था और लाहौल-स्पीति के पारंपरिक आभूषणों का इंतजाम करना मुश्किल हो रहा था, ऐसे में काफी कोशिशों के बाद भी जब आभूषणों का इंतजाम नहीं हो पाया तो मन में ठान लिया कि अब इन आभूषणों को प्लास्टिक और बेकार पड़ी वस्तुओं के साथ ही बनाऊंगी और इस तरह से बनाऊंगी कि किसी को भी ये न लगे कि ये नकली और बेकार वस्तुओं से बने हुए हैं, इसलिए इन आभूषणों को तैयार करने के लिए बहुत मेहनत की और इन आभूषणों को बिल्कुल पारंपरिक आभूषणों से मिलता जुलता बनाना भी एक चुनौती थी मगर पति के सहयोग और आत्मविश्वास से मैंने उन आभूषणों को समय रहते ही तैयार कर लिया जिसे बाद में बहुत ही ज्यादा सराहा गया।


सवाल: समाजसेवा के क्षेत्र में भी आपने अपनी एक पहचान बनाई है तो आगे भी क्या ऐसे ही कार्य करने का इरादा है या फिर कुछ नया करने की सोच रही है?
जवाब: मैं शुरू से ही समाजसेवा के कार्य में रुचि लेती थी और इसी क्षेत्र में लोगों के लिए कार्य करते रहना बहुत ही अच्छा लगता है। जब भी मौका मिलता है लोगों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में बताती हूं। इन्हीं दिनों स्कूलों के छोटे बच्चों को प्लास्टिक और बेकार की वस्तुओं से परिधान बनाकर उन्हें पर्यावरण के प्रति जागरूक किया। आगे भी जो भी करूंगी लाहौल-स्पीति की संस्कृति, सांस्कृतिक विरासत और पर्यटन की संभावनाओं को दुनिया के सामने लाने का प्रयास करूंगी। इसके अलावा समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य करती रहूंगी। 


सवाल: आपकी इस सफलता के पीछे परिवार का कितना सहयोग रहा?
कल्पना: मेरे ज्यादा दोस्त नहीं हैं और मैं बैस्ट फ्रैंड सिर्फ अपने पति प्रेम ठाकुर को ही मानती हूं क्योंकि जो भी बातें होती हैं मैं उनके साथ ही चर्चा करना पसंद करती हूं। इसके अलावा मेरी मां, मेरी बहनें और भाई सभी का सहयोग हमेशा मेरे साथ रहा है। इसके अलावा मेरे ससुर राम कृष्ण ठाकुर जोकि देहरादून में सर्वे ऑफ इंडिया से डायरैक्टर के पद पर सेवानिवृत्त हो चुके हैं उनसे बहुत प्रेरणा मिलती है। मेरे ससुर हर अनुशासन में रह कर ही कार्य करते हैं और परिवार के अन्य सदस्यों को भी अनुशासन में रखते हुए कुछ कर दिखाने के लिए प्रेरित करते रहते हैं और मेरे इस कदम में भी उनका बहुत सहयोग रहा और मुझ पर अपना विश्वास बनाए रखा।