क्या पुनर्स्थापित हो पाएंगे झील में डूबे शताब्दियों पुराने मंदिर?

Saturday, Jun 09, 2018 - 09:55 PM (IST)

बिलासपुर: 1960 के दशक में भाखड़ा बांध बनने के साथ ऐतिहासिक पुराना बिलासपुर शहर भी बांध से बनी गोबिंद सागर झील में डूब गया। इसी के साथ पुराने बिलासपुर शहर में मौजूद चौथी से छठी शताब्दी में बने प्राचीन मंदिर भी इस झील में डूब गए। गर्मी के मौसम में हर बार झील का पानी सूखने के साथ ये मंदिर पानी से बाहर निकलते हैं और जुलाई-अगस्त माह में झील का पानी चढऩे पर फिर से पानी में डूब जाते हैं। शनिवार को भाषा एवं संस्कृति विभाग की सचिव पूर्णिमा चौहान ने लंबे काल खंड में खंडहर बन चुके इन पुराने ऐतिहासिक मंदिरों का निरीक्षण किया और इन्हें बिलासपुर में कहीं अन्यत्र पुनर्स्थापित किए जाने की योजना पर डी.सी. बिलासपुर विवेक भाटिया से चर्चा की। उनके साथ जिला भाषा एवं संस्कृति अधिकारी नीलम चंदेल भी मौजूद रहीं।


झील में डूबे मंदिरों की संख्या 12
गोबिंद सागर झील में डूबने वाले इन मंदिरों की संख्या 12 है लेकिन वक्त बीतने के साथ हर वर्ष गोबिंद सागर झील के पानी की थपेड़ों को सहते-सहते कुछ मंदिर टूट कर बिखर चुके हैं और अब गोबिंद सागर झील में सांडू के मैदान में 7 मंदिर ऐसे रह गए हैं, जिनका अस्तित्व टिका हुआ है। गौरतलब है कि वर्ष 2009 में भी इसके लिए सर्वेक्षण हुआ था, लेकिन अभी तक यह योजना सिरे नहीं चढ़ी। भाषा एवं संस्कृति विभाग की प्रदेश सचिव  ने बताया कि इन मंदिरों की पुनस्र्थापना के प्रयास जारी हैं, जिसके लिए भारतीय पुरातत्व विभाग के साथ पत्राचार चल रहा है और उनके महानिदेशक को स्मृति पत्र भेजा गया है ताकि उनकी टीम झील में पानी चढऩे से पहले इन मंदिरों के सर्वेक्षण की रिपोर्ट तैयार कर सके।


7 पुरानी लिपियां व भाषाएं लुप्त
भाषा एवं संस्कृति विभाग की प्रदेश सचिव ने बताया कि हिमाचल की 7 पुरानी लिपियां व भाषाएं, जिनमें टांगरी, पंगवाणी, वापुची व शारदा आदि शामिल हैं, जो आम बोल-चाल से गायब हो चुकी हैं। इन भाषाओं व इनसे जुड़े जीवन के तौर-तरीकों को फिर से पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है। प्रदेश के मुख्यमंत्री यह प्रयास कर रहे हैं कि इन प्राचीन भाषाओं को भारतीय संविधान के 8वें अनुछेद में शामिल कर लिया जाए लेकिन इसके लिए लोगों की मदद की भी आवश्यकता है।

Vijay