अाखिर क्यों नाइट ड्यूटी देने से कतरा रहे डॉक्टर

Monday, Feb 27, 2017 - 01:10 PM (IST)

शिमला: मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा देने का दावा भले ही आई.जी.एम.सी. प्रशासन लाख कर ले लेकिन हकीकत कुछ और ही है। आई.जी.एम.सी. में मरीजों को कितनी सुविधा मिल रही है इसकी पोल आई.जी.एम.सी. के आपातकालीन वार्ड में पहुंचते ही खुल जाती है। यह केवल नाम के लिए आपातकालीन वार्ड बनाया गया है। सुविधाओं के नाम पर प्रशासन व सरकार ने यहां कुछ नहीं दिया है। हैरत है कि रात के समय में सीनियर चिकित्सक तक आपातकालीन वार्ड में ढूंढे नहीं मिलते हैं, जिससे मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसा ही उदाहरण कमलेश नामक व्यक्ति के साथ शनिवार रात को देखने को मिला, जब वह स्किन की बीमारी का इलाज करवाने आपातकालीन वार्ड में पहुंचा था और सीनियर डॉक्टर न होने की वजह से वह भटकता रहा और सुबह ही डॉक्टर उसे मिल पाए। गौरतलब है कि सीनियर रैजीडैंट के 16 पद स्वीकृत हैं मगर एक ही सीनियर रैजीडैंट दिया गया है, वहीं असिस्टैंट प्रोफैसर के भी 7 पद मंजूर हैं लेकिन इसमें से महज 3 ही भरे गए हैं।

क्या डायरैक्शन थी एम.सी.आई. की
एम.सी.आई. की डायरैक्शन थी कि आपातकालीन वार्ड में सीनियर चिकित्सक रात के समय में विशेष रुपए से तैनात होना चाहिए क्योंकि गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीज सबसे पहले आई.जी.एम.सी. में ही आता है। इसलिए यहां पर सीनियर चिकित्सक का होना जरूरी है, वहीं आपातकालीन ट्रामा सैंटर को सुधारा जाए। दुर्घटना, प्वायजनिंग, हार्ट अटैक व स्ट्रोक के मरीजों के लिए सुविधाएं दी जाएं।आपातकालीन से रैफर करने वालों का ग्राफ  कम किया जाए।

बैड बढ़ाने की प्रक्रिया भी कागजों तक सीमित
प्रशासन ने अपने दम पर यहां पर कुछ नहीं किया है। कुछ समय बैड बढ़ाने की बात जरूर चली थी मगर वह भी कागजों तक ही सीमित रह गई। ऐसे में प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में सुविधाएं न होने से मरीजों को परेशानियां झेलनी पड़ती हैं।