कौन होगा हिमाचल का CM, भाजपा के लिए बनी बड़ी चुनौती

Wednesday, Dec 20, 2017 - 12:24 PM (IST)

बिलासपुर: राज्य में भाजपा को प्रचंड जीत के बीच प्रेम कुमार धूमल की अप्रत्याशित हार के कारण केंद्रीय हाईकमान के लिए मुख्यमंत्री चेहरे के चयन के लिए बड़ा धर्म संकट खड़ा हो गया है। राज्य में तयशुदा रणनीति के तहत धूमल के नाम पर वोट मांगने के बाद पार्टी को मिली विजय के बाद उभरे परिदृश्य में अब मुख्यमंत्री पद पर राज्य व केंद्र में पार्टी की जिम्मेदारी देख रहे कई नेताओं के नाम भी सुर्खिंयां पकड़ने लगे हैं। पार्टी के सामने चुनौतियां खड़ी हो गई हैं कि वह इस प्रचंड बहुमत में चुनकर आए हुए विधायकों में से ही वरिष्ठ नेताओं में से किसी एक को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दे या फिर संगठन व केंद्र में विभिन्न जिम्मेदारियों पर तैनात हिमाचल से संबंधित दूसरे इस पद के सशक्त दावेदारों के सिर मुख्यमंत्री का ताज सजाए? मुख्यमंत्री पद के लिए इस समय केंद्रीय मंत्री जगत प्रकाश नड्डा और जयराम ठाकुर का नाम सुर्खियों में हैं। 

 
इसके अलावा डा. राजीव बिंदल और संघ की पृष्ठभूमि के अजय जम्वाल भी शामिल हैं। इस दौड़ के बीच दल के नई दिल्ली पहुंचने की सूचना है। बता दें कि राज्य में भाजपा ने हालांकि लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृतव में ही लड़ा था, लेकिन मौजूदा विस चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस के वीरभद्र के चुनाव रण में उतरने के बाद सामने आई परिस्थितियों को भांपते हुए आखिरी दौर में अपने वरिष्ठ नेता व पूर्व में 2 बार मुख्यमंत्री रहे धूमल को ही अगले मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर दिया। उनके चेहरे पर ही पार्टी ने हिमाचल में चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर ली लेकिन खुद शायद केंद्रीय नेतृत्व को भी यह आभास नहीं हुआ होगा कि धूमल को सुजानपुर सीट से लड़ाने का जोखिम उसे महंगा पड़ेगा। 


इसलिए हारे धूमल
हालांकि हमीरपुर सीट उनके लिए सेफ थी लेकिन पार्टी हाईकमान के आदेश को टालने की बजाय उन्होंने सुजानपुर से लड़ने का जोखिम उठा लिया। एकदम नया चुनाव क्षेत्र होने के कारण व चुनाव से मात्र 15 दिन पहले उनका चुनाव क्षेत्र बदलने से वह ‘सियासी चक्रव्यूह’ में उलझ गए। ऐसे में वह प्रदेश को देखते, अपनों को देखते या फिर अपनी सीट। दूसरी बात यह कि खुद धूमल सुजानपुर की थाह लेने में विफल रहे। राणा के सामाजिक रुतबे को कम आंकना उनकी बड़ी गलती रही। उन्हें मात्र 1919 वोटों से हार का मुंह देखना पड़ गया। 


धूमल के लिए एक विकल्प यह भी
मुख्यमंत्री पद पर चयन के इन तमाम पहलुओं में यह बात भी राज्य भाजपा के एक पक्ष में तेजी से जोर पकड़ने लगी है कि हिमाचल में पार्टी को ऐतिहासिक बहुमत का तोहफा देने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को ही क्यों न उनके अनुभव को देखते हुए मौका दिया जाए? इसके लिए पार्टी के भीतर से इस चुनाव में प्रभावशाली रहा एक पक्ष तर्कों की एक लंबी फेहरिस्त भी सामने रख रहा है। यहां तक कि धूमल को मुख्यमंत्री पद पर बिठाने के लिए इस चुनाव में जीत दर्ज करने वाले पार्टी के विधायक भी अपनी सीट छोड़ने के लिए तैयार हो गए हैं। पार्टी के अंदर से ही एक बड़ा खेमा धूमल की हार के बावजूद इस पद पर उनकी दावेदारी को सशक्त मान रहा है। तर्क दिया जा रहा है कि पार्टी हाईकमान ने धूमल के नाम की राज्य में साख को जानते हुए यह चुनाव उनके नाम पर लड़ा। 


उन्हें सी.एम. फेस के रूप में प्रोजैक्ट किया और आज जब पार्टी की झोली में ऐतिहासिक बहुमत है तो फिर धूमल के नाम पर पार्टी को राज्य में वोट देने वाले लाखों लोगों के साथ हाईकमान के वायदे का क्या होगा? इस बात का भी हवाला दिया जा रहा है कि धूमल ने पार्टी अनुशासन का पालन करते हुए अपनी परंपरागत सीट को छोड़कर संगठन के निर्देश पर सुजानपुर से चुनाव लड़ा और हार गए। अगर यही चुनाव वह पार्टी हाईकमान के निर्देश की उल्लंघना करते हुए हमीरपुर से लड़ते तो जीत जाते। कहा यह भी जा रहा है कि जब केंद्रीय सरकार में लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद अरुण जेतली व स्मृति ईरानी मंत्री बन सकते हैं तो धूमल विस चुनाव हारने के बाद मुख्यमंत्री क्यों नहीं? इससे भी बड़ी यह बात धूमल को अव्वल नंबरों में ला रही है कि उनके पास राज्य में सरकार चलाने का अनुभव है और भाजपा गुड गवर्नैंस व लोगों को सर्विस डिलीवरी के इस नए युग की अवधारणा में अपने ही यहां मौजूद नेता को दरकिनार करने का जोखिम इस दौर में क्यों ले जबकि 2019 में हिमाचल में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। 


धूमल को सी.एम. देखना चाहतें हैं 26 विधायक !
कुटलैहड़ के विधायक वीरेंद्र कंवर के बाद सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र से लगातार जीत की हैट्रिक लगाने वाले भाजपा विधायक कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर ने पूर्व मुख्यमंत्री को लेकर अपनी सीट छोड़ने का ऐलान किया है। नवनिर्वाचित विधायक कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि उन्हें राजनीति में प्रेम कुमार धूमल ही लाए थे। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल चाहें तो सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र से बाकायदा चुनाव लड़ सकते हैं। वह उनके लिए अपनी सीट का त्याग करने के लिए तैयार हैं। इस बीच सूचना यह भी हैं कि पार्टी के 44 विधायकों में से 26 धूमल को ही मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं और इसके लिए वह अपनी सीट तक छोडऩे को तैयार हैं। बताया जाता है कि मंगलवार को समीरपुर स्थित धूमल के आवास पर हुई एक बैठक के बाद कई विधायकों ने धूमल को ही सी.एम. बनाने की इच्छा जाहिर की है। सूत्रों का कहना है कि सीतारमण और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ बैठक में यह विधायक धूमल का नाम लेने वाले हैं। 


यह हैं प्रबल दावेदार 

जयराम ठाकुर
धूमल की हार के बाद एकदम सामने आ रहे भाजपा के ताजा परिदृश्य में चुने हुए विधायकों में सबसे वरिष्ठ और 10 सीटों वाले मंडी जिला के सिराज से आने वाले जयराम ठाकुर हैं। जयराम ठाकुर के पास 5वीं बार विधायक बनकर आने की एक बड़ी योग्यता है और वह अपने जिला में कांग्रेस को पूरी तरह से क्लीन स्वीप करके ही आए हैं। जयराम ठाकुर के पक्ष में यह भी महत्वपूर्ण है कि वह केंद्र में वर्तमान में भाजपा नेतृत्व के समूह में बड़ी ताकत बनकर उभरे जगत प्रकाश नड्डा की गुड बुक्स में भी हैं। जयराम ठाकुर ए.बी.वी.पी. की पृष्ठभूमि से हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत है कि वह चुनकर आए हुए विधायकों में हंै और कायदे से निर्वाचित घोषित विधायकों में से ही मुख्यमंत्री घोषित किए जाने की परंपरा है। जयराम ठाकुर हिमाचल की राजनीति में जातिगत समीकरणों के हिसाब से भी उस समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जिसकी तादाद 35 प्रतिशत से अधिक बताई जाती है।  


अजय जम्वाल 
इसके बाद सी.एम. पद पर अगले नामों में उत्तरी राज्यों में भाजपा के संगठन मंत्री रहे और आर.एस.एस. में नागपुर मुख्यालय के गिनती के कुछ करीबियों में शामिल अजय जम्वाल हैं। अजय जम्वाल मंडी जिला के जोगिंद्रनगर क्षेत्र के रहने वाले हैं और उन्होंने अपना पूरा जीवन पार्टी, संगठन व आर.एस.एस. को ही समर्पित कर दिया है। जम्वाल भी राजपूत समुदाय से संबंधित हैं और उनका नाम राज्य में मुख्यमंत्री पद के लिए लंबे समय से चला आ रहा है। राजीव बिंदल और हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के सांसद अनुराग ठाकुर का नाम भी सुर्खियां पकड़ रहा है। 


जेपी नड्डा
मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदारों में अपनी केंद्रीय पैठ के कारण जगत प्रकाश नड्डा आते हैं। वह राज्यसभा सदस्य रहते हुए केंद्र में अपनी मजबूत पहुंच के कारण मोदी कैबिनेट के हिस्सा हैं। अगर नड्डा को केंद्रीय जिम्मेदारियों से पार्टी मुक्त करने की स्थिति में हो और खुद नड्डा राज्य की बागडोर संभालने के इच्छुक हों तो पार्टी उन्हें भी इस पद की जिम्मेदारी दे सकती है। इससे पहले नड्डा इस विधानसभा चुनाव में अपने मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं को कई मौकों पर बल देते हुए भी दिखते रहे हैं और बिलासपुर जिला में अपनी कई जनसभाओं में उन्होंने परोक्ष तौर पर इस बारे में संकेत भी दिए थे।