देश की महत्वपूर्ण सुरंग से हटी ‘यह’ सबसे बड़ी रुकावट, काम में आई तेजी

Tuesday, Feb 21, 2017 - 07:56 PM (IST)

मनाली: सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रोहतांग सुरंग के दोनों छोर इस साल सितम्बर में जुड़ जाएंगे जबकि वर्ष 2019 में रोहतांग सुरंग देश के लिए समर्पित कर दी जाएगी। सेरी नाले में आई पानी के रिसाव की दिक्कतों को पार करते ही निर्माण कार्य को गति मिली है। पीर पंजाल की रेंज में 17 हजार फुट ऊंचे धुंधी जोत में बन रही रोहतांग सुरंग की यू.पी.ए. अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जून, 2010 में जब आधारशिला रखी थी तो लागत 2 हजार करोड़ रुपए और निर्माण का लक्ष्य वर्ष 2015 था लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों और सेरी नाले में पानी के भारी रिसाव के चलते रोहतांग सुरंग निर्माण की लागत 4 हजार करोड़ रुपए जा पहुंची जबकि समय अवधि भी 4 साल आगे खिसक गई। 

एक दिन में हो रही थी आधा मीटर खुदाई
सेरी नाले में पानी का रिसाव होना पहले से ही प्रस्तावित था लेकिन वर्ष 2013 से 2015 तक बी.आर.ओ. भारी मात्रा में हुए रिसाव के चलते दिक्कतों में घिरा रहा, जहां साधारण परिस्थितियों में इंजीनियर एक दिन में 5 मीटर तक टनल खोद रहे थे। वहीं पानी के रिसाव के चलते आधा मीटर खुदाई कर पाना भी मुश्किल हो गया था। लाहौल घाटी के लोगों के लिए रोहतांग दर्रा एक ऐसी दीवार के सामान है जो सर्दियों मे बर्फ  पडऩे पर उनका रास्ता रोक लेता है। इस दीवार को पार करने की कोशिश करना सीधा मौत को आमंत्रण देने जैसा है। सर्दियों में जहां भारी बर्फबारी के बीच कोई इसे पैदल पार करने के बारे में सोच भी नहीं सकता। वहीं सर्दियां शुरू होने से पहले भी यहां अचानक होने वाली बर्फबारी कभी भी इसे पैदल पार करने वालों को मौत के मुंह में पहुंचा सकती है। 

रोहतांग को लाहुली भाषा में कहते हैं लाशों का ढेर 
रोहतांग और मौत के बीच की दूरी को काफी कम माना जाता है। इसी वजह से जनजातीय भाषा में रोहतांग दर्रे का शाब्दिक अर्थ भी मौत से जुड़ा हुआ है। लाहुली भाषा में रोहतांग का अर्थ लाशों का ढेर है। यानि यहां बरपने वाला कुदरत का कहर कभी भी लोगों को लाशों में तबदील करने का सामथ्र्य रखता है। रोहतांग दर्रे के कारण लाहौल घाटी के लोग आज भी साल मे कम से कम 6 महीने घाटी में कैद हो कर रह जाते हैं। सर्दियों में जब बर्फ  पड़ती है तो रोहतांग दर्रे को पार करना असंभव हो जाता है। रोहतांग सुरंग निर्माण से लाहौल घाटी के लोग बड़ी आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। लाहौल-स्पीति घाटी के 20 हजार के साथ-साथ पांगी घाटी के करीब 18 हजार लोगों को इस सुरंग के बनने से सीधा फायदा होगा।

नई तकनीक से हो रहा सुरंग का काम
रोहतांग सुरंग का निर्माण कार्य न्यू आस्ट्रिया मेथड से किया जा रहा है। सुरंग में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाए जा रहे हैं। सुरंग में सबसे नीचे पानी के लिए नाली का निर्माण हो रहा है। उसके ऊपर आपात रास्ते का निर्माण किया जा रहा है, जिसे सुरंग के अन्दर आपदा आने पर इस्तेमाल किया जा सकेगा। सुरंग के हर 150 मीटर पर पार्किंग की सुविधा रहेगी, साथ ही आपात दरवाजा भी लगाया जाएगा जिसका आपदा के समय प्रयोग किया जा सकेगा।

सितम्बर माह में जोड़ दिए जाएंगे सुरंग के दोनों छोर
स्ट्राबेग एफकॉन कम्पनी के प्रोजैक्ट मैनेजर इंजी. सुनील त्यागी ने कहा कि सेरी नाले में हुए पानी के रिसाव से दिक्कतें बढ़ीं थी लेकिन स्ट्राबेग एफकॉन कम्पनी के इंजीनियरों और बी.आर.ओ. के अधिकारियों की सूझबूझ से इस दिक्कत से निपट लिया गया। रोहतांग सुरंग निर्माण में कंपनी इस वर्ष सितम्बर तक सुरंग के दोनों छोर को जोडऩे के लक्ष्य का पीछा कर रही है। उम्मीद है हम सभी के सहयोग से निर्धारित समय पर सुरंग के दोनों छोर जोड़ दिए जाएं।

समय पर देश को समर्पित कर दी जाएगी सुंरग
बी.आर.ओ. रोहतांग प्रोजैक्ट के चीफ इंजी. ब्रिगेडियर डी.एन. भट्ट ने कहा कि 4 हजार करोड़ रुपए की लागत से तैयार हो रही रोहतांग सुरंग वर्ष 2019 में देश को समर्पित कर दी जाएगी। इस साल सितम्बर महीने में दोनों छोर के जुड़ते ही सर्दियों में लाहौल की ओर भी काम निरंतर चलता रहेगा। सेरी नाले की दिक्कत को पार करते ही खुदाई के काम में गति आई है। सर्दियों में भी काम निरंतर जारी है। स्ट्राबेग एफकॉन कम्पनी निर्माण कार्य कर रही है जबकि स्मेक कम्पनी डिजाइन के कार्य को देख रही है। सभी परिस्थितियां ठीक रहीं तो सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रोहतांग सुरंग समय पर देश को समर्पित कर दी जाएगी।

48 किलोमीटर घटेगी लाहौल की दूरी
रोहतांग सुरंग के निर्माण से लाहौल घाटी की दूरी 48 किलोमीटर कम हो जाएगी। सुरंग के तैयार हो जाने से लाहौल घाटी सॢदयों में भी खुली रहेगी। घाटी में पर्यटन कारोबार भी बढ़ेगा और 6 महीने बर्फ  की कैद में रहने से भी छुटकारा मिल जाएगा।